- आरईडीडी+ का मतलब ‘वन कटाई एवं वन ह्रास से उत्सर्जन में कमी’, वन कार्बन स्टॉक का संरक्षण, जंगलों का सतत प्रबंधन और विकासशील देशों में वन कार्बन के स्टॉक में वृद्धि है। आरईडीडी+ रणनीति का उद्देश्य वन संरक्षण के काम को तेज करते हुए जलवायु परिवर्तन में कमी को हासिल करना है। आरईडीडी+ रणनीति से वन कटाई एवं वन ह्रास के वाहकों को नियंत्रित करने, वन कार्बन स्टॉक बढ़ाने के लिए रोडमैप विकसित करने और आरईडीडी+ कार्यों के जरिए वनों के प्रबंधन को बनाए रखने में मदद मिलेगी।
- आदिवासियों, जंगल में रहने वाले अन्य लोगों और पूरे समाज का सहयोग और उनकी भागीदारी आरईडीडी+ (वन कटाई एवं वन ह्रास से उत्सर्जन में कमी) रणनीति को लागू करने में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
- आरईडीडी+ से जुड़ी गतिविधियां स्थानीय समुदायों की आजीविका को बनाए रखने में मदद करती हैं और इससे जैव विविधिता का संरक्षण भी होता है।
- आरईडीडी+ रणनीति देश की एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) प्रतिबद्धताएं पूरी करने में मदद करेगा और जंगल पर आश्रित लोगों की आजीविका में भी योगदान करेगा।
- भारत ने पेरिस समझौते के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) में कहा है कि 2030 तक अतिरिक्त वन क्षेत्र एवं वृक्षारोपण को बढ़ाया जाएगा जिससे 2.5 से 3 अरब टन कार्बन डाईआक्साइड गैस को रोका जा सकेगा। भारत यूएनएफसीसीसी को अपनी पहली द्विवार्षिक रिपोर्ट में बताया है कि भारत के जंगल देश के कुल जीएचजी उत्सर्जन के 12 फीसदी हिस्से को समाहित कर लेता है। इस तरह भारत के वन क्षेत्र जलवायु परिवर्तन में कमी के लिए सकरात्मक किफायती योगदान कर रहा है।
- आरईडीडी+ पर यूएनएफसीसीसी के फैसलों के अनुरूप भारत ने राष्ट्रीय आरईडीडी+ रणनीति तैयार की है। मौजूदा राष्ट्रीय हालात में तैयार रणनीति में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, हरित भारत मिशन और यूएनएफसीसीसी के प्रति भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के अनुरूप सुधार किया गया