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सुप्रीम कोर्ट ने संदिग्ध मुठभेड़ के 62 मामलों की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी. जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने सीबीआई को अधिकारियों की एक जांच समिति बनाने का निर्देश दिया है.
- शीर्ष अदालत का यह आदेश इन संदिग्ध मुठभेड़ों में मारे गए लोगों के परिजनों की जनहित याचिका पर आया. इसमें सेना, असम राइफल और मणिपुर पुलिस पर 2000 से 2012 के बीच 1528 फर्जी मुठभेड़ों को अंजाम देने का आरोप लगाया गया है.
- सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से जनवरी 2018 तक पूरक रिपोर्ट मांगी है.
- अदालत ने इससे पहले अप्रैल में केंद्र को मणिपुर में गैर-न्यायिक हत्या के 265 मामलों में से भारतीय सेना और असम राइफल से जुड़े मामलों को अलग करने के लिए कहा था. इसी तरह मणिपुर सरकार को भी इनमें स्थानीय पुलिस की संलिप्तता वाले मुठभेड़ के मामलों की पहचान करने का निर्देश दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल जुलाई में एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए मणिपुर में मुठभेड़ के सभी मामलों की जांच कराने का आदेश दिया था. शीर्ष अदालत ने कहा था कि जिन अशांत इलाकों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) लागू है, वहां सुरक्षा बलों या पुलिस को जरूरत से ज्यादा ताकत इस्तेमाल करने की छूट नहीं दी जा सकती. सभी मामलों की जांच के आदेश पर केंद्र सरकार ने कहा था कि सेना की मानवाधिकार डिविजन और रक्षा मंत्रालय इन सभी मुठभेड़ों की जांच करा चुका है, इसलिए इनकी स्वतंत्र जांच कराने जरूरत नहीं है. वहीं, सेना का कहना था कि जम्मू-कश्मीर और मणिपुर जैसे अशांत इलाकों में आतंकरोधी अभियानों को लेकर एफआईआर नहीं दर्ज कराई जा सकती. हालांकि, शीर्ष अदालत ने इन दलीलों को नहीं माना था.