अमेरिका के लिए अहम बनता भारत

For America, India has growing importance and rise of China has further given momentum to this relationship.

#Dainik_Jagran

हाल के दो भाषण खासे अहम रहे। एक चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग का और दूसरा अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन का। चिनफिंग जहां अपनी दोबारा ताजपोशी के अवसर पर तीन घंटे से अधिक लंबे भाषण में चीन को उन्नत बनाने का दृष्टिकोण साझा कर रहे थे तो टिलरसन नए वैश्विक सत्ता संतुलन में अमेरिका की अधपकी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे।

  • चिनफिंग ने 2050 तक चीन को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बनाने का महत्वाकांक्षी ढांचा पेश किया। वर्ष 2016 में जबसे डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति बने हैं तबसे चिनफिंग ने खुद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे जिम्मेदार नेता के तौर पर पेश करना शुरू किया है जो जलवायु परिवर्तन और वैश्विक व्यापार जैसे मुद्दों को समझदारी के साथ सुलझाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं।
  • अमेरिका-चीन रिश्तों को बराक ओबामा ने इस दौर का सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय रिश्ता बताया, लेकिन ट्रंप प्रशासन की सोच कुछ अलग है।
  • दक्षिण एशिया दौरे से पहले टिलरसन ने एशिया को लेकर अमेरिकी इरादे जाहिर करते हुए भारत को मुख्य साझेदार बताया। उनसे पहले अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने भी सितंबर में अपने भारत दौरे के दौरान कहा था कि भारत-अमेरिका साझेदारी में सुरक्षा ‘प्रमुख रणनीतिक स्तंभों’ में से एक है।
  • टिलरसन ने केवल इसके फलक को और विस्तार दिया है। साथ ही उन्होंने चीन के उदय को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि अक्सर वह जिम्मेदारी नही दिखाता और अंतरराष्ट्रीय कानूनों को ताक पर रखता है, जबकि भारत जैसे देश दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करते हुए नियमों के दायरे में ही काम करते हैं।
  • दक्षिण चीन सागर में चीनी आक्रामकता को टिलरसन ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों का मखौल उड़ाना बताया और कहा कि चीन जैसे गैर-लोकतांत्रिक देश के साथ अमेरिका के रिश्ते कभी भारत जैसे नहीं हो सकते।
  • अपने पूर्ववर्ती की ही तरह ट्रंप प्रशासन ने भी चीन के साथ ताल मिलाते हुए कमान संभाली, लेकिन अब चीन को लेकर अमेरिका में खीझ बढ़ती जा रहा है, क्योंकि उत्तर कोरिया के सनकी शासक पर अपना प्रभाव रखने के बावजूद चीन उस पर कोई दबाव नहीं डाल रहा है। वहीं भारत को लेकर ट्रंप प्रशासन की नीति एकदम स्पष्ट है जिसमें ओबामा प्रशासन की समृद्ध विरासत को आगे बढ़ाया जा रहा है।

INDIA & America

भारत  सरकार ने अमेरिका के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने में खासी मेहनत की है। तीन साल के कार्यकाल में मोदी ने अमेरिका के पांच दौरे किए हैं। हालांकि भारत में तमाम लोगों ने ट्रंप के कूटनीतिक रवैये पर संदेह जताया है कि यह भारत के लिए नुकसानदेह हो सकता है, मगर सितंबर में मोदी की सफल अमेरिकी यात्रा और ट्रंप प्रशासन की अफगानिस्तान नीति में भारत को मिली प्रमुखता से ऐसी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं। अगर मोदी यह कहते हैं कि ओबामा प्रशासन के दौरान भारत-अमेरिका रिश्तों में हिचक का दौर समाप्त हुआ तो यह बात भी उतनी ही सही है कि वह ट्रंप प्रशासन को साधने में भी उतने ही सफल रहे हैं। वह ट्रंप का रुख उन व्यापक बुनियादी वास्तविकताओं की ओर करने में सफल रहे हैं जिनसे भारत-अमेरिका संबंध संचालित होते हैं और यह सिलसिला जॉर्ज डब्ल्यू बुश के समय से ही शुरू हुआ जिसमें बुश ने एलान किया था भारत को वैश्विक महाशक्ति बनाने में अमेरिका हरसंभव मदद करेगा। मोदी और ट्रंप की पिछली बैठक में पूरा ध्यान एशिया में शक्ति संतुलन पर केंद्रित रहा और उन्होंने सहमति जताई कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता लाने में भारत और अमेरिका को कंधे से कंधा मिलाकर काम करना होगा। मोदी ने बार-बार दोहराया है कि भारत के विकास और सामरिक हितों की पूर्ति के लिए वह अमेरिका की अहमियत को स्पष्ट रूप से समझते हैं। इस बार भी उन्होंने कहा कि भारत के सामाजिक एवं आर्थिक कायाकल्प के लिए वह अमेरिका को सबसे प्रमुख साझेदार समझते हैं। भारत में भले ही कुछ आलोचक इसे देश की परंपरागत गुटनिरपेक्षता वाली नीति से विचलन मानें, लेकिन पिछली सरकारों के संकोच को दरकिनार करते हुए मोदी ने अपने फायदे की बात कहने में कोई हिचक नहीं दिखाई।

