क़ानून से नहीं बल्कि विकल्प खोजने से ही मिलेगी पोलीथिन से मुक्ति

हर एक कोई यह मानता है कि पॉलीथिन बहुत नुकसान कर रही है, लेकिन उसका मोह ऐसा है कि किसी न किसी बहाने से उसे छोड़ नहीं पा रहा है। देश भर के नगर निगमों के बजट का बड़ा हिस्सा सीवर व नालों की सफाई में जाता है और परिणाम शून्य ही रहते हैं। इसका बड़ा कारण पूरे मल-जल प्रणाली में पॉलीथिन का अंबार होना है।

सेहत और पर्यावरण  पर असर

  • पॉलीथिन एक पेट्रो उत्पाद है, जो इंसान और जानवर, दोनों के लिए जानलेवा है।
  • घटिया पॉलीथिन का प्रयोग सांस व त्वचा संबंधी रोगों के साथ कैंसर के खतरे को बढ़ाता है। पॉ
  • लीथिन की थैलियां नष्ट नहीं होती हैं और धरती की उपजाऊ क्षमता को नष्ट करके इसे जहरीला बना रही हैं।
  • साथ ही मिट्टी में इनके दबे रहने के कारण मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता भी कम होती जा रही है, जिससे भूजल-स्तर पर असर पड़ता है। पॉ
  • लीथिन खाने से गायों व अन्य जानवरों के मरने की घटनाएं तो अब आम हो गई हैं।

फिर भी बाजार से सब्जी लाना हो या पैक दूध या फिर किराना या कपड़े, पॉलीथिन के प्रति लोभ न तो दुकानदार छोड़ पा रहे हैं, न खरीदार। मंदिरों, ऐतिहासिक धरोहरों, पार्कों, अभयारण्यों, रैलियों, जुलूसों, शोभा यात्राओं आदि में धड़ल्ले से इसका उपयोग हो रहा है। शहरों की सुंदरता पर इससे ग्रहण लग रहा है।पॉलीथिन न केवल वर्तमान, बल्कि भविष्य को भी नष्ट करने पर आमादा है।

विकल्प की दुविधा

इंसान जब किसी सुविधा का आदी हो जाता है, तो उसे तभी छोड़ पाता है, जब उसका विकल्प हो। यह भी सच है कि पॉलीथिन बीते दो दशक के दौरान 20 लाख से ज्यादा लोगों के जीवकोपार्जन का जरिया बन चुका है, जो इसके उत्पादन, व्यवसाय, पुरानी पन्नी एकत्र करने व उसे कबाड़ी को बेचने जैसे काम में लगे हैं।

  •  पॉलीथिन के विकल्प के रूप में जो सिंथेटिक थैले बाजार में डाले गए हैं, वे एक तो महंगे हैं, दूसरे कमजोर और तीसरे वे भी प्राकृतिक या घुलनशील सामग्री से नहीं बने हैं और उनके भी कई विषम प्रभाव हैं।
  • कुछ स्थानों पर कागज के बैग और लिफाफे बनाकर मुफ्त में बांटे भी गए, लेकिन मांग की तुलना में उनकी आपूर्ति कम थी।
  • कुछ हद तक कपड़े के थैले को इसका विकल्प बनाया जा सकता है। जिस तरह पॉलीथिन की मांग है, उतनी कपड़े के थैले की नहीं होगी, क्योंकि थैला कई-कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन कपड़े के थैले की कीमत, उत्पादन की गति भी पॉलीथिन की तरह तेज नहीं होगी।
  • सबसे बड़ी दिक्कत है दूध, जूस, बनी हुई करी वाली सब्जी आदि के व्यापार की। इसके लिए एल्युमिनियम या अन्य मिश्रित धातु के खाद्य-पदार्थों के लिए माकूल कंटेनर बनाए जा सकते हैं।

क्या कर सकते है

  • प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए बायो प्लास्टिक को विकसित करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। बायो प्लास्टिक चीनी, चुकंदर, भुट्टे जैसे जैविक रूप से अपघटित होने वाले पदार्थों के इस्तेमाल से बनाई जाती है। हो सकता है कि शुरुआत में कुछ साल इन चीजों पर सब्सिडी दी जाए, तो इनके उपयोग को बढ़ावा मिले। यह सब्सिडी प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के मुकाबले कुछ भी नहीं होगी। साथ ही थोड़ा बहुत जो पॉलीथिन इस्तेमाल होगा, उसके उपयोग की रणनीति भी बनानी होगी।
  • प्लास्टिक कचरा बीनकर अपना पेट पालने वालों के लिए विकल्प के रूप में बेंगलुरु के प्रयोग पर विचार कर सकते हैं, जहां लावारिस फेंकी गई पन्नियों को अन्य कचरे के साथ ट्रीटमेंट करके खाद बनाई जा रही है।
  • हिमाचल प्रदेश में ऐसी पन्नियों को डामर के साथ गलाकर सड़क बनाने का काम चल रहा है। जर्मनी में प्लास्टिक के कचरे से बिजली का निर्माण भी किया जा रहा है।

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