- सुप्रीम कोर्ट ने नदियों और तालाबों में दूषित कचरा प्रवाहित करने पर अंकुश लगाने के लिये निर्देश देते हुए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा कि यदि औद्योगिक इकाईयों में चालू अवस्था में कचरा शोधन संयंत्र नहीं हो तो उन्हें काम करने की अनुमति नही दी जाए। लेकिन इससे पहले औद्योगिक इकाईयों को इस बारे में नोटिस दिया जाए।
- प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि नोटिस की तीन महीने की अवधि समाप्त होने के बाद राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को औद्योगिक इकाईयों का निरीक्षण करके उनमें कचरा शोधन संयंत्रों की स्थिति के बारे में पता लगाना चाहिए।
- यदि औद्योगिक इकाईयों में कचरा शोधन संयंत्र काम करते नहीं मिले तो उन्हें और चालू रखने की अनुमति नहीं दी जाएगी। न्यायालय ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया कि वे ऐसी औद्योगिक इकाईयों की बिजली आपूर्ति बंद करने के लिये संबंधित विद्युत आपूर्ति बोर्ड से कहें।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इन इकाईयों में कचरा शोधन संयंत्र चालू होने के बाद ही उन्हें फिर से काम शुरू करने की अनुमति दी जानी चाहिए। यही नहीं, शीर्ष अदालत ने स्थानीय प्रशासन और नगर निगमों से कहा कि वे भूमि अधिग्रहण करने और दूसरी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद तीन साल के भीतर साझा कचरा शोधन संयंत्र स्थापित करें।
न्यायालय ने कहा कि यदि स्थानीय प्रशासन को साझा कचरा शोधन संयंत्र स्थापित करने और इसे चलाने में वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा हो तो वे इसका उपायोग करने वालों पर उपकर लगाने के मानदंड तैयार कर सकते हैं। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकारों को साझा कचरा संयंत्र स्थापित करने के बारे में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय हरित अधिकरण की संबधित पीठ में दाखिल करना होगा।