आपने बाघ, शेर, गैंडे और हाथी के बारे में सुना होगा, लेकिन केवल यही भारत के वे जानवर नही हैं, जिनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.
- बहुत से ऐसे जीव, पौधे एवं प्रजातियां हैं, जिन्हें प्रकृति संरक्षण के लिए बने अंतरराष्ट्रीय संघ (आईसीयूएन) ने विलुप्तप्राय प्रजातियों की श्रेणी में वर्गीकृत किया है. आईसीयूएन प्रति वर्ष पौधों और प्राणियों की प्रजाति पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है.
- साल 2016 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में आईसीयूएन ने जानवरों की 19 प्रजातियों को खतरे या फिर गंभीर रूप से खतरे की श्रेणी में रखा है और 10 अन्य को दुर्लभ की श्रेणी में रखा है. इनमें से कुछ तो ऐसे हैं, जिनके बारे में आपने शायद ही कभी सुना हो. जैसे कि बेडडोम्स टोड. शायद आपने सुना भी हो ,पर आपको यह नहीं पता होगा कि चींटी खाने वाले जीव (एंट ईटर) की तरह यह प्रजाति भी संकट में है.
1. उत्तरी भारतीय नदियों का कछुआ
- इस प्रजाति का कछुआ दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया की नदियों मंे पाया जाता है परन्तु यह भारत सहित अधिकतर देशों में विलुप्ति के कगार पर है. म्यांमार, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम में पहले ही लुप्त हो चुकी इस प्रजाति का चीन में व्यापार करना अवैध है और यह बड़े संकट में है.
2. लाल ताज और सिर वाला कछुआ
- यह ताजे पानी में रहने वाली कछुए की एक और प्रजाति है जो अस्तित्व के संकट से जूझ रही ही. इस प्रजाति के कछुए के सिर पर लाल रंग की धारियां होती हैं. यह भारत, नेपाल और बांग्लादेश की गहरी नदियों में पाया जाता है. लगातार लुप्त होते इस कछुए को गंभीर रूप से संकट में पड़ी प्रजातियों की श्रेणी में रखा गया है.
3. संकरे सिर और नर्म कवच वाला भारतीय कछुआ
यह अन्य कछुओं की तरह बिल्कुल नहीं दिखता. इसका शरीर छोटा है. जैतूनी हरे रंग का यह कछुआ भारत में दुर्लभ है. इसका वैज्ञानिक नाम चित्रा इंडिका है. आईसीयूएन के मुताबिक ये कछुए ज्यादातर समय गहरी नदी की तलहटी में रेत के ऊपर रहते हैं.
4. बेडडोम टोड
- पश्चिमी घाटों में पाया जाने वाला यह मेंढक समुद्र तल से 1500 फीट की उंचाई पर रह सकता है. इनकी संख्या का कोई अनुमान नहीं है क्योंकि यह दुर्लभ प्रजाति के हैं. आईयूसीएन ने इसे इसलिए दुर्लभ प्रजाति में शामिल कर लिया है क्योंकि जिन प्राकृतिक परिस्थितियों में यह रहता है, वे अब गंभीर रूप से संकट में हैं या सिकुड़ती जा रही हैं.
5. हैमरहेड शार्क
यह शार्क हिन्द महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर में पाई जाती है. इसकी लंबाई 6 फीट से भी अधिक होती है. यह एशिया में सर्वाधिक पाई जाती है. इसकी शारीरिक संरचना के कारण यह आसानी से जाल में फंस जाती है. बड़े पैमाने पर शिकार के चलते यह संकट में है.
6. घाट वार्ट मेंढक
- गंभीर रूप से संकट में पहुंच चुकी यह प्रजाति नदुवत्तोम, तमिलनाडु में 2200 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाती है लेकिन इस प्रजाति के सारे मेंढक इसी क्षेत्र में पाए जाते हैं और सौ वर्ग किलोमीटर के दायरे में सिमट कर रह गए हैं.
7. ऊंचाई पर रहने वाला कस्तूरी मृग
यह हिरण उत्तराखंड का राज्य पशु घोषित किया गया है. यह अत्यधिक ऊंचे इलाकों में पाया जाता है. केदारनाथ वाइल्डलाइफ सेंचुरी और अस्कोट मस्क डियर सेंचुरी में यह पाया जाता है. पिछले 21 सालों में इनकी संख्या में तेजी से कमी आई है. आईयूसीएन के मुताबिक इस दौरान इनकी संख्या में 50 फीसदी की गिरावट आ चुकी है.
