#Dainik_Bhaskar
आजकल राष्ट्रीय स्तर के इलेक्ट्रॉनिक समाचार चैनलों के बीच सीमावर्ती संवेदनशील सैन्य स्थलों की रिपोर्टिंग करने की होड़ मची है। चैनलों के संवाददाता कई बार अपने अथवा सेना के ही वाहनों व हवाई जहाजों से सैन्य ठिकानों अथवा अंतरराष्ट्रीय सीमा पहुंच जाते हैं। इनकी रिपोर्ट्स में संबंधित जगह की दुर्गम्यता, सेना के जवानों के लिए रसद की स्थिति, परिवहन के साधनों की उपलब्धता, मौसम, संबंधित ठिकाने पर सैन्य कर्मियों की दिनचर्या आदि संबंधी जानकारी शामिल होती हैं। ये रिपोर्टें प्रसंग के अनुरूप उस वक्त तो प्रसारित होती ही है, बाद में भी कई महीनों तक फिलर के तौर पर इनका प्रसारण होता रहता है।
- कुछ महीने पूर्व एक चैनल पर सेना की आयुध फैक्ट्री के अंदर का दृश्य दिखाया जा रहा था। उक्त संवाददाता को सुरक्षा जैकेट व मास्क के साथ वहां पहुचने की अनुमति कहां से और कैसे मिली यह हैरानी की बात है।
- चैनल्स यह भूल जाते हैं कि उनके द्वारा जाहिर की जा रही यह संवेदनशील सूचनाएं देश के दुश्मनों के लिए सहायक सिद्ध हो सकती हैं और होती हैं। इसका प्रमाण हम नवंबर 2008 को मुंबई हमले में देख चुके हैं। इसके बाद ही सरकार को सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों के सीधे प्रसारण पर रोक संबंधी निर्देश जारी करने पड़े। बेशक, इस तरह के प्रसारण की अनुमति देने के लिए सेना के अपने नियम-कायदे होते होंगे और उन्हीं के अनुरूप इजाज़त दी जाती होगी लेकिन, इसके बाद भी मीडिया का यह दायित्व है कि इस अनुमति का वाजिब इस्तेमाल ही करे और दायरे से बाहर नहीं जाएं।
हमारे बहादुर सैनिक जिन विषम परिस्थितियों में देश की सुरक्षा के लिए काम करते हैं उसकी जानकारी जनता को बिना देश की सुरक्षा के साथ समझौता किए भी दी जा सकती है, जो कुछ सरकारी समाचार चैनलों व प्रिंट मीडिया द्वारा किया भी जाता है। सरकार मौजूदा सैन्य नियम-कायदों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना होगा। मीडिया समूहों के नियामक संस्था को भी चैनलों को जिम्मेदारी भरी रिपोर्टिंग करने के निर्देश देने चाहिए
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