क्यों खबरों में :
हाल ही में सरकार ने rail बजट अलग से नहीं पेश करने पर मुहर लगा दी है |
रेल बजट अलग रखने के तर्क :
- इससे रेलवे को मजबूत आर्थिक आधार दिया जा सकेगा।
- यह भी दलील है कि रेलवे की आमदनी इतनी घट गई है कि यह पृथक बजट की हकदार नहीं रहा। उदाहरण दिया जा रहा है कि अन्य किसी देश में रेलवे का अलग बजट नहीं होता।
रेल बजट को मुख्य बजट में merge करने के तर्क :
- हाल के वर्षों में और खासकर 1996 के बाद आई गठबंधन सरकारों में राजनीति पर दबदबा रखनेवालों ने रेल बजट का इस्तेमाल अपनी छवि बनाने में किया था। रेल मंत्रालय अक्सर क्षेत्रीय दिग्गजों के अधीन रहा, इसलिए रेल बजट में रेल मंत्री की राजनीतिक प्राथमिकताओं को ही ज्यादा तवज्जो दी जाती रही। इस दौरान विभागीय नौकरशाहों की ओर से भी कड़ा प्रतिरोध सामने आया।
- रेलवे का महत्व कितना ही हो वह कुल मिला कर सरकार का एक सार्वजनिक उद्मम है। उस नाते उसे अन्य पीएसयू की तरह चलाया जाना चाहिए।
- विवेक देबरॉय और किशोर देसाई की समिति ने अंग्रेजी हुकूमत के समय की इस व्यवस्था को खत्म करने की सिफारिश की थी.
क्या रेल बजट को मुख्य बजट में शामिल करने से मौद्रिक और वित्तीय नीति में फर्क पड़ेगा?
रेल बजट, केंद्रीय बजट जैसी प्रक्रिया ही अपनाता है। यह भी सारी घोषणाओं के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले कैबिनेट से मंजूरी लेता है। सारी आमदनी एकीकृत फंड में जाती है और मांग संसद की अनुमति के बाद अनुदान में बदल जाती है। कुछ 'सशुल्क' खर्च छोड़ दें तो खर्च के लिए पैसा संसद की मंजूरी के बाद ही लिया जा सकता है। फर्क इस बात में है कि रेल बजट का हिस्सा होने पर बारीक ब्योरे भी सार्वजनिक रहते हैं और लोग विकास होता हुआ देख सते हैं। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह पारदर्शिता बहुत जरूरी है।