- धरती के वायुमंडल के गर्म होने के खामियाजे के रूप में अति मौसमी दशा का सामना पूरी दुनिया कर रही है। धनी और समर्थ देश इस चपत की भरपाई कर लेते हैं या फिर तकनीकी उन्नयन से असर कम कर लेते हैं लेकिन गरीब और अक्षम देशों में ग्लोबल वार्मिंग कहर ढा रही है।
- बीमारियों से लेकर प्राकृतिक आपदाओं के रूप में
- अति मौसमी दशाएं बढ़ रही हैं
- स्विट्जरलैंड के मौसम वैज्ञानिकों के एक हालिया शोध में बताया गया है कि पिछली सदी में ग्लोबल वार्मिंग के चलते अत्यधिक गर्मी का सामना हजार दिनों में एक बार ही करना पड़ना था। अब इसमें चार से पांच गुना तेजी आई है।
- वैज्ञानिकों के मुताबिक दुनिया में होने वाली बाढ़ की पांच आपदाओं में एक की वजह ग्लोबल वार्मिंग ही है।
- दरअसल औद्योगिक क्रांति के बाद विभिन्न संयंत्रों, पावर प्लांट, वाहनों से होने वाले उत्सर्जन से पर्यावरण में ग्रीन हाउस गैसों का जमावड़ा बढ़ा हैं। इसके परिणामस्वरूप वैश्विक तापमान में तब से लेकर अब तक 0.85 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
- विभिन्न देशों की सरकारें इसी कोशिश में हैं कि तापमान में हो रही बढ़ोतरी को 2 डिग्री के अंदर ही रखा जाए। हालांकि इन प्रयासों के बावजूद वैज्ञानिकों की मानें तो भविष्य में अति मौसमी दशाओं का स्वरूप बेहद भयावह और अप्रत्याशित होगा।
- इससे दुनिया भी किसी कोने में होने वाली बारिशों में 60 फीसद इजाफा होगा। दूसरी ओर यहां के लोगों को 1000 दिनों में कम से कम 27 अत्यधिक गर्म दिनों का सामना करना होगा।
...तो होगी भयावह स्थिति
- ग्रीन हाउस गैसों के चलते यदि ग्लोबल वार्मिंग में और इजाफा होता है और तापमान कहीं 3 डिग्री तक पहुंच जाता है तो स्थिति और भयावह होगी। तब स्थिति नियंत्रण से बाहर निकल जाएगी।
- लू और तेज बारिश: वैज्ञानिकों के मुताबिक यदि ग्लोबल वॉर्मिंग में इजाफा होता रहा तो दुनिया भर के लोगों को लू के थपेड़ों और तेज बारिश की घटनाओं से ज्यादा जूझना पड़ेगा।
- तापमान में 2 डिग्री के इजाफे के साथ भूमध्य रेखा के पास रह रहे लोगों को अति मौसमी दशाओं से सबसे अधिक खतरा रहेगा।
- यानी जोे देश पहले से ही गरीबी, दयनीय ढ़ांचागत सुविधाओं से पीड़ित हैं उन्हें 50 गुना अधिक गर्मी और 2.5 गुना अधिक बारिश का प्रकोप झेलना पड़ेगा ।