- 225 वर्षों पहले सैमुअल कॉलरिज ने लिखा, ‘हमारे चारों तरफ दूर-दूर तक पानी ही पानी है लेकिन एक बूंद भी पानी पीने के लिए नहीं है।
- कॉलरिज एक नाविक थे। एक बार वह समुद्र के बीचोंबीच कई दिनों के लिए फंस गए। उनके पास पेयजल समाप्त हो गया। इस परिस्थिति में उनका यह कथन उनकी दशा को बयान करने के लिए बिल्कुल उपयुक्त है।
- यह दुखद है कि दो सदी से अधिक समय बाद भारत भी इसी तरह की समस्या से जूझ रहा है। समस्या की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश में जल तो है पर यह इस कदर प्रदूषित हो चुका है कि लोग घर में इसे बिना साफ किए पीना ही नहीं चाहते।
- मौजूदा समय में दुनिया के 3.5 अरब लोगों को उनको की जा रही पेयजल की आपूर्ति की गुणवत्ता में भरोसा नहीं है। इन लोगों में से 37 फीसद भारतीय हैं।
- यह तथ्य संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों की भी कलई खोलता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक विश्व के केवल 84 करोड़ लोग ही बेहतर जल के स्रोत से वंचित हैं। इस जल के विषय में न ही सुरक्षित और न ही साफ का जिक्र है।
- बेहतर, साफ और सुरक्षित का अलग-अलग इस्तेमाल कर संयुक्त राष्ट्र ने इस वैश्विक समस्या को ही अस्पष्ट कर दिया है। ऐसे में ‘बेहतर’ जल स्रोत का संबंध कम से कम जल की गुणवत्ता से नहीं हो सकता।
=>"विश्व स्वास्थ्य संगठन व यूनीसेफ की रिपोर्ट"
- विश्व स्वास्थ्य संगठन व यूनीसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ऐसा कोई भी शहर, कस्बा या गांव हो जहां के लिए आपूर्ति किए जा रहे जल को सुरक्षित रूप से पी सकें।
- भारतीय शहरों और गांवों के पास मौजूद जल स्रोत अत्यधिक प्रदूषित हो चुके हैं। 2013 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार देश की 445 नदियों में से तकरीबन आधी बड़े स्तर पर प्रदूषित हो चुकी हैं और इनका जल इंसान के उपभोग के योग्य नहीं है।
- यह सर्वेक्षण काफी सतही और सामान्य था क्योंकि बोर्ड ने इसमें केवल बॉयोकेमिकल ऑक्सीजन और कोलीफॉर्म बैक्टीरिया जैसे दो प्रदूषकों की बात की।
- भारतीय नदियों में फ्लोराइड, नाइट्रेट, कीटनाशक, भारी धातुओं जैसे और भी प्रदूषक मौजूद हैं जिसकी वजह से इनका जल ग्रहण योग्य नहीं है।
- इसी प्रकार 2011 में बोर्ड ने कहा कि 8000 में से केवल 160 शहरों में सीवर और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मौजूद है। और तो और, सरकारी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में से अधिकतर निष्क्रिय पड़े हैं या फिर बंद हो चुके हैं। इनका प्रबंधन ठीक प्रकार से नहीं किया जा रहा, डिजाइन में खामियां हैं और रखरखाव भी ठीक से नहीं हो रहा। इसके अलावा बिजली की किल्लत और प्रशिक्षित कर्मचारी भी एक बड़ी समस्या हैं।
- शहरों में बड़ी मात्रा में अशोधित सीवर का गंदा पानी नियमित रूप से नदियों में डाला जा रहा है। जबकि इसे रोकने के लिए नियम-कानून मौजूद हैं, इसके बाद भी स्थानीय निकाय व अन्य संस्थान इनका पालन नहीं कर रहे हैं।
- दशकों से चली आ रही इस अव्यवस्था ने भारतीय जल स्नोतों को बुरी तरह से प्रदूषित करने में अहम भूमिका निभाई है। एक तरह से यहां के जलस्रोत चीन से भी गए गुजरे हालत में हैं।
- भारत की जल प्रदूषण समस्या और इसका इंसानों के स्वास्थ्य एवं आर्थिक विकास पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव पर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय रूप से चीन के सापेक्ष अब तक ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है।
- इसके बावजूद दो लाख की आबादी से अधिक सभी शहरों को स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित कराना कोई बड़ा काम नहीं। दशकों समाधान मौजूद हैं, तकनीक उपलब्ध है। भारत के पास जरूरी तकनीकी और प्रशासनिक दक्षता भी मौजूद है।
- ऐसा कोई भी तकनीकी और आर्थिक कारण नहीं हो सकता जिसके चलते भारत के शहरों को 24 घंटे की ऐसी जलापूर्ति सुनिश्चित न की जा सके जो सीधे इंसानी उपभोग योग्य हो।
=>"केस स्टडी"
- कंबोडिया की राजधानी नॉम पेन्ह एक ऐसा शहर है जो तकनीक और विशेषज्ञता के मामले में भारत के दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों से काफी पीछे है। वर्ष 1993 तक नॉम पेन्ह की जल आपूर्ति भारत के किसी भी बड़े शहर की तुलना में बदतर थी।
- कुशल प्रबंधन और मजबूत राजनीतिक सहयोग के दम पर 2003 तक इस शहर ने लोगों को 24 घंटे ऐसे पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जिसे बिना किसी चिंता के सीधा नल से ग्रहण किया जा सकता था।
- नॉम पेन्ह वाटर सप्लाई अथॉरिटी जो कि एक सरकारी कंपनी है, 2003 से लाभ में है। सभी को पानी की आपूर्ति के बदले भुगतान करना होता है।
- केवल गरीबों को इस पर छूट उपलब्ध कराई गई। यदि इस कंपनी का प्रदर्शन देखा जाए तो यह लंदन और लॉस एंजिलिस जैसे शहरों की जल आपूर्ति से बेहतर है।