सहयोगी और प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद हासिल करने के उद्देश्य से नीति आयोग विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों में विकास संकेतकों पर जोर देता रहा है। नीति आयोग ने फरवरी, 2018 में ‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत’ पर एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें विभिन्न स्वास्थ्य मानकों के आधार पर राज्यों/केंद्र प्रशासित प्रदेशों को अलग-अलग श्रेणी दी गई थी। जीवन में जल के महत्व को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए नीति आयोग ने समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई) पर एक रिपोर्ट तैयार की है।
- समग्र जल प्रबंधन सूचकांक जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदर्शन के आकलन और उनमें सुधार लाने का एक प्रमुख साधन है। ऐसा जल संसाधन और पेयजल एवं सफाई मंत्रालयों और सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की साझेदारी के साथ जल आंकड़ा संग्रहन अभ्यास के जरिए किया जा चुका है। यह सूचकांक राज्यों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों को उपयोगी सूचना उपलब्ध कराएगा जिससे वे अच्छी रणनीति बना सकेंगे और जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन में उसे लागू कर सकेंगे।
- रिपोर्ट में गुजरात को वर्ष 2016-17 के लिए प्रथम श्रेणी में रखा गया, इसके बाद मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र का नंबर आता है। पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों में वर्ष 2016-17 के लिए त्रिपुरा को प्रथम श्रेणी दी गई, इसके बाद हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, और असम का स्थान रहा। सूचकांक में वृद्धि संबंधी बदलाव के संदर्भ में (2015-16 स्तर) सभी राज्यों में राजस्थान को प्रथम श्रेणी में रखा गया जबकि पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों में त्रिपुरा प्रथम स्थान पर रहा। नीति आयोग ने भविष्य में इसे सालाना स्तर पर प्रकाशित करने का प्रस्ताव किया है।
समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई) के बारे में
समग्र जल प्रबंधन सूचकांक को नीति आयोग ने विकसित किया है। इसमें भूजल, जल निकायों की पुनर्स्थापना, सिंचाई, खेती के तरीके, पेयजल, नीति और प्रबंधन (बॉक्स-1) के विभिन्न पहलुओं के 28 विभिन्न संकेतकों के साथ 9 विस्तृत क्षेत्र शामिल हैं। समीक्षा के उद्देश्य से राज्यों को दो विशेष समूहों- ‘पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्य’ और ‘अन्य राज्य’ में बांटा गया।