क्या है यह
ठोस कूड़ा एक सामान्य शब्द है जिसका इस्तेमाल उत्पादन प्रक्रिया के दौरान पैदा होने वाले अनुपयोगी सह-उत्पादों के साथ-साथ ऐसी बेकार वस्तुओं के लिए भी किया जाता है जिनकी उनके मालिकों के लिए कोई उपयोगिता नहीं है।
म्युनिसिपल सालिड वेस्ट यानी शहरी ठोस कूड़े का अर्थ ऐसी ठोस बेकार वस्तुओं से है जिनको इकट्ठा करने और निपटाने की जिम्मेदारी नगरपालिकाओं या स्थानीय शहरी निकायों की होती है। शहरी ठोस कूड़े का समुचित प्रबंध स्थानीय निकायों के महत्वपूर्ण उत्तरदायित्वों में से एक है।
भारत में स्थिति
- वर्तमान में देश भर में प्रति वर्ष 62 मिलियन टन कचरा उत्पन्न होता है, जिनमें से
- 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा
- 0.17 मिलियन टन जैव चिकित्सा अपशिष्ट
- 7.90 मिलियन टन खतरनाक अपशिष्ट और
- 15 लाख टन ई-कचरा है।
- भारतीय शहरों में प्रति व्यक्ति 200 ग्राम से लेकर 600 ग्राम तक कचरा प्रतिदिन उत्पन्न होता है।
- प्रतिवर्ष 43 मिलियन टन कचरा एकत्र किया जाता है, जिसमें से 11.9 मिलियन टन को संसाधित किया जाता है और 31 मिलियन टन कचरे को भराव क्षेत्रों (लैंडफिल साइट) में फेंक दिया जाता है। अर्थात नगर निगम अपशिष्ट का केवल 75-80 प्रतिशत ही एकत्र किया जाता है और इस कचरे का केवल 22-28 प्रतिशत संसाधित किया जाता है।
- उत्पन्न होने वाले कचरे की मात्रा मौजूदा 62 लाख टन से बढ़कर वर्ष 2030 में लगभग 165 मिलियन टन के स्तर पर पहुंच जाएगी।
इससे होने वाले नुकसान
ठोस कूड़े की ठीक तरह से सफाई न होने के कारण ही अनेक बीमारियाँ पैदा होती हैं। शहरी ठोस कूड़े की ठीक से सफाई न होने के एक मामले में 1998 में दिल्ली में हैजे और पेचिश से करीब एक सौ लोग मारे गए थे