It ,ooks like genocide in Mynmar.
#Satyagriha
संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हो रही हिंसा पर फिर चिंता जताई है.
म्यांमार के सुरक्षा बल इस समुदाय के खिलाफ जिस तरह से कार्रवाई कर रहे हैं उसे देखते हुए जातीय नरसंहार की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता.
रखाइन छोड़कर भागे रोहिंग्या मुसलमानों को तब तक वापस नहीं भेजा जाना चाहिए जब तक वहां जमीन पर उनके मानवाधिकारों की निगरानी की व्यवस्था न हो.
अगस्त में म्यांमार की सेना द्वारा रोहिंग्या विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई के बाद लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश विस्थापित होना पड़ा है. कुछ समय पहले भी संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस कार्रवाई को जातीय सफाये जैसी घटना बताया था. उसके मुताबिक बांग्लादेश में इस समय रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या सात लाख तक पहुंच गई है, जिनमें 5.07 लाख शरणार्थी 25 अगस्त के बाद वहां पहुंचे हैं.
Rohingya & Myanmar
रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार अपना नागरिक नहीं, बल्कि अवैध प्रवासी मानता है. उसने 1982 में ही राष्ट्रीयता कानून बनाकर इनके ‘नागरिक दर्जे’ को खत्म कर दिया था. रोहिंग्या मुसलमानों को यहां पर अक्सर बौद्ध बहुसंख्यकों और सेना के अत्याचारों का सामना करना पड़ता है. इस मामले में कारगर पहल न करने की वजह से नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित म्यांमार की नेता आंग सान सू की को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना झेलनी पड़ रही है.