The United States will pull out of UNESCO, the international scientific and cultural heritage organization, at the end of 2018,
Recent context
अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक व सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) से अलग होने का ऐलान कर दिया है। इस घोषणा में उसने कहा कि यूनेस्को लंबे समय से इजरायल विरोधी रुख अपना रहा है जिसके चलते उसने इस संस्था से अलग होने का फैसला लिया है।
अमेरिका और UNESCO के बीच मतभेद कोई नई बात नहीं है।
- 2011 में फिलस्तीन के यूनेस्को का सदस्य बनने के बाद से ही अमेरिका उससे नाराज चल रहा था और उसने यूनेस्को की फंडिंग में कटौती भी कर दी थी।
UNESCO
गौरतलब है कि यूनेस्को 1946 में बनी एक वैश्विक संस्था है जो विश्व धरोहरों को चिह्नित करने और उन्हें संजोने के लिए जानी जाती है। इस काम के जरिए इसने इसने अहसास दिलाया कि विश्व की तमाम धरोहरों पर पूरी मानवता का हक है और इस क्रम में विश्व को एक सांस्कृतिक सूत्र में बांधने का काम किया। यूनेस्को ने तमाम देशों में अपनी सांस्कृतिक पहचान को संजोकर रखने की एक तमीज भी पैदा की। उन्हें बचाकर रखने के तरीके सिखाए और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया। आज जब दुनिया में कूटनीतिक स्तर पर कटुता बढ़ती जा रही है, तब यूनेस्को की भूमिका महत्वपूर्ण बड़ी महत्वपूर्ण हो गई है। ऐसे में जरूरत इसे और मजबूत बनाने की है। अपने राजनीतिक हितों की वजह से इसे कमजोर करना ठीक नहीं। लेकिन अमेरिका के ताजा रुख से इसका कमजोर पड़ना तय है।
IS this a new phenomena
संकट सिर्फ यूनेस्को तक सीमित नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का रुख शुरू से संयुक्त राष्ट्र से पंगे लेने का रहा है। प्रेजिडेंट बनने के पहले से ही वह इसकी आलोचना करते रहे हैं। यूनेस्को से रिश्ता तोड़ने के तुरंत बाद अमेरिका ने संकेत दिया कि वह संयुक्त राष्ट्र के अन्य संगठनों से भी अलग होने का फैसला कर सकता है। यूएन में अमेरिका की स्थायी प्रतिनिधि निकी हेली ने इन सभी संगठनों को कड़ी चेतावनी दी कि उनका मूल्यांकन भी ‘अमेरिका फर्स्ट’ वाले नजरिए से ही किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अमेरिकी करदाता उन नीतियों के लिए भुगतान क्यों करते रहें, जिनका रुख हमारे मूल्यों के प्रति शत्रुतापूर्ण है, और जो हमारे न्याय और सामान्य ज्ञान का मजाक उड़ाती हैं। सवाल यह है कि क्या अमेरिका यूएन को पूरी तरह अपनी नीतियों पर चलाना चाहता है? यूएन का गठन एक ऐसे तटस्थ वैश्विक मंच के तौर पर किया गया था जहां कोई भी विवाद मिल-जुलकर सुलझाया जा सके। यह तभी संभव है जब इस संस्था में सबका भरोसा कायम रह सके। यह किसी एक देश या गुट के प्रति झुका रहेगा तो इसकी विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी। अमेरिका विश्व में शांति और सौहार्द कायम करने की बात करता है। यह लक्ष्य यूएन के जरिए ही हासिल किया जा सकता है। बेहतर होगा कि वह इसे मजबूत बनाए