- देश में कीटनाशकों (इनसेक्ट्स के खिलाफ इस्तेमाल होने वाले मॉस्किटो रिप्लैंट, कॉइल, स्प्रे आदि) का सालाना बाजार चार हजार करोड़ पार कर गया है। साफ है कि घरेलू कीटनाशक घर के हर कोने में पहुंच रहे हैं, क्योंकि लोगों को मच्छर-मक्खी ही नहीं, कॉक्रोच, छिपकली, दीमक आदि सभी इनसेक्ट्स से मुक्ति चाहिए। पर कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल हमारी सेहत की बलि भी ले रहा है।
- मगर यह कोई नहीं बता रहा कि कितनी मात्रा तक इनका इस्तेमाल सुरक्षित है और कहीं इनका कोई विपरीत प्रभाव हमारी सेहत पर तो नहीं पड़ रहा है? नि:संदेह इनसान को जीवित रहने के लिए सबसे ज्यादा संघर्ष बाहरी और भीतरी संक्रमणों और कीटों से निपटने के लिए करना पड़ता है।
- मक्खी-मच्छर मारने वाले ऐसे कीटनाशकों में मौजूद फीनोथ्रीन (ऑर्गेनो फॉस्फोरस न्यूरोटॉक्सिन) इनसानों की सेहत को भारी नुकसान पहुंचाता है क्योंकि इससे उनमें कैंसर, पार्किन्सन और याददाश्त की कमजोरी आदि बीमारियां हो सकती हैं।
- गर्मी और माॅनसूनी बरसात के दौर में देश में हर तरह के मच्छर प्रतिरोधी—मॉस्किटो रिप्लेंट्स की बिक्री और इस्तेमाल बढ़ जाता है। इधर, कुछ अरसे से कस्बों और शहरों से मच्छरदानियां तकरीबन गायब हो गई हैं और बिजली से चलने वाले मॉस्किटो रिप्लेंट्स तेजी से प्रचलन में आए हैं।
- इसी तरह रसोइयों में बर्तन चमकाने का साबुन, बाथरूम को चमकाने और कीटाणुमुक्त रखने वाले लिक्विड, फर्श को चमकाने और कीटों से निजात दिलाने के लिए खुशबूदार केमिकल लोग धड़ल्ले से इस्तेमाल में ला रहे हैं। बीमारियों के वाहक इन कीट-पतंगों को खत्म करने के जो तौर-तरीके इस्तेमाल में आए हैं, वे हम इनसानों के लिए कितने सुरक्षित हैं?
=>इस सन्दर्भ में प्रयोग :-
1. इस बारे में अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी के फार्माक्लॉजिस्ट मोहम्मद अबु-डोनिया ने एक विस्तृत अध्ययन मॉस्किटो रिप्लेंट में इस्तेमाल होने वाले रसायन- डीट (DEET) के बारे में किया है। चूहों पर किए गए प्रयोग में उन्होंने पाया कि डीट के प्रभाव क्षेत्र में रहने वाले चूहों की दिमागी कोशिकाओं (ब्रेन सेल्स) की मृत्यु होने लगी, उनका व्यवहार आक्रामक हो गया और त्वचा में कई परिवर्तन होने लगे।
- अपने अध्ययन के निष्कर्ष में उन्होंने साफ लिखा—इनसान इन तेज असर वाले घरेलू कीटनाशकों से दूर रहें, तो अच्छा।
2. ऐसा ही एक अध्ययन 1980 के दशक में अमेरिका के एवरग्लैड पार्क इलाके में रहने वाले कर्मचारियों पर भी किया गया था। देखा गया कि मॉस्किटो रिप्लेंट का नियमित इस्तेमाल करने वाले लोगों को त्वचा में खुजली, आंखों में जलन, सुस्ती, होंठों पर खुश्की और सिरदर्द जैसी स्वास्थ्य समस्याएं होने लगीं।
- इन अध्ययनों के असर से अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय संघ के देशों में मॉस्किटो रिप्लेंट से लेकर अन्य घरेलू कीटनाशकों में डाले जाने वाले रसायनों की मात्रा सख्ती से नियंत्रित की जाने लगी।
- वहां ऐसे रिप्लेंट और अन्य कीटनाशकों पर साफ लिखा जाता है कि नवजात शिशुओं और गर्भवती स्त्रियों के रहने वाली जगहों का उनका इस्तेमाल नहीं किया जाए क्योंकि ऐसा करने पर बच्चों में आनुवांशिक परिवर्तन होने का खतरा रहता है।
- भारत में फिलहाल ऐसा कोई मापदंड या कायदा-कानून नहीं है जो ऐसे खतरनाक रसायनों का तय मात्रा से ज्यादा इस्तेमाल करने वाली कंपनियों को दंडित करे।
=>" सुरक्षित प्राकृतिक तरीके"
- कीट-पतंगों से निपटने के सुरक्षित प्राकृतिक तरीके भी हो सकते हैं। जैसे, मच्छरदानियां मच्छरों के प्रकोप से निजात दिलाने के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए सौ फीसदी सुरक्षित होती हैं, पर अब इनका प्रचलन शहरों में तो प्राय: खत्म ही हो गया है।
- नीम की पत्तियों और तेल का प्रयोग .
- गांव-कस्बों में पक्के फर्शों की वजह से उन्हें गोबर से लीपने की गुंजाइशें नहीं बची हैं, लिहाजा वहां भी फिनाइल और दूसरे तेजाबी असर वाले केमिकल इस्तेमाल में आने लगे हैं।
- सरकार सख्ती दिखाये तो रिप्लेंट और केमिकल के बेतहाशा इस्तेमाल की नीति पर कुछ अंकुश लग सकता है।