Trump & New south Asia Policy & India

ट्रंप प्रशासन ने अगस्त में ही नई दक्षिण एशिया नीति का एलान किया जिसमें भारत को केंद्रीय भूमिका दी गई है। इसमें पाकिस्तान पर सख्ती बरतने के साथ ही एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि अमेरिका भारत के साथ अपनी सामरिक भागीदारी को और मजबूत बनाएगा। ट्रंप ने कहा कि अफगानिस्तान में स्थायित्व लाने में हम भारत के योगदान की सराहना करते हैं। हम चाहते हैं कि वहां आर्थिक सहायता और विकास जैसे दूसरे मोर्चों पर भी भारत हमारी और ज्यादा मदद करे। ट्रंप की नीति भारत के लिए इस लिहाज से अहम है कि अभी तक पाकिस्तान की संभावित नाराजगी की आशंका में उसने भारत को अपनी ‘अफ-पाक’ नीति से दूर रखा हुआ था। अमेरिका के लिए अफगानिस्तान में भारत की भूमिका अब समस्या बढ़ाने वाले कारक की नहीं, बल्कि समाधान दिलाने वाले की हो गई है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत के बढ़ते कद को देखते हुए अमेरिका की राय है कि इस क्षेत्र के लोकतंत्रों में व्यापक सहयोग एवं सहभागिता बढ़ाने की पहल की जाए। टिलरसन ने कहा भी कि हम अमेरिका, भारत और जापान के त्रिपक्षीय सहयोग के फायदे पहले ही महसूस कर रहे हैं। इसमें ऑस्ट्रेलिया जैसे सहयोगी को शामिल करने की भी हम संभावनाएं तलाश रहे हैं।

Equation of Quad Grouping

अक्टूबर में जापान के चुनावों में शिंजो एबी की भारी जीत ने भी अमेरिका-जापान-भारत-ऑस्ट्रेलिया की हिंद प्रशांत चौकड़ी को मूर्त रूप देने की दिशा में सोचने का मार्ग प्रशस्त किया। भारत-जापान-अमेरिका मालाबार नौसैनिक अभ्यास में अमेरिका ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल करने को तत्पर है। मनीला में पूर्वी एशियाई सम्मेलन से इतर चारों पक्ष इस मसले पर आधिकारिक बैठक भी कर सकते हैं। ये चारों लोकतांत्रिक शक्तियां दक्षिण चीन सागर से लेकर हिंद महासागर और अफ्रीका तक के सामुद्रिक व्यापार को सुगम बनाने के साथ रक्षा सहयोग को मजबूत बना सकती हैं। हिंद प्रशांत क्षेत्र में यह समीकरण ऐसे दौर में बन रहा है जब अमेरिकी राष्ट्रपति यहां का दौरा कर रहे हैं। भले ही पूरा क्षेत्र ट्रंप प्रशासन की सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को लेकर सशंकित हो और चीन के उभार को कोई चुनौती न मिल रही हो फिर भी यह मंच वैश्विक राजनीति और अर्थशास्त्र के मोर्चे पर नए सामरिक समीकरणों का संकेत करता है। भले ही ट्रंप ने अपने एशियाई दौरे की शुरुआत यह कहते हुए की हो कि कोई भी तानाशाह या शासन अमेरिकी संयम को कमतर करके न आंके, लेकिन इतना तो तय है कि चीन और उसके साथियों को साधना अमेरिका के लिए टेढ़ी खीर बन गया है।

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