वैश्विक स्तर पर बाघों की घटती आबादी भले ही चिंता का विषय हो, लेकिन कॉर्बेट नेशनल पार्क (सीटीआर) इसका अपवाद है। कॉर्बेट प्रशासन की दृढ़ इच्छाशक्ति और लोगों को जागरूक करने का ही नतीजा था कि साल दर साल कॉर्बेट में बाघों की गर्जना और तेज हुई है।
- पूरी दुनिया में बाघों के संरक्षण के लिए 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। रूस से शुरू हुआ यह सफर कॉर्बेट नेशनल पार्क में सार्थक सा लगता है।
- बाघों के लिए सबसे मुफीद जगह माने जाने वाला सीटीआर इनके घनत्व के मामले में देश में पहला स्थान रखता है वहीं राज्य में 340 बाघ हैं। कॉर्बेट में बाघों की सुरक्षा वर्तमान में ई-सर्विलासं सिस्टम से की जाती है।
- इसमे ऊंचे टॉवरों पर लगे कैमरे दूर-दूर तक जंगल की निगहबानी करते हैं। सीटीआर से सटे गांव में ईको विकास समिति बनाकर वन्यजीव संरक्षण के कार्यक्रमों में ग्रामीणों की सहभागिता सुनिश्चित की गई।
- 2012 में टाइगर कंजरवेशन फाउडेंशन बनाकर कर्मचारी व ग्रामीणों के हितों के लिए कार्य किए गए। इसके अलावा यहां बाघों के रहने के वासस्थल को विकसित किया गया।
- नतीजतन कॉर्बेट में बाघों की संख्या साल दर साल बढ़ती गई। वर्ष 2006 में जहां बाघों की संख्या 160 थी तो 2010 में बढ़कर 215 हो गई है। 2014 में कॉर्बेट में बाघों की संख्या 215 हो गई है। भारत में कॉर्बेट का दूसरा स्थान है।
=>भविष्य की योजनाएं
- कॉर्बेट में बाघों की सुरक्षा के लिए अलग से एक स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स भी प्रस्तावित है। इसमें 90 वनकर्मी बाघों की सुरक्षा के लिए शामिल किए जाएंगे।
- इतना ही नहीं कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के भीतर ही पाखरो क्षेत्र में एक टाइगर सफारी की योजना भी प्रस्तावित है। इसमें घायल बाघों का उपचार होगा। वहीं बाघों के लिए एक बाड़ा बनाकर पर्यटकों को बाघों का दीदार कराया जाएगा। योजना राष्ट्रीय बाघ सुरक्षा प्राधिकरण व जू अथॉरिटी भारत सरकार में लंबित है।
=>प्रतियोगिता से करते हैं प्रेरित
- अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भी बाघों के संरक्षण व सुरक्षा के लिए जन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दौरान विद्यालयों में फिल्म, गोष्ठियां, रैलियों, पेंटिंग, वाद विवाद प्रतियोगिता के जरिये बच्चों को प्रेरित किया जाता है।
=>ये हैं चुनौतियां
कॉर्बेट में बाघों के लिए प्रशासन भले ही प्रयासरत हो, लेकिन कॉर्बेट में बाघों को बचाने के लिए सीटीआर के सामने कई चुनौतियां हैं।
1.बाघों के कम होते वासस्थल
2. भोजन की कमी
3. अवैध शिकार
4. मानव-वन्यजीव संघर्ष व लोगों द्वारा बदले की भावना से बाघ को जहर या गोली से मार देना आदि समस्या हैं। इससे निपटने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे।
★कॉर्बेट में बाघों के संरक्षण के लिए किए जा रहे ठोस प्रयासों का ही परिणाम है कि यहां इनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। लोगों को भी बाघ संरक्षण के लिए समय-समय पर जागरूक किया जाता है। भविष्य में और ठोस योजनाओं को क्रियान्वयन किया जाएगा।