आज समाज में सफल कौन है? पहला जवाब होगा- वह जिसके पास ढेर सारा पैसा हो। पर ठहरिए, यह सोच बदल रही है। अब देश के ज्यादातर प्रफेशनल्स सफलता का पर्याय संपन्नता को नहीं मानते। उनकी राय में सफल वही है जिसके पास खुशी है, सुकून है।
Professional Networking Site ‘लिंक्ड-इन’ के एक सर्वे के अनुसार करीब 72 प्रतिशत भारतीयों ने माना कि सफलता का अर्थ है खुशी हासिल करना। 65 फीसदी के लिए बेहतर स्वास्थ्य और 57 प्रतिशत के लिए पेशेवर जिम्मेदारी और निजी जीवन के बीच अच्छा संतुलन ही सफलता है। सर्वे में करीब 79 फीसदी भारतीयों ने माना कि शिक्षा का सफलता में महत्वपूर्ण योगदान है।
लिंक्ड-इन ने यह सर्वे पिछले वर्ष 12 अक्टूबर से 3 नवंबर के बीच ऑनलाइन कराया था। इसमें सोलह देशों के 18,191 लोगों ने हिस्सा लिया था। सर्वे से एक बात तो साफ है कि भारतीय प्रफेशनल्स अब पैसे के पीछे नहीं भाग रहे। उनकी प्राथमिकताएं बदल गई हैं। वे संतुलन को महत्व देने लगे हैं। उन्हें पैसे चाहिए, लेकिन उसके साथ-साथ एक सुखद जीवन भी चाहिए। यह एक बड़े सामाजिक बदलाव का भी संकेत है।
दरअसल भूमंडलीकरण और उदारीकरण की शुरुआत के साथ ही नौकरी के स्वरूप में भारी बदलाव आया। विदेशी और भारतीय कंपनियों ने योग्य पेशेवरों को इतना वेतन देना शुरू किया जो अब तक कल्पना से परे था। कंपनियों में आपसी प्रतियोगिता के कारण अनुभवी प्रफेशनल्स को आगे बढ़ने के खूब अवसर मिले और उन्होंने उनका भरपूर लाभ उठाया। एक ऐसा माहौल बना कि अधिक से अधिक मेहनत करके बेहिसाब दौलत कमाई जा सकती है। प्रफेशनल्स के बीच अधिक से अधिक सैलरी कमाने की होड़ लग गई। लेकिन पैसे कमाने की गरज में वे बाकी चीजें भूल गए। अब पहले की तरह कामकाज के घंटे सीमित नहीं थे। अब कंपनी द्वारा दिए गए टारगेट पूरा करने के लिए सोलह से अठारह घंटे तक काम करने का चलन शुरू हो गया। बहरहाल इससे पैसे की बरसात तो हुई, लेकिन प्रफेशनल्स ने अपना जीवन दांव पर लगा दिया। उनका स्वास्थ्य खराब हो गया, पारिवारिक जीवन चौपट हो गया। उन्होंने जो पैसे हासिल किए, उसका ढंग से उपभोग नहीं कर पाए। इस पीढ़ी के हश्र को इनके बाद आए प्रफेशनल्स ने देखा है और उससे सबक लिया है। यह पीढ़ी जीवन का आनंद उठाना चाहती है। वह चाहती है कि उसका पारिवारिक जीवन सुखद हो, उसे घूमने-फिरने का मौका मिले। पिछले कुछ समय से दुनिया भर की सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं ने भी घोषित-अघोषित रूप से एक वैचारिक आंदोलन चलाया है जिसमें भौतिक साधनों की होड़ से बचने, स्वस्थ रहने और जीवन में संतुलन स्थापित करने पर जोर दिया जा रहा है। इन सबका परोक्ष प्रभाव भी भारतीय पेशेवरों पर पड़ रहा है
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