राष्ट्रगीत पर मुहर

#Jansatta

राष्ट्रगीत के रूप में ‘वंदे मातरम’ के गायन पर लंबे समय से विवाद होता रहा है। अक्सर इसे गाने को लेकर किसी राज्य में सरकारी आदेश जारी किए जाते हैं या फिर कुछ राजनीतिक दलों की ओर से मांग उठाई जाती है। लेकिन आमतौर पर हर बार इसे लेकर सवाल उठने लगते हैं और मामला किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाता है।

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अब मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु के स्कूल, कॉलेजों सहित सरकारी संस्थानों में सप्ताह में एक दिन जरूर वंदे मातरम का सामूहिक गायन कराया जाए।

  • इससे पहले इस सवाल पर सहमति या असहमति के स्वर राजनीतिक हलकों में ही उठते रहे हैं, लेकिन इस बार अदालत ने इस गीत को गाने के पक्ष में फैसला सुनाया है, इसलिए ‘वंदे मातरम’ के गायन को लेकर स्थिति साफ होने की उम्मीद बंधी है।
  •  गौर करने वाली बात है कि अब तक इसे गाने को लेकर की जाने वाली मांग में इससे असहमत पक्षों की दलील को खारिज किया जाता रहा है, वहीं मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने साफ लहजे में कहा है कि अगर किसी व्यक्ति या संस्थान को इस राष्ट्रगीत को गाने से समस्या है तो उनके साथ जोर-जबर्दस्ती नहीं की जाएगी, अगर उनके पास इसकी पुख्ता वजह हो।
    दरअसल, इस गीत को गाने या नहीं गाने के मसले पर विवाद का बिंदु यही रहा है।
  •  खासतौर पर मुसलिम संगठनों की ओर से अक्सर यह कहा जाता है कि इस्लाम के मुताबिक अल्लाह के सिवा किसी और की इबादत करने की इजाजत नहीं है, इसलिए ‘वंदे मातरम’ का गायन मुश्किल है।
  • जबकि इसे गाने की मांग उठाने वालों का मानना है कि यह गीत राष्ट्र के प्रति समर्पित है और किसी भी देशभक्त को ‘वंदे मातरम’ के गायन में आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
  • इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने कहा भी कि देशभक्ति इस देश के हरेक नागरिक के लिए जरूरी है और सबको यह समझना चाहिए कि देश मातृभूमि होता है।

 

इसमें कोई शक नहीं कि देश के प्रति आस्था को प्रदर्शित करने के लिए कई तरह की भावनात्मक अभिव्यक्तियां गढ़ी जाती हैं, राष्ट्रगीत भी उनमें से एक है। इसलिए इसके गायन के मसले पर विवाद एक दुखद स्थिति है।

यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि राष्ट्र के प्रति अपनी भावनाएं जाहिर करने के तय मानदंड ऐसे हों, जिसमें सभी नागरिक अपनी स्वाभाविक नुमाइंदगी महसूस करें। यों भी, कोई खास अभिव्यक्ति किसी के देशभक्त होने या न होने का अंतिम मानक नहीं होना चाहिए और इसके लिए किसी को शक के कठघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता।

यों इस मसले पर विवाद का कारण जितना इस गीत से जुड़ा भाव रहा है, उससे ज्यादा यह इसके समर्थक और विरोधियों के बीच टकराव की वजह से चर्चा में रहा है। इसके गायन की मांग करने वाले लोग जहां इसे थोपने तक की वकालत करते हैं, वहीं इससे इनकार करने वाले लोग इस पर अपनी धार्मिक आस्था का हवाला देते हैं। इसी वजह से यह मुद्दा संवेदनशील रहा है। दूसरी ओर, इसे लेकर आम लोग सहज हैं और यहां तक कि मुसलिम समुदाय के बीच से भी इसके गायन को विवाद का विषय नहीं बनाने के लिए अक्सर आवाजें उठती रही हैं। खुद मुसलिम पृष्ठभूमि से आने वाले संगीतकार एआर रहमान ने ‘वंदे मातरम’ को अपनी बनाई धुन पर गाया और वह सभी समुदायों के बीच बेहद लोकप्रिय हुआ है। जाहिर है, देश के प्रति भावनात्मक अभिव्यक्तियां अगर बिना किसी दबाव के सामने आएं तो अपनी गहराई और असर में वे स्थायी नतीजे देने वाली होती हैं

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