भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना गया है। ऐसा नहीं कि भारत पहली बार इसके लिए चुना गया है, यह आठवीं बार है, लेकिन भारत के सामने इस समय चुनौतियां बड़ी हैं।
- एक तरफ चीनी अतिक्रमण है
- दूसरी तरफ चीन के इशारे पर नेपाल का प्रलाप है तो
- तीसरी तरफ चीन का पिछलग्गू पाकिस्तान लगातार एलओसी पर संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रहा है।
बहरहाल, भारत की जीत, वह भी भारी अंतर से बताती है कि दुनिया में भारत का कद ऊंचा हुआ है। सरकार की डिप्लोमेसी सिरे चढ़ी है। भारत को 192 वोटों में 182 वोट मिलना इस बात का जीवंत उदाहरण है। हालांकि, भारत को सदस्यता हासिल करने के लिए मात्र 128 वोटों की ही जरूरत थी। अब की बार भारत 2021-22 की अवधि के लिए यूएनएससी का अस्थायी सदस्य बना है।
UNSC OBJECTIVE
- संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में सबसे ज्यादा प्रभावी सुरक्षा परिषद का दायित्व विश्वभर में शांति व सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
- साथ ही संयुक्त राष्ट्र में नये सदस्यों को जोड़ना और इसके चार्टर में बदलाव से जुड़े कार्य भी सुरक्षा परिषद के दायित्व में शामिल हैं।
- इसके अलावा दुनियाभर में शांति मिशन भेजना तथा यदि दुनिया के किसी हिस्से में मिलिट्री एक्शन जरूरी हो तो सुरक्षा परिषद प्रस्ताव परित करके उसे लागू भी करती है।
INDIA & UNSC
भारत पहली बार 1950 में और आखिरी बार 2011 में अस्थायी सदस्य चुना गया था। निस्संदेह भारत की सफलता इसलिये भी सुनिश्चित थी क्योंकि भारत एशिया-प्रशांत की अस्थायी सीट के लिए एकमात्र उम्मीदवार था। इस तरह भारत संयुक्त राष्ट्र के पंद्रह शक्तिशाली देशों की परिषद का हिस्सा बन गया है। निस्संदेह भारत विरोधी और परिषद के स्थायी सदस्य चीन और पाक के संरक्षक के तौर पर उसकी भूमिका पर भारत की उपस्थिति का दबाव रहेगा।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. त्रिमूर्ति कहते हैं कि सुरक्षा परिषद में भारत की मौजूदगी विश्व में वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को मजबूती देगी, निस्संदेह इससे हमारी सहअस्तित्व की अवधारणा को बल मिलेगा। कहीं न कहीं भारत की इस कामयाबी ने प्रधानमंत्री की विश्व में नेतृत्वकारी भूमिका पर भी मोहर लगाई है। वहीं भारत की चिर-प्रतीक्षित सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की दावेदारी को भी बल मिलता है। यानी भारत को इस सदस्यता के हासिल होने से कोरोना काल के बाद विश्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर भी मिलेगा।
उल्लेखनीय है कि भारत ने आतंकवाद से मुकाबला तथा बहुपक्षवाद व समानता पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता के साथ अपनी चुनावी मुहिम चलायी थी। भारत ने इस दस्तावेजी मुहिम में ‘पांच-एस’ दृष्टिकोण को सामने रखा था, जिसके लक्ष्य थे—सम्मान, संवाद, शांति, समानता और समृद्धि। बहरहाल, अब दो साल के लिए निर्वाचित होने के बाद भारत संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च निर्णय लेने वाली इकाई में आगामी जनवरी से काम करना शुरू करेगा। यह अच्छी बात है कि अब जब चीन कश्मीर या पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के पक्ष में आवाज उठाता नजर आयेगा तो उस समय भारत की वहां उपस्थिति प्रभावी भूमिका में हो सकती है। ऐसा चीन पिछले वर्षों में लगातार करता रहा है। बहरहाल, प्रधानमंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का आभार जताया है और शांति, सुरक्षा और समता के लिए मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जतायी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अपने इस आठवें कार्यकाल का उपयोग भारत सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट के लिए अपनी दावेदारी मजबूत करने की दिशा में करेगा। साथ ही भयावह संकट से जूझती मानवता को कोविड-19 संकट के बाद नई दिशा देने में भारत निर्णायक भूमिका निभा सके। ऐसे वक्त में जब संयुक्त राष्ट्र अपनी स्थापना की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, भारत अस्थायी सदस्य के रूप में संगठन को वर्तमान वास्तविकताओं से रूबरू कराने व विश्वसनीय संस्था की इसकी छवि को पुख्ता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा।
REFERENCE: https://www.dainiktribuneonline.com/