क्या है पेरिस समझौता? क्यों अमेरिका इससे हटा? भारत और चीन पर इसका असर

पेरिस समझौता -

★ असल में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर साल 2015 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक क्लाइमेट समझौता हुआ था।

★जिसका उद्देश्य दुनिया में बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग पर काबू पाने के लिए एकसाथ आगे बढ़ा जाए।

★ समझौते के शुरूआती चरण में ही 70 से ज्यादा देशों ने इस पर हस्ताक्षर ‌कर दिए थे।

★ इसके बाद बीते साल दिसंबर में पेरिस में जुटे 195 देशों ने सदी के अंत तक वैश्‍विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस कम रखने का लक्ष्य तय करते हुए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

 

★ जिसमें ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले बड़े देशों को इसमें कमी करने और छोटे देशों की आर्थिक मदद करने का प्रस्ताव तैयार हुआ था।

★ उस समय अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली और भारत-चीन समेत तमाम बड़े देशों ने इस पर सहमति जताते हुए संधि पर हस्ताक्षर किए थे।

★ समझौते के तहत 2020 तक सभी सदस्य देश एक बार फिर इस मुद्दे पर अपनी बात रखेंगे और बताएंगे कि अपने अपने देशों में उन्होंने कार्बन उत्सर्जन में कितनी कमी की है।

 

=>समझौते में बताई खामियां-

★ हालांकि इस समझौते को बहुत देरी से उठाया गया सीमित कदम बताया जा रहा है। उसकी बड़ी वजह ये है कि सदी के अंत तक मात्र दो डिग्री सेल्सियस तापमान कम रखने के लक्ष्य से जलवायु परिवर्तन पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।

★ दूसरा इस समझौते में एक बड़ी कमी ये है कि किसी भी देश ने अभी तक न उन उपायों के बारे में बताया है जिससे वह कार्बन उत्सर्जन को कम करेगा और न ही कार्बन उत्सर्जन कम करने की असली लक्ष्य के बारे में जानकारी दी गई है।

 

=>क्या थी अमेरिका की भूमिका

★ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्‍था और विकसित राष्ट्र होने के नाते पेरिस समझौते में अमेरिका की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण थी।

★अमेरिका पे जहां खुद भी 26 फीसदी तक कार्बन उत्सर्जन स्वेच्छा से कम करने की हामी भरी थी वहीं राष्ट्रपति बराक ओबामा के नेतृत्व में अमेरिका ने समझौते में शामिल गरीब देशों को 3 बिलियन डॉलर मदद करने का आश्वासन दिया था।

 

★ अमेरिका को दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश माना जाता है ऐसे में ट्रंप के हाथ पीछे खींचने के बाद इस समझौते को झटका लगना तय है।

★ हालांकि अमेरिका के समझौता तोड़ने के बाद भारत और चीन ने इस पर अमल का आश्वासन दिया है। वहीं फ्रांस, जर्मनी और इटली ने संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा है कि वह पेरिस समझौते की अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहेंगे और खुद के साथ ही पूरी दुनिया के देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।

 

=>भारत-चीन क्यों हुए बदनाम -

★भारत और चीन दोनों दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्‍था हैं। दोनों ही देशों में औद्योगिक उत्पादन पिछले कुछ समय में काफी तेजी से बढ़ा है। जिसकी वजह से माना जा रहा है कि दोनों देशों में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में भी काफी तेजी आई है।

★ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसी मुद्दे पर भारत और चीन पर निशाना साध रहे हैं।

ट्रंप का आरोप है कि सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन भारत और चीन करते हैं तो फिर इसके लिए अमेरिका बड़ी कीमत क्यों चुकाए?

★हालांकि ट्रंप के दावे से इतर एक हकीकत ये भी है कि भारत और चीन दोनों ही देशों ने पूरी प्रतिबद्धता के साथ 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 30-35 फीसदी तक कमी लाने का लक्ष्य रखा है। भारत के साथ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी इस समझौते के प्रति प्रतिबद्धतता जताते हुए कहा था कि चीन दुनिया के साथ मिलकर कार्बन उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य पर आगे बढ़ेगा।

चीन के अनुसार जलवायु परिवर्तन से बचाव वैश्विक जिम्मेदारी है और चीन इसे पूरी ईमानदारी के सा‌थ निभाएगा।

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