क्या चीन का विश्वास सम्भव

Was a mediation proposal from American side right?

जैसा कि अपेक्षित था, भारत ने चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मध्यस्थता प्रस्ताव को खारिज कर दिया। वास्तव में यदि ट्रंप भारत संग खड़े होना चाह रहे थे तो उन्हें मध्यस्थता की पेशकश करने के बजाय चीन को चेताना चाहिए था। पता नहीं क्यों उन्होंने ऐसा करने के बजाय यह बयान भी दाग दिया कि भारतीय प्रधानमंत्री ने सीमा विवाद पर उनसे बात की थी? आखिर ऐसे आधारहीन बयान देकर वह क्या साबित करना चाह रहे हैं?

UNRELIABLE CHINA & USA

  • अमेरिकी राष्ट्रपति की तरह से चीनी नेतृत्व के इरादे को भी भांपना मुश्किल है।
  • हालांकि चीन ने भी ट्रंप की मध्यस्थता पेशकश को खारिज करते हुए यह कहा कि वह भारत के साथ अपने विवाद को सुलझाने में सक्षम है, लेकिन यदि वास्तव में उसका इरादा ऐसा ही है तो फिर उसकी सेना भारतीय सीमा पर छेडछाड़ क्यों कर रही है?
  • लगता है चीन यह समझने को तैयार ही नहीं कि उसकी धरती पर पनपे कोरोना वायरस ने दुनिया भर में जैसी तबाही मचाई है, उससे उसके प्रति गुस्सा बढ़ रहा है। दुनिया का यह गुस्सा उसे बहुत भारी पड़ने वाला है। जब उसे अपनी दुनिया में अपनी छवि बचाने की चिंता करनी चाहिए, तब वह पड़ोसी देशों को परेशान करने और दादागीरी दिखाने में लगा हुआ है। उसे इसकी कीमत भी चुकानी ही होगी।

CHINA & RISING NEGATIVE PERCEPTION

यदि चीन यह मान रहा है कि वह उग्रता का प्रदर्शन करके अपनी बात मनवा लेगा तो आज के युग में ऐसा होने वाला नहीं है। भले ही वह विश्व महाशक्ति बनने को आतुर हो, लेकिन सच्चाई यह है कि उसके अधिकांश पड़ोसी देश उसे क्षेत्रीय और विश्व शांति के लिए खतरा मानने लगे हैं।

 

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  • वह केवल दक्षिण चीन सागर से जुड़े देशों को ही नहीं धमका रहा, बल्कि ताइवान को भी आंखें दिखा रहा है। अब तो वह हांगकांग पर भी अपने तानाशाही भरे कानून थोपने के लिए जोर-जबरदस्ती कर रहा है।
  • इसके नतीजे में वह केवल दुनिया भर में बदनाम ही नहीं होगा, बल्कि उससे दूरी बनाने वाले देशों की संख्या भी बढ़ती जाएगी। ऐसे देशों में भारत की गिनती होना स्वाभाविक है।

चीन अपनी भारत विरोधी हरकतों से भारतीयों के मन-मस्तिष्क में अपने लिए अविश्वास भरने का ही काम कर रहा है। यदि चीन एशिया की एकमात्र शक्ति बनने के नशे में मनमानी करना जारी रखता है तो फिर भारत के पास इसके अलावा और कोई उपाय नहीं कि वह उससे दूरी बनाने के ठोस कदम उठाए। ये कदम तब तक उठाए जाने चाहिए, जब तक चीनी नेतृत्व यह समझने को तैयार नहीं होता कि एक लोकतांत्रिक और जिम्मेदार चीन से तो निर्वाह हो सकता है, अड़ियल-अविश्वसनीय और तानाशाह चीन से नहीं।

Reference: https://www.naidunia.com/

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