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जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे का भारत दौरा कई मायनों में मील का पत्थर साबित हुआ है। जापान भारत के साथ मजबूत दोस्ती का हिमायती है और इसको लेकर वह संकल्पित भी दिखा। इस यात्रा में दर्जन भर से अधिक करार हुए, जो नागरिक उड्डयन, कारोबार, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, कौशल विकास जैसे क्षेत्रों से जुड़े हैं।
What these agreements signify’
ये समझौते बताते हैं कि भारत और जापान के रिश्तों में अब कितनी गरमाहट आ चुकी है, खासतौर से इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में आई प्रगति उल्लेखनीय है।
मुंबई और अहमदाबाद के बीच प्रस्तावित बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए जापान ने मामूली शर्तों पर 88 हजार करोड़ रुपये का कर्ज देने की बात कही है। इसे चुकाने के लिए 50 साल का वक्त तो दिया ही गया है, ब्याज की दर भी काफी कम यानी 0.1 फीसदी रखी गई है।
इस परियोजना से देश में तकनीकी अपग्रेडेशन का काम भी तेज होगा। यह काम इसलिए भी बहुत जरूरी है, क्योंकि भारतीय रेल फिलहाल तकनीक के मोर्चे पर काफी पीछे है।
शिंजो अबे की यात्रा यह भी बता रही है कि आने वाले दिनों में भारत और जापान के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान तेज होंगे। यह स्वाभाविक है, क्योंकि जब जापान से आई तकनीकी विशेषज्ञों की टीम यहां रहेगी, तो दूसरी कई कंपनियों के लोग आएंगे और पीपुल-टु-पीपुल कॉन्टेक्ट (आम लोगों के स्तर पर संबंध) विकसित होंगे। इससे दोनों देश सांस्कृतिक रूप से करीब आएंगे ही। इन सबके अलावा प्रधानमंत्री ने देश में अधिक से अधिक जापानी रेस्तरां खुलने की उम्मीद भी जताई है। यह सही है कि भारत में जापानी रेस्टूरेंट मौजूद हैं, लेकिन इनकी संख्या काफी कम है, और जो हैं भी, वे बहुत महंगे हैं। जापान को करीब से जानने वालों को पता होगा कि वहां पर ‘बेंटो बॉक्स’ कितना लोकप्रिय है। एक पारंपरिक बेंटो बॉक्स में चावल या नूडल्स, मछली या मीट, अचार और सूखी सब्जी होती है। यह वहां के आम जनजीवन का हिस्सा है। उम्मीद है कि जब अपने यहां जापानी रेस्तरां खुलेंगे, तो जिस तरह मैकडोनल्ड को हमने अपनाया, उसी तरह जापानी रेस्तरां का भी हम स्वागत करेंगे।
New era of Investment
इस यात्रा से भारत में जापानी निवेश के नए युग की शुरुआत हो रही है। भले ही पिछले एक साल के भीतर जापानी कंपनियों का निवेश 60-70 फीसदी बढ़ा है, मगर जापानी प्रधानमंत्री के इस दौरे में हुए कई करार सुखद बदलाव के वाहक हैं। खास तौर से इन्फ्रास्ट्रक्चर, नागरिक उड्डयन व विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में निवेश काफी बढ़ने की उम्मीद है। यह जरूर है कि रक्षा क्षेत्र में कोई ठोस समझौता इस यात्रा में आकार नहीं ले सका, लेकिन दोनों प्रधानमंत्रियों की बातों पर गौर करें, तो लगता यही है कि इस पर सहमति बनाई जा रही है और देर-सवेर यहां से भी, खास तौर से रक्षा उपकरणों को लेकर हमें अच्छी खबर मिलेगी। यदि यह संभव हुआ, तो जापान पहली बार किसी देश के साथ इस तरह का रक्षा करार करेगा।
NE & Japanese Investment
इसी तरह, पूर्वोत्तर भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने में जापान की रुचि का भी स्वागत किया जाना चाहिए और उस मुक्त व खुले ‘Indo Pacific Region की कवायद का भी, जिसके तहत समुद्री क्षेत्रों में एक-दूसरे की संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सम्मान की बात कही गई है। यह खासतौर से चीन जैसे देशों के लिए संदेश है, जिसका दक्षिण चीन सागर में कई दूसरे देशों के साथ तनाव बना रहता है। यह बड़ी बात है, और इन पर शिंजो अबे का कहना बिल्कुल उचित है कि ये तमाम करार ग्लोबल भी हैं, सामरिक भी, और ‘स्पेशल’ तो ये हैं ही।
How China is perceiving this ravel
जापानी प्रधानमंत्री की इस यात्रा पर चीन की खास नजर रही। वहां शंका के कुछ स्वर उठे हैं, पर बीजिंग को समझना चाहिए कि भारत चीन को अलग-थलग करने का पक्षधर नहीं है। प्रधानमंत्री का ब्रिक्स सम्मेलन में शिरकत करना और आतंकवाद के मोर्चे पर चीन को मनाना इसी की तस्दीक करता है। नई दिल्ली जानती है कि समग्रता में विकास तभी संभव है, जब सभी देश एक छतरी के नीचे आएं। अभी आतंकवाद का मसला गरम है और उत्तर कोरिया अपने मिसाइल कार्यक्रम को बढ़ावा देकर वैश्विक शांति को बार-बार चुनौती दे रहा है। ऐसे में, जरूरी यही है कि चीन और भारत भी द्विपक्षीय रिश्तों को एक नई ऊंचाई दें। शिंजो अबे की तरफ दोस्ती का मजबूत हाथ बढ़ाकर प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को यही संदेश देने की कोशिश की है।
हां, यह बात और है कि जापानी प्रधानमंत्री की इस यात्रा ने प्रधानमंत्री की छवि को भी एक नया मुकाम दिया है। वह निजी तौर पर ऐसी परियोजनाओं, खासकर बुलेट ट्रेन में रुचि ले रहे थे, और इसका नतीजा भी सुखद आया है। इससे दूसरे तमाम देशों में यह संदेश गया है कि अगर वे भारत को साथ लेकर कुछ करना चाहते हैं, तो प्रधानमंत्री के स्तर पर बात होनी चाहिए, क्योंकि प्रधानमंत्री दोतरफा रिश्तों के हिमायती हैं। इसलिए जरूरी है कि चीन भी अब संवेदनशीलता दिखाए और जिस तरह जापान ने इन्फ्रास्ट्रक्चर के काम में भारत की चिंताओं को समझा है, चीन भी वैसा ही रुख दिखाए। ‘वन बेल्ट-वन रोड इनिशिएटिव’ के तहत इन्फ्रास्ट्रक्चर के जो प्रोजेक्ट चल रहे हैं, उनसे जुड़ी भारत की चिंताएं उसे समझनी होंगी।
उल्लेखनीय यह भी है कि भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया और भारत-जापान-अमेरिका के बीच त्रिपक्षीय फोरम पहले से मौजूद हैं। अब इनको एक करके संयुक्त फोरम बनाने की बात चल रही है। यह सलाह ऑस्ट्रेलिया की तरफ से आई थी। अगर ऐसा हुआ, तो इससे भी भारत और जापान का द्विपक्षीय रिश्ता परवान चढ़ेगा। भारत हमेशा से सकारात्मक रिश्तों का हिमायती रहा है, इसलिए उम्मीद है कि जिन मसलों पर जापानी प्रधानमंत्री से इस बार बात नहीं हो पाई, उन पर जल्दी ही सहमति बन सकेगी।