World over Artificial Intelligence has found a pull and debates are there that it could lead to human extinction and will be a big cause for our socio economic problems.
#Business standard
Arificial Intelligence: Conflicting views
इन दिनों कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का जिक्र भर कर दिया जाए तो एकदम अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि इससे रोजगार कम नहीं होंगे बल्कि बढ़ेंगे।
वहीं अन्य लोगों का कहना है कि भारत जैसे देशों में अगर रोजगार मशीनों के हाथ में चले गए तो पहले से व्याप्त सामाजिक संकट और गहरा हो जाएगा।
पहले खेमे के लोग अपने पक्ष में ई-कॉमर्स का उदाहरण देते हैं जिसने कई खुदरा रोजगार समाप्त अवश्य किए हैं लेकिन कूरियर के क्षेत्र में बहुत सारे रोजगार पैदा भी किए हैं। इसकी वजह से लोगों में कौशल विकास भी हुआ है। उदाहरण के लिए शेयर टैक्सी सेवाओं के वाहन चालकों को ही देखें। उन्होंने अपने दम पर जीपीएस का इस्तेमाल करना और जगहों को तलाश करना सीख लिया है। यह उनके कौशल का विकास ही तो है। मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट के शोध के मुताबिक तकनीक के इस्तेमाल से लाखों कामगार लाजिमी तौर पर नए कौशल सीखेंगे। इसके बावजूद उन्हीं समान प्रौद्योगिकी में तेजी से सुधार होने से भी लाखों कामगारों के लिए नए अवसर तैयार होंगे। इसमें कई कम कुशल कर्मचारी भी शामिल हैं।
इस खेमे के कई लोगों का यह भी मानना है कि जब तक मशीनें सोचने-विचारने में अक्षम हैं तब तक मानवीय श्रम का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता। हालांकि मशीनों के सोचने विचारने संबंधी प्रश्न भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि यह कि क्या पनडुब्बियां स्वत: तैर सकती हैं। उदाहरण के लिए ब्रिटेन की एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता कंपनी ने हाल ही में अपने कंप्यूटर प्रोग्राम अल्फा गो की एक खबर दी जिसने गो नामक खेल में विश्व विजेता को परास्त किया। वर्ष 2011 में आईबीएम द्वारा निर्मित और कृत्रिम बुद्धिमत्ता और संज्ञानात्मक कंप्यूटिंग पर आधारित एक प्रोग्राम वॉटसन ने एक क्विज शो में इंसानों को परास्त किया था। यह प्रोग्राम इंसानों की तरह सोच सकता है और सवालों के जवाब दे सकता है।
Opposing view
वहीं दूसरी ओर जिन लोगों को लगता है कि इसकी वजह से सामाजिक संकट आ सकता है उनका विचार एकदम अलग है। ऐसे लोगों में से एक है अमेरिकी कंप्यूटर विज्ञानी जेरी कपलान। उन्होंने अपनी विचारोत्तेजक पुस्तक ह्यïूमन्स नीड नॉट एप्लाई में भविष्य की एक ऐसी तस्वीर पेश की है जहां मशीनों के अतिक्रमण के बाद की दशा का वर्णन है। बैं
क ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के एक शोध में कहा गया है कि कई देश ऐसे मोड़ पर पहुंच रहे हैं जहां रोबोट का इस्तेमाल करना किसी मानव श्रमिक की तुलना में 15 फीसदी तक सस्ता होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि सन 2025 तक दुनिया का 45 फीसदी विनिर्माण रोबोट के हाथ में होगा। फिलहाल यह स्तर 10 फीसदी है।
CASE STUDY: IBM
आईबीएम का उदाहरण लेते हैं जो एक टेक्स्ट टू स्पीच इंजन मुहैया करा रहा है। यह एकदम सही ढंग से प्रतिक्रिया देता है। जब फोन करने वाले नाराज होते हैं तो यह भी बहुत उत्साहित होकर जवाब नहीं देता। जरा सोचिए यह किसी कॉल सेंटर के कर्मचारियों पर कैसा असर डालेगा। इतना ही नहीं। शिक्षण क्षेत्र के भविष्य की तस्वीर भी काफी अलग हो सकती है। कापलन कहते हैं कि प्रौद्योगिकी बहुत बड़े पैमाने पर शिक्षकों की स्थानापन्न बन सकती है। इसके लिए फिलहाल यह व्यवस्था है कि छात्र घर पर ऑनलाइन शिक्षकों के व्याख्यान सुनते हैं और सीखते हैं। इसके बाद वे स्कूल में शिक्षकों और शिक्षण सहायकों की मदद से गृह कार्य पूरा करते हैं। भविष्य में शायद व्याख्यान के लिए शिक्षकों की आवश्यकता ही न हो। बस वे एक सीमित भूमिका में रह जाएंगे। जाहिर सी बात है प्रौद्योगिकी के साथ नई चुनौतियां आएंगी और शिक्षकों की समस्या और बढ़ेगी।
INDIA & AI Policy
इस पूरी बहस के बीच भारत कम से कम एक ऐसी नीति तो ला ही सकता है जो एआई नवाचार को सही ढंग से आगे बढ़ाए। यहां दो बातें हैं: पहला, शिक्षा व्यवस्था और दूसरा कौशल और रोजगार। श्रम बाजार पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के असर की बात करते हुए कपलान एक कठिन प्रश्न खड़ा करते हैं: क्या मौजूदा शिक्षण व्यवस्था पुरानी पड़ चुकी है क्योंकि रोजगार की प्रकृति तेजी से बदल रही है और कौशल बहुत अहम हो चुका है?
सरकार को बहुत तेजी से क्षेत्रीय नवाचार पर गौर करना होगा ताकि विनिर्माण क्षेत्र में स्वचालन पर काम हो सके और विश्वविद्यालयों और स्टार्टअप के साथ रोबोटिक्स के क्षेत्र में साझेदारी की जा सके। ऐसी व्यवस्था लागू करनी होगी जिसकी मदद से ऐसा कौशल पाया जा सके जो भविष्य के लिहाज से बेहतर होगा। चीन पहले ही इस दिशा में काफी बड़ी छलांग लगा चुका है। उसने एक निजी फर्म बनाई है जो ऑनलाइन इंजीनियरिंग प्रयोगशाला के निर्माण का काम करेगी ताकि विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के साथ मिलकर गहन अध्ययन प्रौद्योगिकी की दिशा में आगे बढ़ा जा सके। चीन ने हाल ही में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को लेकर दिशा निर्देश जारी किए हैं। इसका लक्ष्य है सन 2030 तक इस क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व करना। अनुमान जताया गया है कि उस वक्त तक एआई उद्योगों का उत्पादन मूल्य 148 अरब डॉलर का होगा। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें जाग जाना चाहिए