पृष्ठभूमि
वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के अंतर्गत ग़ैर वनीय उद्देश्य हेतु वनभूमि के परिवर्तन की पूर्वगामी स्वीकृति देते हुए केंद्र सरकार यह शर्त रखती है कि इस धनराशि का इस्तेमाल उपयोगकर्ता एजेंसियों द्वारा प्रतिपूरक वनरोपण करने हेतु एवं वनों के संरक्षण तथा विकास से संबंधित गतिविधियों के लिए किया जाएगा ताकि वनभूमि में बदलाव का असर कम किया जा सके।
- सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की पालन करते हुए, यह धनराशि एक तदर्थ प्राधिकरण (compensatory afforestation fund authority) द्वारा चलाए जा रहे राज्यवार खातों में जमा की जाती है।
- एक स्थाई सांस्थानिक व्यवस्था की ग़ैर मौजूदगी में इस तदर्थ प्राधिकरण के पास 40,000 करोड़ रुपए इकट्ठे हो गए हैं।
- विधेयक राष्ट्रीय स्तर पर, प्रत्येक राज्य में एवं केंद्र शासित प्रदेश में प्राधिकरणों के गठन की व्यवस्था करता है।
- प्राधिकरण का सचालन: प्राधिकरण में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के दो अधिकारी, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का एक प्रतिनिधि एवं केंद्र सरकार की अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष का एक नुमाइंदा शामिल होता है।
- धनराशि का उपयोग :
- कृत्रिम वृक्षारोपण में
- प्राकृतिक तौर पर होने वाले वृक्षारोपण की मदद में
- वनों के संरक्षण के लिए, वनों की अवसंरचना के विकास हेतु,
- हरित भारत कार्यक्रम के लिए
- वन्यजीवन के संरक्षण के लिए एवं संबंधित गतिविधियों के लिए।
हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट ने प्रतिपूरक वनरोपण निधि विधेयक, 2015 में आधिकारिक संशोधन लाए जाने की अनुमति प्रदान कर दी।
विधेयक क्या सुनिश्चित करेगा?
यह विधेयक प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं नियोजन प्राधिकरण के पास संचित अव्ययित धनराशि, जो वर्तमान में 40,000 करोड़ रुपए है, एवं पुंजित अव्ययित शेष पर प्रतिपूरक करारोपण एवं ब्याज का ताज़ा संग्रहण, जो कि सालाना लगभग 6,000 करोड़ होगा, का सक्षम एवं पारदर्शी तरीक़े से जल्द उपयोग सुनिश्चित करेगा।