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राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने दिल्ली सरकार को दक्षिण दिल्ली में पुनर्चक्रित जल की आपूर्ति के लिए अलग से पाइपलाइन बिछाने की संभावना तलाशने का निर्देश दिया है। यों तो यह निर्देश अभी दोहरी लाइन बिछाने के लिए नहीं है, लेकिन जिस तरह से महानगरों में शुद्ध पेयजल की बर्बादी हो रही है, वह दिन दूर नहीं, जब न केवल दिल्ली बल्कि दूसरी जगहों पर भी इसकी जरूरत पड़ेगी।
- शौचालयों, बागवानी और निजी वाहनों को धोने तथा आरओ मशीनों वगैरह में जिस तरह से पेयजल का भारी मात्रा में दुरुपयोग हो रहा है, वह सचमुच चिंताजनक है।
- एक तरफ लाखों-करोड़ों लोग शुद्ध पेयजल की किल्लत से जूझ रहे हैं और दूषित पानी पीकर तरह-तरह के रोगों के शिकार हो रहे हैं, वहीं दूसरे तरफ बड़े पैमाने पर पेयजल का दुरुपयोग हो रहा है।
- एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की करीब दो करोड़ आबादी में तीस प्रतिशत लोगों को शुद्ध पानी नहीं मिल पाता। दिल्ली ही क्यों, तमाम शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों पर नजर डालें तो शुद्ध पेयजल भारत की बहुत बड़ी समस्या है।
- महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य और बुंदेलखंड जैसे इलाके, जो लंबे अरसे से सूखे से जूझ रहे हैं, उनकी समस्या की विकरालता का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। दिल्ली जैसे राज्य में, जो पानी की अपनी जरूरत पूरी करने के लिए पड़ोसी राज्यों पर निर्भर है, पानी की ऐसी बर्बादी आश्चर्यजनक है।
- ऐसे वक्त में एनजीटी ने उचित ही दिल्ली सरकार के पर्यावरण सचिव से कहा कि वे डीडीए, दिल्ली जल बोर्ड और दक्षिण दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों के साथ बैठक कर दोहरी पाइप लाइन की संभावना की राह तलाशें।
पहली नजर में यह हिदायत थोड़ी अजीब या ज्यादा खर्चीली लग सकती है, लेकिन कई मुल्कों में अलग-अलग कामों के लिए पानी की दोहरी पाइपलाइन की व्यवस्था है। दिल्ली जल बोर्ड ने कुछ समय पहले ऐसी योजना बनाई भी थी, लेकिन उस पर अमल नहीं हो पाया। दिल्ली में पानी की बर्बादी की बड़ी वजह है वाहनों की सफाई। अमेरिका जैसे देशों में जहां वाहनों की संख्या भारत से कहीं ज्यादा है, सफाई में तुलनात्मक रूप से कम पानी खर्च होता है। मोटे अनुमान के मुताबिक दिल्ली में कार, बस, टैक्सी और दो पहिया वाहनों की धुलाई में करीब पांच करोड़ लीटर पानी रोजाना खर्च हो जाता है। इसमें से काफी पानी घरों में सप्लाई होने वाला पेयजल होता है। शौचालयों में फ्लश के जरिए और बागवानी में भी पेयजल का बड़ा हिस्सा खर्च होता है।
दोहरी पाइपलाइन की व्यवस्था निश्चित रूप से एक स्थायी विकल्प हो सकती है, लेकिन इस प्रस्ताव को साकार होने में अभी काफी वक्त लग सकता है। वैसे कई ऐसी तरकीबें और सावधानियां हैं, जिन पर लोग ध्यान दें तो काफी हद तक पानी बचाया जा सकता है। वर्षाजल संचयन, पानी की टंकियों में वाटर ओवरफ्लो अलार्म, आरओ मशीन के पानी का किसी बर्तन में संचयन आदि कई तरीके हैं, जिन्हें लोग अमल में लाएं तो कुछ सकारात्मक बदलाव आ सकता है। कड़ा कानून भी एक रास्ता है। लेकिन सबसे ज्यादा उपयोगी है जन-जागरूकता। पानी की बर्बादी पूरे समाज के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए।