मतभेदों और उम्मीदों के बीच जी-20 शिखर सम्मेलन

#Dainik_Bhaskar

शेपिंग इन इंटर-कनेक्टेड वर्ल्ड’ के लिए जुटे दुनिया के प्रमुख नेताओं के गहरे मतभेदों और बाहर ‘वेलकम टू हेल’ के नारों के साथ वामपंथी विरोध प्रदर्शनों के बीच जर्मनी के हैमबर्ग शहर में हो रहे G-20 शिखर सम्मेलन से दुनिया की उम्मीदें भी कम नहीं हैं। निश्चित तौर पर पिछली सदी के लिहाज से दुनिया आज ज्यादा समझदार हुई है और पहले के मुकाबले ज्यादा संबद्ध विश्व विकसित हुआ है लेकिन, आज भी आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक विकास और कई क्षेत्रों के टकरावों के कारण सभ्यताओं के संघर्ष के रूप में विश्वयुद्ध की छाया मंडरा रही है।

  • अगर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कहते हैं कि पश्चिम को अपने अस्तित्व के लिए इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना होगा तो पुतिन अपने देश के विरुद्ध यूरोपीय संघ और अमेरिका की पाबंदियों को संरक्षणवाद की संज्ञा देते हैं।
  • ट्रम्प ने पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को अलग करके बाकी दुनिया के भविष्य से खेलने का खाका तैयार कर लिया है।
  •  एक तरफ जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल और रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन और दूसरे देश चाहते हैं कि अमेरिका पेरिस समझौते को डूबने से बचाए तो ट्रम्प चाहते हैं कि रूस जिम्मेदार राष्ट्रों की टोली में शामिल हो।
  • इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहकर कि एक देश दक्षिण एशिया में आतंकवाद फैला रहा है, एशियाई जटिलताओं की ओर दुनिया का ध्यान खींचा है।

Origin of these differences:

ये मतभेद पहले से चली आ रही राजनीतिक स्थितियों और शीतयुद्ध की घटनाओं से तो संबंध रखते हैं लेकिन, इनका रिश्ता पिछले तीस वर्षों में चली वैश्वीकरण की प्रक्रिया से गहरा है। उस प्रक्रिया की सफलताओं के चलते जहां भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देश उसे और गति देना चाहते हैं वहीं अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश विफलताओं के कारण उसे उलट देने का दबाव बना रहे हैं। यूरोप में मर्केल जैसी नेता अगर खुलेपन की वकालत करती हैं तो दूसरे देश शरणार्थी समस्या पर अनुदार रवैया रखते हैं। अमेरिका ने भी परदेशियों का खुले दिल से स्वागत करने की बजाय संदेह के साथ आमंत्रण देना शुरू किया है। यह सब अंतर्संबद्ध विश्व के मार्ग में आने वाली खाइयां, खतरनाक मोड़ और कोहरे हैं। इस चुनौती में पिछली सदी के अनुभव और मूल्य हमारे लिए सहायक हो सकते हैं लेकिन, हम पीछे लौट नहीं सकते। आगे बढ़ना हमारी नियति है और विवेक, संयम और बंधुत्व ही हमारे संबल हैं।

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