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A look at surveys
सरकार ने हाल ही में अपना ध्यान रोजगार सृजन की ओर केंद्रित किया है। इस बीच ऐसे कई सर्वेक्षण आए हैं जो देश में रोजगार की स्थिति उजागर करते हैं। सारे सर्वेक्षणों को मिलाकर देखा जाए तो अलग-अलग आंकड़ों के बावजूद इनमें से एक साझा संदेश निकलता है। वह संदेश यह है कि:
Ø नए रोजगार पर्याप्त संख्या में तैयार नहीं हो पा रहे हैं।
Ø खासतौर पर आंकड़ों की बात की जाए तो एक जगह पर आम सहमति नजर आती है: देश में हर साल करीब 10 लाख नए रोजगार या साल में कुल 1.2 करोड़ रोजगार सृजित करने की आवश्यकता है। यह आंकड़ा संभवत: देश की आबादी में होने वाली सालाना बढ़ोतरी पर आधारित है। बीते दो दशकों से यह वृद्घि 1.8 करोड़ पर टिकी हुई है। इस आबादी में दोतिहाई हिस्सा श्रम योग्य आबादी का है जिनकी उम्र 15 से 64 वर्ष के बीच है।
Job availability in India:
Ø बहरहाल, ऐसा कोई देश नहीं है जहां श्रम योग्य उम्र वाली पूरी आबादी को रोजगार मिल ही जाता हो। इसके वैश्विक औसत को श्रम शक्ति भागीदारी दर कहा जाता है जो वर्ष 2016 में 63 फीसदी थी।
Ø विश्व बैंक के मुताबिक भारत में यह आंकड़ा 54 फीसदी है (सन 1990 में यह 61 फीसदी था)।
Ø Culture & Job: देश में आंकड़ों की कमतरी के लिए कुछ सांस्कृतिक कारक भी जिम्मेदार हैं। क्योंकि यह मुद्दा प्राथमिक तौर पर अस्वाभाविक रूप से महिलाओं की कम भागीदारी का है। घरों से बाहर वे बहुत कम काम करती हैं। भारतीय महिलाओं की घर से बाहर काम में भागीदारी 50 फीसदी के वैश्विक औसत का आधा है। जबकि भारतीय पुरुषों की बात करें तो उनकी श्रम भागीदारी 79 फीसदी है जो वैश्विक औसत से कुछ बेहतर है।
Ø देश की कम श्रम भागीदारी की वजह सांस्कृतिक है या नहीं यह अलग मसला है लेकिन इसका तात्पर्य यही है कि वर्ष 2017 में तकरीबन 130 करोड़ की आबादी में और करीब 87 करोड़ की काम करने लायक आबादी में केवल 47 करोड़ लोगों के पास ही रोजगार होगा। यानी कुल आबादी का 36 फीसदी। इस अनुपात में देखें तो कुल आबादी जहां सालाना 1.8 करोड़ की गति से बढ़ रही है वहीं सक्रिय श्रम शक्ति में सालाना 65 लाख का ही इजाफा हो रहा है। यानी हर वर्ष 1.2 करोड़ नहीं बल्कि इतने ही अतिरिक्त रोजगार सृजित करने होंगे। तभी श्रम शक्ति भागीदारी अपने मौजूदा स्तर पर बरकरार रह सकेगी।
Growth require for Job Creation:
Ø हर वर्ष 65 लाख नए रोजगार सृजित करने का अर्थ है 1.4 फीसदी की रोजगार वृद्घि। सामान्य तौर पर देखें तो 7 फीसदी की दर से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के लिए यह कोई कठिन काम नहीं होना चाहिए।
Ø श्रम शक्ति का आधा हिस्सा कम आय वाले काम जैसे कि कृषि में लगा है जहां प्रतिव्यक्ति आय गैर कृषि कार्य की तुलना में बमुश्किल 1/6 है। खेत बड़ी तादाद में अव्यावहारिक हो चुके हैं। उनसे ज्यादा लोगों का पेट नहीं पलता। हालांकि कृषि में ही बागवानी जैसे विकल्प हैं जो गेहूं और चावल जैसी फसलों की तुलना में ज्यादा ज्यादा देते हैं।
Ø अगर खेतों में काम बढ़ भी जाता है तो भी कृषि से यह उम्मीद करना बेमानी है कि वह मौजूदा की तुलना में कहीं अधिक लोगों का पोषण करेगी।
Ø Manufacturing: नया रोजगार विनिर्माण और सेवा क्षेत्र से ही आएगा। इन दो क्षेत्रों में 65 लाख रोजगार तैयार करने का अर्थ है गैर कृषि क्षेत्र में करीब 2.8 फीसदी की सालाना रोजगार वृद्घि दर। यह कड़ी चुनौती लगती है लेकिन किसी तरह देश इस जद्दोजहद में लगा हुआ है।
Concluding mark:
अगर ऐसा नहीं होता तो कृषि से जुड़े रोजगार में कमी नहीं आती। बहरहाल, कई देशों की तरह मुद्दा यही है कि लोग कम आय वाले अंशकालिक काम से कहीं अधिक सुरक्षित और बेहतर गुणवत्ता वाले रोजगार की ओर बढ़ रहे हैं। यह काम आसान नहीं रहा है क्योंकि औद्योगिक वृद्घि के बारे में लिखने को कुछ खास नहीं है और स्वचालन के चलते मौजूदा रोजगारों पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। लब्बोलुआब यह है कि फिलहाल यह मानते हुए कि अर्थव्यवस्था को हर महीने 10 लाख नए रोजगार की आवश्यकता है, कम से कम इसका आधा तो हासिल किया ही जाना चाहिए