- युनिसेफ का मानना है कि डिजिटल प्रौद्योगिकी बच्चों के विकास के बहुत से अवसर प्रदान करती है लेकिन डिजिटल साक्षरता और आनलाइन सुरक्षा की कमी के कारण बच्चों के साथ आनलाइन अपराध, उत्पीड़न एवं शोषण की सम्भावना कई गुना अधिक होती है। बच्चों के खिलाफ होने वाले साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं लेकिन बहुत कम ऐसे हैं जो प्रकाश में आ पाते हैं।
- इन अपराधों से निपटने के लिए तमाम प्रतिभागियों जैसे कि सरकारी संस्थाओं, प्रौद्योगिकी मंत्रालय, मीडिया, समाजसेवी संस्थाओं, स्कूलों, अध्यापकों तथा माता-पिता को मिलकर काम करने की जरूरत है। सबसे अधिक जरूरत तो बच्चों को इन अपराधों के खिलाफ जागरूक करने की है। बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों में अश्लील संदेश, अश्लील फोटो, पोर्न, साइबर बुलिंग, ब्लैकमेलिंग, बच्चों को डराना-धमकाना आदि शामिल हैं। बहुत बार तो बच्चों को डरा-धमकाकर उनसे बड़ी रकम भी ऐंठ ली जाती है। ऐसी बातें कई बार अखबारों और चैनल्स की खबर भी बनी हैं।
- आजकल दुनियाभर में बच्चों की आनलाइन सुरक्षा को काफी महत्व दिया जा रहा है लेकिन भारत अभी इस दिशा में काफी पीछे है। सच तो यह है कि कोई भी एक संस्था इस तरह के अपराधों से नहीं निपट सकती। इसके लिए सबको मिल-जुलकर काम करने की जरूरत है। बच्चों को जागरूक करने के लिए पुस्तकालयों की मदद ली जा सकती है। वहां ऐसे प्रोग्राम चलाए जा सकते हैं जहां बच्चों को बड़ी संख्या में आनलाइन अपराधों के प्रति सचेत किया जा सके।
- आमतौर पर देखा गया है कि माता-पिता समझते हैं कि बच्चा जो कुछ कर रहा है, उसकी जिम्मेदारी अध्यापकों और स्कूल की है। और अध्यापकों को लगता है कि बच्चों की प्राथमिक जिम्मेदारी माता-पिता की ही है। कहा जाता है कि घर वालों को यह देखना चाहिए कि बच्चे क्या कर रहे हैं। लेकिन आजकल के समय में जहां बड़े शहरों के माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं, वे पूरे समय इस बात की निगरानी कैसे कर सकते हैं कि उनका बच्चा पूरे दिन कम्प्यूटर पर क्या कर रहा है। जबकि भारत में फेसबुक का सबसे अधिक इस्तेमाल करने वाले बच्चे ही हैं।
- कई बार विरोधाभासी बातें भी सामने आती हैं। जैसे कि बच्चों के लिए काम करने वाले संगठन कहते हैं कि बच्चों की जासूसी नहीं की जानी चाहिए। उन्हें आजादी देनी चाहिए। आनलाइन सुरक्षा की बात करने वाले कहते हैं कि बच्चे क्या कर रहे हैं, इस पर अध्यापकों और परिवार वालों को नजर रखनी चाहिए। कई बार तो पुलिस भी स्वयं को इस तरह के अपराधों से निपटने में अक्षम पाती है क्योंकि इस तरह के अपराध उनके लिए भी नए हैं।
- बच्चों के खिलाफ होने वाले ये अपराध नेशनल ब्यूरो आफ इन्वेस्टीगेशन की रिपोट्र्स में भी अलग से जगह नहीं पाते। जब तक साइबर अपराधियों को सजा नहीं मिलती तब तक उनके अपराधों में कमी आने की गुंजाइश कम दिखती है। इसीलिए इनसे निपटने के लिए अमेरिका के एक एनजीओ की मदद ली जा रही है।
इस दिशा में झारखंड सरकार ने 2012 में ई-रक्षा नाम से एक अभियान शुरू किया था। यहां बच्चों को एक हैल्पलाइन नम्बर दिया गया। इस हैल्पलाइन पर सिर्फ झारखंड के बच्चों के ही नहीं, तमिलनाडु और दूरदराज के इलाकों के बच्चों के फोन आते हैं जो पुलिस अधिकारियों से मदद की गुहार करते हैं। कई बच्चे तो आत्महत्या करने की बातें करते हैं। उनकी लगातार काउंसलिंग की जाती है। बड़ी संख्या में लड़कियां भी फोन करती हैं।
सच बात यह भी है कि आनलाइन यौन अपराधों में लड़कियों और छोटे बच्चों को फंसाने के लिए अपराधी तैयार बैठे रहते हैं। तेलंगाना सरकार ने बच्चों की पाठय पुस्तकों में इस तरह के अपराधों के प्रति उनकी जागरूकता बढ़ाने के अभियान की शुरुआत की है। सारी बातों पर नजर डालने पर एहसास होता है कि बच्चों की दिनचर्या के बारे में माता-पिता को ध्यान देना जरूरी है। आज एकल परिवारों में इस बात की जरूरत ज्यादा है।
- अगर किसी के बच्चे के साथ कोई साइबर अपराध हुआ है तो बच्चे को समझाया जाना चाहिए कि वह डरे नहीं। फिर इसकी सूचना जल्दी से जल्दी पुलिस को अवश्य देनी चाहिए क्योंकि अपराधियों से निपटने के लिए आज भी पुलिस की महत्वपूर्ण भूमिका है। अपने बल पर शायद ही कोई पूरी तरह से इन अपराधियों से निपट सकता है।