=>विश्व के बारे में
** वैश्विक आर्थिक वृद्घि 2.5 फीसदी अथवा कम की धीमी गति पर बरकरार रहेगी। हालांकि विश्व बैंक ने अपने हालिया पूर्वानुमान में इसके 2.9 फीसदी रहने की बात कही है। इस बीच अमेरिका, यूरोप और चीन जैसे बड़े देशों की विकास दर 2015 की दर के आसपास ही रहेगी। ये देश कुल अर्थव्यवस्था के 60 फीसदी के बराबर हैं।
- चीन 110 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वर्ष 2015 में अनुमानित 7 फीसदी की आर्थिक वृद्घि दर से नीचे ही विकसित होगी। लेकिन अगर यह दर घटकर 5 फीसदी भी रह जाती है तो भी विश्व अर्थव्यवस्था में चीन का योगदान किसी भी अन्य देश की तुलना में ज्यादा ही रहेगा।
- इस अप्रत्याशित आर्थिक मंदी और पिछले तीन साल से उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाने के बावजूद राष्ट्रपति शी चिनफिंग और कम्युनिस्ट पार्टी चीन पर शासन करना जारी रखेंगे।
** यूरोप में राजनीतिक अस्थिरता अपेक्षाकृत कम रहेगी क्योंकि संकटग्रस्त पश्चिम एशिया से शरणार्थियों के वहां पहुंचने पर लगातार द्वंद्व की स्थिति बनी हुई है। इस बीच यूरो क्षेत्र नए सिरे से आर्थिक और वित्तीय दबाव में है। जर्मनी में एंगेला मर्केल के भविष्य को लेकर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। नए साल के अंत तक उनके भविष्य का फैसला हो जाएगा।
- हालांकि यह करीबी मामला होगा और कंजरवेटिव पार्टी यूरोप के तमाम लोगों को भयभीत भी करेगी लेकिन आखिरकार समझदार ब्रिटिश, अपने देश को यूरोपीय संघ से बाहर निकलने नहीं देंगे।
- पश्चिम एशिया के संघर्षग्रस्त देश, शिया-सुन्नी सांप्रदायिक हिंसा, आईएसआईएस का प्रभाव और द्विराष्ट्र हल को लेकर इजरायल का सख्त विरोध आदि कुछ ऐसी बाते हैं जो पूरी विश्व व्यवस्था को अस्थिर बनाना जारी रखेंगी।
=>"कच्चे तेल को लेकर उथल पुथल"
--> अंतरराष्ट्रीय बाजारों के कच्चे तेल के दाम को लेकर कोई भी अनुमान लगाना मुश्किल बना रहेगा। वर्ष 2014 में कीमतों में आई गिरावट के बाद तमाम जानकार इस काम में विफल रहे। परंतु फिलहाल यही लग रहा है कि आगामी दिसंबर तक ब्रेंट क्रूड के दाम 45- 50 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहेंगे।
** अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में 10 महीने से अधिक समय बाकी है। दुनिया के अधिकांश हिस्से रिपब्लिकन उम्मीदवारों की सूची को देखकर घबराए हुए हैं और शायद अधिकांश अमेरिकी भी। अगर सबकुछ ठीक रहा तो हिलेरी क्लिंटन आगामी नवंबर में अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बन सकती हैं।
=>निर्यातकों की बात"
- बड़े जिंस निर्यातकों की बात करें तो उनके लिए यह साल भी बुरा बना रहेगा। इसमें बड़े तेल निर्यातक देश ऑस्टे्रलिया, ब्राजील, रूस और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। चार में से तीन देश अब ढुलमुल हो चुके ब्रिक्स के सदस्य हैं। लेकिन यह बात रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन पश्चिम के समक्ष अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करने और बदले में रूस के लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने से नहीं रोक पाएगी।
तकनीकी प्रगति का क्रम जारी रहेगा। इसका प्रभाव दुनिया भर के कई उद्योगों पर पड़ेगा। मैं यह जानने का दिखावा नहीं करूंगा कि इनमें से किस उद्योग को सबसे तगड़ा झटका लगेगा और कैसे?
=>"भारत की बात"
- यद्यपि वित्त मंत्री ने वर्ष 2016-17 के दौरान आर्थिक वृद्घि दर 9 फीसदी रहने की उम्मीद जताई है लेकिन अगर नई श्रेणी के आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर हम 7 फीसदी की दर भी हासिल कर लेते हैं तो भाग्यशाली होंगे। जो लोग नए आंकड़ों को समझते हैं वे यह भी जानते होंगे कि इसका वास्तविक अर्थ 5-6 फीसदी ही है।
** खुदरा महंगाई की दर पूरे साल 6 फीसदी सालाना की दर से नीचे रहेगी। वर्ष की दूसरी छमाही में यह पांच फीसदी से भी कम रह सकती है। आरबीआई नीतिगत दरों में 25-50 आधार अंकों की कमी करेगा लेकिन इसका निवेश और वृद्घि पर कोई खास प्रभाव नहीं होगा।
- पिछले वर्ष निवेश के मोर्चे पर खराब रहा प्रदर्शन इस साल भी जारी रहेगा क्योंकि नीतियां कमजोर हैं और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां कमजोर हैं। चीन की मंदी ने एक नई समस्या पैदा कर दी है। वित्तीय और मुद्रा बाजारों में अस्थिरता भी इसकी एक वजह रहेगी। दिसंबर तक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 70-75 फीसदी तक रहेगी।
**इस परिदृश्य को देखते हुए और निजी निवेश में बरकरार ठहराव के मद्देनजर अगले माह पेश होने वाला केंद्रीय बजट शायद आने वाले वर्ष के दौरान राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया पर लगाम लगाने को बाध्य हो जाए। इस दौरान राजकोषीय घाटे के सकल घरेलू उत्पाद के 4 फीसदी के बराबर रहने की उम्मीद की जा सकती है। एक अंक की सांकेतिक जीडीपी वृद्घि दर की बात करें तो इससे ऋण का समीकरण आगे और खराब होगा। मध्यम अवधि की ब्याज दर पर भी दबाव बनेगा।
** नए वस्तु एवं सेवा कर के लिए जरूरी संविधान संशोधन विधेयक निश्चित तौर पर दोनों सदनों में पारित हो जाएगा। राज्य विधानसभाओं से भी उसे जरूरी मंजूरी मिल जाएगी। लेकिन शुरुआती वर्षों में उसे प्रभावी और उत्पादक बनाना चुनौती बना रहेगा।
** आरबीआई द्वारा सरकारी बैंकों पर बैलेंस शीट सुधारने के लिए बनाए गए तमाम दबावों के बावजूद ये बैंक पूरे साल तनावग्रस्त नजर आएंगे और सरकार से पूंजी के रूप में मदद की गुहार करेंगे।
** पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी धमाकेदार शुरुआत के पांच साल बाद ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में दोबारा जीत पाने में कामयाब रहेगी।
** तमिलनाडु में बीते सालों के दौरान हुई तमाम राजनीतिक और कानूनी उठापटक और हाल में चेन्नई में आई बाढ़ के बावजूद जे जयललिता इस वर्ष के आखिर में लगातार दूसरी बार चुनाव जीत जाएंगी।
** केरल में यह बता पाना मुश्किल है कि अगले चुनाव में वाम या संयुक्त मोर्चे में से किसे जीत मिलेगी। प्रचलन के मुताबिक तो सत्ताच्युत मोर्चे को ही जीत मिलनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो यह वाम मोर्चे की बारी है जिसका नेतृत्व माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पास है।
=>"आतंकवाद"
- पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी की बात करें तो वह द्विपक्षीय रिश्तों में प्रगति को प्रभावित करता रहेगा। चिंताजनक पहलू यह है कि 26/11 के हमले की तुलना में कहीं अधिक घातक हमले की आशंका बनी हुई है। उसकी अनिवार्य प्रतिक्रिया भी होगी।
=>"निष्कर्ष "
अगर हाल के वर्षों को कोई संकेत माना जाए तो वर्ष 2016 में भारत और विश्व दोनों जगह बहुत कम बड़ी घटनाएं देखने को मिलेंगी।