8. एशियाई बड़ा नर्म खोल वाला कछुआ
यह दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा कछुआ है, जो मीठे पानी में रहता है. दक्षिण-पूर्वी एशिया में रहने वाला यह कछुआ ठहरी हुई नदियों और जलधराओं में रहता है. दूसरे कछुओं की तरह इसका बाहरी खोल कठोर नहीं होता. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ देशों में इसका अंधाधुंध शिकार और व्यापार किया जा ररहा है. इस वजह से यह प्रजाति संकट में है.
9. कोचीन फाॅरेस्ट केन टर्टल
यह दुर्लभ प्रजाति का कछुआ पश्चिमी घाटों में पाया जाता है. यह हरे-भरे जंगलों में पाया जाता है. 1912 में कोचिन के जंगलों कवलाई के पास इसे सबसे पहले देखा गया था. इसलिए इसका नाम कोचिन से जुड़ा. यह पानी के बजाय बिलों में रहता है.
10. व्हेल शार्क
- भारत में पाई जाने वाली यह विश्व की सबसे बड़ी मछली है जो लक्षद्वीप, कच्छ की खाड़ी और गुजरात के सौराष्ट्र से लगते समुद्रों में मुख्यतः पाई जाती है. व्हेल शार्क के संकट में होने की चेतावनियों के चलते भारत ने 2001 में इसके व्यापार पर प्रतिबंध लगाा दिया था. दुर्लभ प्रजाति की इस मछली को आईयूसीएन ने 2016 में पहली बार संकट में घोषित किया है.
11. आॅरनेट ईगल रे
काफी कम दिखाई देने वाली यह मछली चार मीटर तक लम्बी हो सकती है. 160 वर्ष पहले इसे पहली बार देखा गया था. हिन्द महासागर एवं प्रशांत महासागर में यह पाया जाता है. पिछली तीन पीढ़ियों यानी कि पिछले 45 सालों में इस प्रजाति की संख्या में 50 फीसदी से ज्यादा गिरावट आंकी गई है.
12. इंडियन पेंगोलिन
- चींटी खाने वाला यह प्राणि भारत में काफी कम दिखने वाला दुर्लभ जीव है. मांस और खाल, दोनों के लिए इसका बड़े पैमाने पर शिकार किया जाता है. गैर कानूनी तरीके से इसे चीन और वियतनाम जैसे देशों में भी भेजा जाता है.
आईयूसीएन ने इस बेहद खतरे में पड़ी प्रजाति का दर्जा दिया है. डब्लूडब्लूएफ के मुताबिक 2009 से 13 के बीच 3000 से ज्यादा पेंगोलिन का अवैध शिकार किया गया.
13. फिशिंग कैट
ये जंगली बिल्लियां मछली के शिकार के लिए पानी में तैरती हैं और गोता लगाती हैं. ये बिल्लियां सुंदरबन, गंगा और ब्रह्मपुत्र की घाटियों में पाई जाती हैं लेकिन जल स्रोतों के सूखने और इसके रहने के स्थल यानी वेटलैंड में कमी आने के बाद से इसे आईयूसीएन ने दुर्लभ प्रजाति का करार दे दिया है.
14. क्लाउडेड तेंदुआ
यह खूबसूरत तेंदुआ पूर्वोत्तर राज्यों के पहाड़ी इलाकों में पाया जाता है. इनकी संख्या 10,000 से कम रह गई है और इसे विलुप्तप्राय घोषित किया गया है.
15. इरावडी डाॅल्फिन
स्नबफिन डाॅलफिन के नाम से जानी जाने वाली यह डाॅल्फिन सामान्यतः चिल्का झील और भारत के पूर्वी तट में पाई जाती है. इसके अलावा यह म्यांमार और अन्य दक्षिण एशियाई देशों पाई जाती है. ये अक्सर पानी में तैरते हुए मछली पकड़ने वालों के जाल में फंस जाती है. इसीलिए इनकी संख्या कम हो गई है. इरावडी उन डाॅल्फिन मछलियों में से एक है, जिसे मानव अपना मित्र समझते हैं. चिल्का झील में ये डाॅल्फिन और मछुआरे मछली पकड़ने में एक दूसरे की मदद करते देखे जा सकते हैं.