नेशनल एलिजिबिलिटी कम एन्ट्रेंस टेस्ट (एनईईटी) को लेकर विवाद जारी है. 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि देशभर के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिले एक कॉमन एन्ट्रेंस टेस्ट के जरिये किए जाएंगे. पहले दौर का टेस्ट 1 मई को हो चुका है जबकि दूसरे दौर का टेस्ट 24 जुलाई को होगा. एक मई को हुई एनईईटी-1 परीक्षा में करीब 6.5 लाख छात्र बैठे थे.
=> क्या है विवाद :-
- एनईईटी की परीक्षा सीबीएससी के पाठ्यक्रम के अनुसार है. सीबीएसई सभी परीक्षाएं केवल हिंदी और अंग्रेजी में कराती है.
- हिंदी और अंग्रेजी के अलावा दूसरी भाषाओं में परीक्षा देने वाले कई राज्यों के छात्रों ने इस पर ऐतराज जताया है. उनका कहना है कि दूसरी भाषाओं के छात्रों को इससे नुकसान होगा.
- इस मामले पर कुछ सांसदों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों के साथ नाइंसाफी नहीं होनी चाहिए सिर्फ इसलिए की उन्होंने मातृभाषा में पढ़ाई की है.
- वहीं तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के कारण लाखों छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है क्योंकि इन छात्रों ने दो-तीन साल से तैयारी की थी. अब अचानक उनसे परीक्षा के ठीक पहले एनईईटी देने को कहा जा रहा है.
=> बड़े राज्य कर रहे हैं विरोध :-
- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हजारों छात्रों ने गुजरात में मेडिकल में प्रवेश के लिए राज्य की कॉमन एन्ट्रेंस टेस्ट में हिस्सा लिया. इससे पहले गुजरात ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि ज्यादातर छात्र गुजराती में ही राज्य में मेडिकल टेस्ट देते हैं. अब अचानक उन्हें अंग्रेजी में टेस्ट देने के लिए कहा जाएगा तो ये नाइंसाफी होगी.
★एक अनुमान के अनुसार गुजरात में 68 हजार छात्रों में से करीब 60 हजार गुजराती में टेस्ट देते हैं जबकि करीब 600 हिंदी में देते हैं.
★जम्मू-कश्मीर का कहना है कि विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त होने के चलते बिना विधानसभा में बिल लाए एनईईटी को लागू नहीं किया जा सकता. इसके अलावा राज्य में स्थानीय छात्रों को आरक्षण है, इससे वो भी प्रभावित होगा.
★तीन साल पहले 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एनईईटी को गैर कानूनी घोषित किया था. इस आदेश को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य विरोध कर रहे हैं. कई निजी कॉलेजों ने भी एनईईटी का यह कहते हुए विरोध किया था कि इससे दाखिलों में उनकी स्वायत्तता का हनन होगा.