Debate Summary by GShindi.com (Contributed by Sumit Jha)
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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित संयुक्त राष्ट्र आज भी जस के तस नजर आते हैं. पिछले 10-15 सालों में कई बार संयुक्त राष्ट्र के पुनर्गठन की मांग उठी है, लेकिन अड़ंगा लगता रहा है. इस बार 72 वीं महासभा की बैठक के दौरान फिर इस मुद्दे को भारत ने उठाया है. भारत ने संयुक्त राष्ट्र में सचिवालय स्तर के बजाय व्यापक बदलाव की वकालत की है़. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ 10 से 12 देशों की बैठक में 10 सूत्री राजनीतिक घोषणा पर सहमति बनाने की कोशिश की गई. यह घोषणा यूएन में बदलाव लाने के लिए यूएस महासचिव को समर्थन देती है.
संयुक्त राष्ट्र में सुधार के पहलू:-
1. विकास कार्यक्रम में बदलाव
2. शांति स्थापना कार्यक्रम में बदलाव
3. गर्वनिंग ढांचे में बदलाव
4. सुरक्षा परिषद के आधारभूत ढांचे में बदलाव
सबसे अहम सुधारों में एक है सुरक्षा परिषद के आधारभूत ढांचे में बदलाव. 1945 में गठित सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य हैं. चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका. वीटो पावर होने के कारण कई बार प्रस्ताव आम सहमति के बिना गिर जाता है. साल 2000 के बाद रूस ने अब तक 17 बार वीटो का इस्तेमाल किया, वहीं अमेरिका ने 16 बार वीटो का इस्तेमाल किया. जी 4 सदस्य लगातार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए मांग कर रहे हैं. इनमें ब्राजील, जर्मनी , जापान और भारत है. हालांकि पाकिस्तान , मेक्सिको, इटली जैसे करीब 13 देश बार- बार इस राह में रोड़ा अटका रहे हैं. जबकि 21वी सदी के बदलती भू-राजनीति परिस्थिति में भारत स्थाई सदस्यता के लिए हकदार है.
क्यों नहीं होता पुनर्गठन:-
सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य और विकसित देशों के ढुलमुल रवैया के कारण बार-बार पुनर्गठन की मांग के बावजूद संयुक्त राष्ट्र का पुनर्गठन नहीं हो पा रहा है. युएन का 25 फ़ीसदी बजट खर्च USA उठाता है. ऐसे में जब भी बदलाव की बात उठती है तो यूएस सबसे पहले दूसरे देशों को संयुक्त राष्ट्र के बजट के खर्च को वहन करने के लिए कहता है. इसके अलावा विकासशील देशों के एकजुटता में कमी भी एक प्रमुख वजह है.
भारत को क्या किए जाने की जरूरत:-
संयुक्त राष्ट्र के बाक़ी अंगों और कार्यक्रमों में भारत एक अहम भूमिका निभाता रहा है. मसलन मिलेनियम डेवलपमेंट गोल या फिर सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल में भारत ने अहम भूमिका निभाई. 1268 प्रस्ताव के तहत काउंटर टेररिज्म कमेटी में भी भारत ने अहम भूमिका निभाई है. ऐसे में जरुरी है कि भारत संयुक्त राष्ट्र के बाक़ी अंगों में अहम भूमिका निभाते रहे. इसके अलावा जी-20 और ब्रिक्स जैसी संस्थाओं में भारत अग्रणी भूमिका निभाए. सुरक्षा परिषद में कई अहम फैसले अटक जाते हैं. ऐसे में उन फैसलों को महासभा में लाने की जरूरत है. इसका उदाहरण है 1950-51 में कोरिया के मुद्दों को जब सुरक्षा परिषद में हल नहीं किया जा सका तो उन मुद्दों को महासभा में लाया गया और महासभा से हल किया गया. भारत को अपनी कूटनीतिक ताकत सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए सिर्फ जाया नहीं करनी चाहिए, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंगों और बाकी संस्थाओं में अहम भूमिका निभाते हुए संयुक्त राष्ट्र में सुधार को लेकर कदम उठाने चाहिए.