असफलता सफलता की पीढ़ी है

आईएएस अफसर और पैरा ओलम्पिक गेम्स में बैडमिंटन चैंपियन सुहास एलवाई ने उदाहरणों के जरिए बच्चों को असफलताओं से उबरने का संदेश दिया। उन्होंने कहा, अमेरिका के ब्रेयान एक्टन याहू कंपनी में नौकरी करते थे। वर्ष 2007 में उन्होंने वहां से नौकरी छोड़कर फेसबुक में आवेदन किया, लेकिन उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया। वर्ष 2009 में ब्रेयान ने एप्पल का आईफोन खरीदा।

उसमें तमाम एप्स देखकर उन्हें एप बनाने का आइडिया आया। उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर वॉटसएप बनाया। जिस फेसबुक कंपनी ने उन्हें नौकरी देने से मना कर दिया था, वर्ष 2014 में उसी फेसबुक कंपनी ने ब्रेयान का वॉटसएप करोड़ों डॉलर में खरीदा।

इसी तरह हंगरी के कैरिपोल टेक्सस वहां की सेना में सार्जेंट ओर निशानेबाज (शूटर) थे। 1936 में उन्हें ओलम्पिक में नहीं भेजा गया। अधिकारियों ने उनसे 1940 में मौका देने की बात कही। 1938 में ही टेक्सस का एक्सीडेंट हुआ और उन्हें अपना दायां हाथ गंवाना पड़ा। बाद में द्वितीय विश्व युद्ध के चलते ओलम्पिक हुए भी नहीं। अगला ओलम्पिक 1950 में हुआ। इस बीच टेक्सस ने बायें हाथ से शूटिंग की प्रैक्टिस की और ओलम्पिक में अपनी भागीदारी का दावा पेश किया।

अधिकारियों ने उनकी हंसी उड़ाई। बायें हाथ से शूटिंग करके ओलम्पिक पदक जीतने की क्षमता पर सवाल उठाए। लेकिन टेक्सस अपने दावे पर डटे रहे। अंतत: उन्हें ओलम्पिक भेजा गया। उन्होंने न सिर्फ 1950 में बायें हाथ से शूटिंग करते हुए गोल्ड मैडल जीता बल्कि 1954 के ओलम्पिक में भी देश को स्वर्ण पदक का तोहफा दिया

सुहास एलवाई ने कहा कि हार से लड़ना सीखना होगा। डर के आगे ही जीत है। वर्ष 2004 में जब मैं इंजीनियरिंग पास कर रहा था तो एमटेक करने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में एडमिशन के लिए इंटरव्यू देने गया। वहां मुझे रिजेक्ट कर दिया गया। मैं इससे घबराया नहीं और सिविल सर्विसेज के लिए तैयारी की।

उन्होंने डर को जीतने का दूसरा उदाहरण देते हुए कहा कि 22 नवंबर 2016 को चीन के बीजिंग में आयोजित पैरा ओलम्पिक में पहला मैच था। माइनस थ्री डिग्री तापमान और चीनी खिलाड़ी। कभी ऐसे माहौल में नहीं खेला इसलिए घबराहट लग रही थी। पहला गेम मैं हार गया। दूसरे गेम में हारने का मतलब था कि खेल से बाहर हो जाना। दूसरे गेम के हाफ टाइम तक मैं काफी पीछे था।

एक पल को मन में ख्याल आया कि मैं इतना डिफेंसिव क्यों हूं। गेम में या तो हार होगी या जीत। इसके बाद मैंने डर को मन से निकाल दिया। अजीब सी शक्ति आ गई। फिर ऐसा दिल खोलकर खेला कि न सिर्फ वह गेम जीता बल्कि गोल्ड मैडल भी हासिल किया। उन्होंने कहा कि डर के आगे ही जीत है। मेरे लिये वहां का माहौल अजनबी था। मन में डर था। जैसे ही डर को बाहर किया, जीत हासिल हो गई।

Source: Amar_Ujala

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