घातक बीमारियों से निजात दिलाएगा एडीज का जीवाणु से संक्रमण
मच्छरों से पैदा होने वाली बीमारियों से जंग का एक रोचक तरीका यह है कि मच्छरों को परजीवी से संक्रमित करा दिया जाए। एडीज एजिप्टी प्रजाति के मच्छर में ऐसे विषाणु होते हैं जो डेंगू, जिका, पीत ज्वर और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों के कारक बनते हैं। इस प्रजाति के मादा मच्छर जब इंसानों को काटते हैं और उनके रक्त में अपने विषाणु छोड़ देते हैं। ये विषाणु मच्छर की कोशिकाओं के भीतर पनपते रहते हैं। जब विषाणु-संक्रमित मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो फिर इन बीमारियों के विषाणु भी पहुंचा देता है।
डेंगू से हर साल 5-10 करोड़ लोग संक्रमित होते हैं जबकि लातिन अमेरिका में जिका महामारी का नवजात शिशुओं पर भयावह असर रहा है। ब्राजील एवं अफ्रीकी देशों में पीत ज्वर का प्रकोप है और चिकनगुनिया ने कई महाद्वीपों में महामारी फैलाई है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि वोल्बाचिया नाम का एक जीवाणु इन मच्छरों में विषाणु संक्रमण कर सकता है। यह जीवाणु एक परजीवी है जो कई रूपों में आता है। कीटों की करीब 60 फीसदी प्रजातियों में यह स्वाभाविक तौर पर मौजूद होता है। कुछ कृमि प्रजाति नेमाटोड्स में भी वोल्बाचिया पाया जाता है। लेकिन एडीज मच्छर इस परजीवी का सामान्य वाहक नहीं है।
यह जीवाणु दो तरह से विषाणु संक्रमण को फैलाता है। इससे मच्छर से प्रतिरोधकता देने वाली प्रणाली मजबूत होती है जिसकी वजह से विषाणु इसे संक्रमित नहीं कर पाता है। यह कोलेस्ट्रॉल जैसे प्रमुख अणुओं के लिए विषाणुओं से प्रतिस्पद्र्धा भी करता है। विषाणुओं को अपना वजूद बनाए रखने के लिए कोलेस्ट्रॉल की जरूरत होती है और वोल्बाचिया कोलेस्ट्रॉल के सेवन में काफी कारगर है। लिहाजा यह मच्छ्रर को संक्रमित कर पाने वाले किसी भी विषाणु को पोषण से वंचित कर देता है। नेमाटोड्स में मौजूद वोल्बाचिया के कुछ रूप खतरनाक होते हैं। वे सूजन पैदा कर सकते हैं जो आगे चलकर फाइलेरिया जैसी बीमारी में भी तब्दील हो सकता है। लेकिन मच्छर-विरोधी प्रयोगों में लगे शोधकर्ताओं ने वोल्बाचिया के जिस रूप का इस्तेमाल किया है वह इंसानों एवं बड़े जानवरों को नुकसान नहीं पहुंचाता है। इस वजह से इस जीवाणु को मच्छर में संक्रमित कराना सुरक्षित एवं पर्यावरण के लिहाज से संपोषणीय है। मेलबर्न एवं ग्लासगो स्थित विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं और मलेशिया के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च ने विश्व मच्छर कार्यक्रम (डब्ल्यूएमपी) के साथ मिलकर एडीज मच्छरों में वोल्बाचिया को पहुंचाने के प्रयोग किए हैं। वर्ष 2011 में मेलबर्न की मोनाश यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्कॉट ओनील की अगुआई में शोधकर्ताओं ने एडीज मच्छरों के अंडों में वोल्बाचिया को इंजेक्ट करना शुरू किया था।
