Debate Summary by GShindi.com (Contributed by Sumit Jha)
भारत संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक है फिर भी आज अपने अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र में लड़ रहा है. हालांकि विभिन्न मुद्दों पर भारत सक्रिय भूमिका निभाता रहा है. जलवायु परिवर्तन और शांति स्थापना जैसे कार्यक्रम में भारत ने अहम भूमिका निभाई है. एक दौर में भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व भी किया था. लेकिन मौजूदा परिस्थिति में भारत को संयुक्त राष्ट्र में अपनी भूमिका को लेकर और ज्यादा सतत प्रयास करने होंगे.
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का मकसद:-
संयुक्त राष्ट्र की 72 वीं महासभा को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का मकसद याद दिलाया. बकौल सुषमा स्वराज "संयुक्त राष्ट्र का गठन धरती पर रहने वाले लोगों के कल्याण, उनकी सुरक्षा, उनके सामाजिक और आर्थिक विकास और उनके अधिकारों के बचाव के लिए किय गया है. इन सभी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भारत पूरा समर्थन करेगा"
संयुक्त राष्ट्र के सामने चुनौतियां:-
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र के सामने कई चुनौतियां गिनाई, जिनमें प्रमुख हैं:-
1. आतंकवाद और हिंसा
2. जलवायु परिवर्तन
3. समुद्री सुरक्षा पर सवाल
4. विभिन्न कारणों से अपने देशों से लोगों का पलायन
5. गरीबी और भुखमरी
6. महिलाओं को समानता का अधिकार
7. परमाणु प्रसार
8. साइबर सुरक्षा
चुनौतियां और भारत:--
चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 2015 में 2030 का एजेंडा तय किया. इसे पूरा करने के लिए भारत लगातार प्रयत्नशील है. मसलन वित्तीय समावेशन की दिशा में भारत में अहम कदम उठाया है प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत 30 करोड़ लोगों के खाते खोले गए. इसके अलावा मुद्रा, स्टार्ट अप जैसी योजनाओं के जरिए कई लोगों को लोन दिया गया, जो बैंक तक भी नहीं पहुंच पाते थे. जलवायु परिवर्तन की दिशा में भी भारत ने कई अहम कदम उठाए हैं. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपने भाषण में कहा कि प्रकृति से भारत का सैद्धांतिक रिश्ता है. यानी भारत ने अपना एक नजरिया हर मुद्दे पर स्पष्ट तौर पर पेश किया है. पूरे विश्व को एक परिवार मानने वाला भारत हमेशा से सिद्धांत के जरिए वैश्विक परिवर्तन लाने की दिशा में काम किया है.
हर बार बात लेकिन असर क्यों नहीं:-
हर बार भारत अहम मुद्दों पर गंभीरता से अपनी बात रखता है. हालाकि उन मुद्दों को लेकर बात आगे नहीं बढ़ पाती इसके पीछे एक बड़ी वजह है सिद्धांत और स्वार्थ के बीच टकराव. दरअसल कई विकसित देश अपने स्वार्थों के लिए सिद्धांतों को दरकिनार कर देते हैं मसलन पेरिस समझौते से अमेरिका के हटने की नीति. आतंकवाद को लेकर भी विकसित देशों का दोहरा रवैया सामने आता है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने महासभा में दिए भाषण में कहा कि आतंकवाद से सभी देश ग्रसित हैं लेकिन अब तक आतंकवाद की परिभाषा तय नहीं की गई. वहीं संयुक्त राष्ट्र में सुधार को लेकर कई बार भारत ने पहल की, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बने संयुक्त राष्ट्र आज भी जस के तस बने हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में आज भी पांच स्थाई सदस्य हैं. चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका. भारत सुरक्षा परिषद में 7 बार अस्थाई सदस्य रह चुका है. सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता को लेकर भारत हकदार है लेकिन फिर भी किसी न किसी कारणवश उसे स्थाई सदस्यता हासिल नहीं हो रही है.
भारत को क्या करना होगा:-
मौजूदा परिस्थिति में भारत के पास विकासशील देशों का नेतृत्व करने की क्षमता है, लेकिन आज अफ्रीका में भारत की पकड़ कमजोर होती जा रही है. वहीं लैटिन अमेरिका जैसे देशों में भी भारत अपनी पकड़ मजबूत करते हुए विकासशील देशों का नेतृत्व कर सकता है. ऐसे में भारत बहुध्रुवीय दुनिया में एक ध्रुव बन कर उभर सकता है. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में अपनी सदस्यता हासिल करने के लिए भारत को लगातार प्रयास करते रहना चाहिए लेकिन साथ ही साथ दूसरे प्लेटफॉर्म पर भी भारत को आगे आना होगा.