छठे ध्वंस की ओर

#Nabharat_times

Human induced catastrophe

वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि पृथ्वी जीवजातियों के महाविनाश के छठे दौर में प्रवेश कर चुकी है। पृथ्वी के साढ़े चार अरब साल पुराने इतिहास में अलग-अलग वजहों से यह अब तक पांच बार निर्जीव होने से बाल-बाल बची है। इसी तरह के छठे घटनाक्रम में दुनिया फिलहाल चल रही है। आने वाली एक-दो सदियों में तीन चौथाई जीव जातियां पूरी तरह विलुप्त हो जाने वाली हैं।

Context

लंबे अध्ययन पर आधारित अमेरिका की नैशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज की इस अधिकृत रिपोर्ट के मुताबिक स्थिति की भयावहता का अभी दुनिया को ठीक-ठीक अंदाजा तक नहीं है।

  • इस स्टडी की खासियत यह है कि इसने न केवल विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके जीवों की बात की है, बल्कि उन जीवों की दशा का भी ब्यौरा दिया है, जो आज बड़ी संख्या में हमारे बीच मौजूद हैं।
  • इसके मुताबिक 177 स्तनधारी प्रजातियों को 1900 से 2015 के बीच की अवधि में अपना 30 फीसदी आवासीय क्षेत्र गंवाना पड़ा है। इनमें से लगभग आधी प्रजातियों की आबादी में जबर्दस्त कमी आई है।
  • रिपोर्ट के मुताबिक इसका मतलब यह है कि इन अधिक संकटग्रस्त जीवों का 80 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र इनके हाथ से छिन चुका है।
  •  पिछले 40 वर्षों में ही हम पृथ्वी का 50 फीसदी वन्य जीवन नष्ट कर चुके हैं। जंगल से मनुष्य की लड़ाई शुरू से रही है, पर पहले यह लड़ाई बराबरी पर चला करती थी।

पिछले कुछ शताब्दियों में तकनीकी विकास की जो छलांगें मनुष्यता ने लगाई हैं, उसने जंगल को निहत्था कर दिया है। मनुष्य को इसका फायदा हुआ है, लेकिन बाकी सारे जीवों के लिए यह अनर्थकारी साबित हुआ है। यह स्थिति अब पलट कर मनुष्य के लिए भी अनर्थकारी सिद्ध हो रही है, क्योंकि अभी तो हमें ठीक से अंदाजा भी नहीं है कि हमारे जीवन के कितने सिरे धरती के बाकी जीवों से जुड़े हुए हैं।

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