उन्होंने प्राकृतिक तौर पर फल मक्षिकाओं (फ्रूट फ्लाई) में मौजूद जीवाणु से वोल्बाचिया को लिया था। एडीज के अंडों को सेने के बाद वोल्बाचिया-संक्रमित एडीज को क्वींसलैंड के कुछ इलाकों में जंगली एडीज मच्छरों के साथ निषेचन के लिए छोड़ दिया गया। समय बीतने पर यह पता चला कि परीक्षण के लिए चुने गए इलाकों में एडीज-जनित बीमारियों के मामले नगण्य थे जबकि बाकी इलाकों में उनकी संख्या यथावत थी। वोल्बाचिया-संक्रमित नर मच्छर का एक असंक्रमित मादा मच्छर से मिलन होने पर निकले अंडे निर्जीव थे। लेकिन वोल्बाचिया-संक्रमित मादा मच्छर असंक्रमित नरों के साथ मिलकर अंडे दे सकती है जिससे निकलने वाले नवजात मच्छर में वोल्बाचिया मौजूद होंगे। ये जीवाणु-वाहक मच्छर आने वाली कई पीढिय़ों में इसे फैलाते जाएंगे। इसका नतीजा यह होगा कि एक समय बाद महामारी फैलाने वाली विषाणु-जनित बीमारियों के संक्रमण की दर नीचे आ जाएगी।
यह तरीका लंबी अवधि में अधिक कारगर साबित हो सकता है और इससे स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर भी कोई प्रतिकूल असर पडऩे की संभावना नहीं है। यह लागत के लिहाज से भी किफायती होगा क्योंकि जीवाणु पीढ़ी-दर-पीढ़ी खुद ही अपना प्रसार करता जाता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि इस जीवाणु-संक्रमण के बाद नॉर्दर्न क्वींसलैंड इलाके में एडीज-जनित बीमारियां लगभग नदारद हो चुकी हैं। डब्ल्यूएमपी ने 12 देशों में परियोजनाएं चलाई हैं जिनमें 40 लाख आबादी वाले इलाकों में परीक्षण चल रहे हैं। शुरुआती अध्ययनों में वोल्बाचिया का एक रूप डब्ल्यूमेल शामिल था। लेकिन डब्ल्यूमेल के साथ मुश्किल यह है कि यह अधिक तापमान सहन नहीं कर सकता है। दूसरे शोध दल ने यह पाया कि वोल्बाचिया की एक दूसरी किस्म उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में भी बेहतर परिणाम दे सकती है। इस दल के अगुआ स्टीवन सिन्किंस हैं जो ग्लासगो यूनिवर्सिटी में जैवविज्ञानी हैं। सिन्किंस ने कुआलालंपुर के छह चुनिंदा इलाकों में डब्ल्यूएल्बबी नामक जीवाणु-प्रजाति का इस्तेमाल किया जो अधिक तापमान में भी मच्छरों को संक्रमित कर सकता है। 'करंट बायोलॉजी' में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, डब्ल्यूएल्बबी किस्म वाला जीवाणु 36 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में भी सक्रिय रह सकता है।
डब्ल्यूएमपी का दावा है कि वोल्बाचिया जीवाणु के इस्तेमाल को लेकर तीन स्वतंत्र जोखिम आकलन किए गए हैं। इनमें नाममात्र का जोखिम पाया गया यानी वोल्बाचिया जीवाणु इंसानों, जानवरों एवं पर्यावरण तीनों के लिए सुरक्षित है। एडीज मच्छरों पर काबू पाने के दूसरे जैविक तरीकों में अधिक जोखिम हैं। बड़ी आबादी वाले इलाके में आनुवांशिक रूप से संवद्र्धित मच्छरों का इस्तेमाल कर उन्हें प्रजनन से रोकने में बहुत लंबा वक्त लगता है। मच्छर की एक स्थानीय आबादी को पूरी तरह खत्म कर देने के नकारात्मक पर्यावरणीय दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। आखिर कीट-पतंगे भी खाद्य शृंखला का एक अहम हिस्सा हैं। ऐसे में डब्ल्यूएमपी को वोल्बाचिया जीवाणु को लेकर अपने प्रयोगों का दायरा बढ़ाने की जरूरत है।