नदियों पर केवल घरेलू सीवेज का ही भार नहीं है। उद्योगों से आने वाले उत्प्रवाह में ज्यादा मात्रा में मौजूद भारी धातुओं का भी बड़ा योगदान हैं।
- खास बात यह है कि इस घातक प्रदूषण से निपटने के लिए फिलहाल गंगा सहित किसी भी नदी में कहीं कोई इंतजाम नहीं हैं। ऐसे में यदि सीवेज का शोधन कर भी लिया जाए तो भी भारी धातुओं की मौजूदगी एक बड़ी समस्या बनी रहेगी।
- लेकिन राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों ने पेड़-पौधों की मदद से इस समस्या को काफी हद तक कम करने का दावा किया है। यही नहीं, हरिद्वार के शांतिकुंज आश्रम में नाले पर यह सफल प्रयोग भी कर दिखाया है।
- गंगा सहित अन्य नदियों में मौजूद भारी धातुओं को कम करना बड़ी चुनौती है। सीवेज शोधन तो मुमकिन है लेकिन भारी धातुओं को हटाना आसान नहीं है। लेकिन संस्थान द्वारा विकसित "कंस्ट्रक्टेड वेट लैंड" विधि द्वारा नदी जल से भारी धातुओं को प्राकृतिक तरीके से दूर किया जा सकता है।
- खास बात यह है कि इसमें किसी तरह के रसायनों का प्रयोग न करके पेड़-पौधों के जरिये पानी का शोधन किया जाता है।
- गंगा में किए गए प्रयोग में देखा गया कि नदी जल में फॉस्फोरस, नाइट्रोजन के साथ क्रोमियम, कैडमियम, आयरन, लेड व कापर बड़ी मात्रा में मौजूद हैं। इन प्रदूषकों को इकोफ्रेंडली तरीके से आसानी से दूर किया जा सकता है।
** इसके लिए पानी रोककर उनमें पीपाताज, सिरपस, नरकुल, कुमुदनी, कोटेल पौधे और शैवाल से जल को उपचारित किया जाता है।
- यह पौधे पानी में मौजूद भारी धातुओं को सोख लेते हैं जिससे पानी भारी धातुओं से मुक्त हो जाता है। इस तकनीक का प्रयोग कर नदी जल को शोधित किया जा सकेगा।