दुनिया की खामोशी से शर्मसार मानवता : Rohingya Issue

 

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने म्यांमार से कहा है कि वह सेना को रोहिंग्या समुदाय का दमन करने से रोके। लेकिन सरकार की सहमति से हो रहे ये जुल्म लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

  • अगस्त मध्य में फौज ने फिर हिंसक कार्रवाई की, जिसमें अनेक रोहिंग्यायियों के मारे जाने की खबर है।
  • सदियों से रहते आने के बावजूद उनको बेगाना घोषित कर दिया गया है।
  • इस बेघर-बेमुल्क समुदाय की न अपनी पहचान बची है, न जमीन।
  • न उन्हें नागरिकता मिली हुई है। उनके स्वतंत्र आवागमन, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा जैसे बुनियादी हक भी उनसे छीन लिए गए हैं। वोट देने का अधिकार भी उनको नहीं है।
  • दो करोड़ की आबादी वाला यह समुदाय दुनियाभर में फैला हुआ है। ये लोग धर्म के लिहाज से मुस्लिम हैं। उन पर अत्याचार में स्थानीय सेना के साथ ही बहुसंख्यक बौद्ध आबादी भी शामिल है।
  • वे भाग कर पड़ोसी देशों में जाते हैं तो उन्हें वहां से खदेड़ दिया जाता है। इस मुद्दे पर भारत की भूमिका बहुत अहम रही है।

Who are Rohingyas:

रोहिंग्या म्यांमार के उत्तरी प्रांत अराकान क्षेत्र (अब रखाइन) के मूल निवासी माने जाते हैं। सरकार क्योंकि उनका देश निकाला करने पर तुली हुई है, इसलिए वे जान बचाने और चैन की तलाश में आसपास के देशों-भारत, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड आदि में पलायन करते हैं।

UN & Rohingyas

  • संयुक्त राष्ट्र ने हिंसा की नई घटनाओं के बाद म्यांमार से सख्त लहजे में कहा है कि वह रोहिंग्या लोगों पर हो रहे जुल्म रोके।
  • अचंभे की बात है कि मानवाधिकारों के लिए जिंदगीभर लड़ती रही नोबेल पुरस्कार प्राप्त आन सान सू ची इन अत्याचारों पर एकदम चुप्पी साधे हुए हैं।
  • यह स्थिति अचानक नहीं आई है। 1948 में बर्मा (म्यांमार ) आजाद हुआ तो रोहिंग्यायियों को नागरिकता देने से इनकार कर दिया गया और उन्हें उजाड़ने की कोशिशें की जाने लगीं।
  • बहुसंख्यकों की इस दादागिरी के विरोध में लगातार आवाज उठाने के बावजूद जुल्म नहीं थमे तो कई बार सशस्त्र बगावत का रास्ता भी अपनाया गया, लेकिन सैन्य शासन बौद्धों की बात मानकर बगावत को हर बार कुचलता रहा।

India & Rohingyas

  • भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या का सही अनुमान नहीं लगाया गया है, लेकिन उनके आने का सिलसिला बना हुआ है।
  • गृह राज्य मंत्री ने साफ़ कहा कि अब और शरणार्थियों को भारत में घुसने की छूट नहीं दी जा सकती। मानवाधिकार संगठनों की दलीलों पर तल्ख होते हुए रिजिजू ने कहा कि इस मामले में भारत का रुख किसी भी अन्य देश से कमतर नहीं है।
  • मोटे अनुमान के मुताबिक भारत में इस समय लगभग 25 हजार रोहिंग्याई शरण लिए हुए हैं।
  • ये लोग जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार आदि राज्यों में बेहद डर के साथ वक्त बिता रहे हैं। अनुमान है कि बांग्लादेश में करीब चार लाख रोहिंग्याई रह रहे हैं।
  • बांग्लादेश के नेता रोहिंग्यायियों को देश से निकालने पर भी विचार करते रहे हैं। लेकिन एक तो मुस्लिम धर्मानुयायी और दूसरे बांग्लाभाषी होना हर बार किसी कठोर कार्रवाई से रोकता रहा है।

अमेरिका का नरसंहार स्मृति संग्रहालय रोहिंग्यायियों की राज्यविहीन बंगाली मुस्लिमों के रूप में पहचान करता है। रोहिंग्या कभी बर्मा के शासक भी रहे हैं। उनकी आबादी बंगाल की खाड़ी के पूर्वी तटीय क्षेत्र में एक लग्बी पट्टी, जिसे भूगोल अराकान के नाम से पहचानती है, पर बसी हुई है। यह पट्टी उत्तर से दक्षिण में 640 किलोमीटर लम्बी है और उसकी चौड़ाई 145 किलोमीटर है। यह इलाका ज्यादातर पहाड़ी होने से खेती के लिए मुफीद नहीं है।

म्यांमार में लम्बे समय तक सैन्य शासन रहा है और वहां अब जो सरकार है, वह भी मानवीय मूल्यों और अपने ही नागरिकों के प्रति कर्तव्य से आंखें मूंदे हुए है। जुल्म और शोषण के खिलाफ इनसानियत की नींद कब टूटेगी, यह बड़ा सवाल आज सबके सामने है।

QUESTION:

 

GS PAPER IV

अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों तथा निधि व्यवस्था

रोंगयास को भारत से वापस म्यांमार भेजने में क्या नैतिक मुद्दे शामिल है ?

What are the ethical issues involved in sending back Rohingya’s  to Myanmar from India?

http://www.thehindu.com/opinion/editorial/nowhere-people/article19646141.ece

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