राज्य की ताकत बढ़ने से निजता को ज्यादा खतरा

#Bhaskar

आधार कार्ड के बहाने देश की सर्वोच्च अदालत की संवैधानिक पीठ निजता के जिस अधिकार को मौलिक अधिकार मानने मानने पर सुनवाई कर रही है उसके दूरगामी परिणाम होंगे।

Previous precedent

  • इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की आठ और छह सदस्यीय पीठ क्रमशः 1954 और 1962 में यह मान चुकी है कि यह मौलिक अधिकार नहीं है।
  •  इसके बावजूद आधार कार्ड से निजता में बढ़ते हस्तक्षेप के कारण अदालत के समक्ष कई याचिकाएं सुनवाई के लिए आई हैं और उनका निराकरण इस मुद्दे पर राय बनने के बाद ही हो पाएगा।

Rising state power?

  • संविधान बनने के समय राज्य की संस्था इतनी ताकतवर नहीं थी, जितनी आज हो गई है। बल्कि आज राज्य से भी आगे बढ़कर बाजार की (मीडिया जैसी) संस्थाएं भी बहुत ताकतवर हो गई हैं।
  • राज्य और बाजार से इतर तमाम संस्थाएं ऐसी हैं जो इन दोनों के इशारों पर काम करती हैं और वे व्यक्ति के निजी जीवन में झांकने और हस्तक्षेप करने की भरपूर शक्ति रखती हैं।
  •  इसलिए निजता की रक्षा सिर्फ इस आधार पर नहीं हो सकती कि भारतीय दंड संहिता और संविधान में तमाम अधिकार दिए गए हैं। हालांकि संविधान निर्माताओं ने निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना था और तब शायद उन्हें यह आभास नहीं था कि एक दिन राज्य इतना ताकतवर हो जाएगा और व्यक्ति इतना कमजोर।

View of Bapu

हालांकि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी राज्य को कमजोर करने और व्यक्ति को ताकतवर बनाने के पक्ष में थे। महात्मा गांधी समझते थे कि राज्य व्यक्ति और समाज के साथ इतना न्याय करेगा और समाज में ऐसी मानवीय भावना विकसित होगी कि हिंसा बहुत कम होगी।

In Today’s context

आज हिंसा से सिर्फ राज्य की संस्थाएं असुरक्षित हैं बल्कि व्यक्ति भी बेहद असुरक्षित है। राज्य ने इसी असुरक्षा को घटाने और सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए अपने पास असीमित अधिकार ले रखे हैं। यह बहस चलनी चाहिए कि सामाजिक सुरक्षा सामाजिक न्याय देने से बढ़ेगी या कड़े कानून बनने से। सामाजिक सुरक्षा उदारता से बढ़ेगी या कट्टरता से। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका तब बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है अगर वह व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का दायरा बढ़ाता है। लेकिन साथ उसके सामने सामाजिक सुरक्षा और न्याय की भी चिंता है, जिसके तहत राज्य को कई अधिकार देना भी जरूरी है। फैसला जो भी होगा इससे समाज में हलचल होगी और नए किस्म की बहस शुरू होगी

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download