खबरों में क्यों
केंद्र सरकार के अधीन केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी सीबीएसई के कुछ हालिया फैसले जिसमे कहा गया है की 2016 समाप्त होते-होते इस बोर्ड ने फैसला किया कि वर्ष 2018 में दसवीं की बोर्ड परीक्षा फिर आरंभ होगी।
2011 में दसवीं की बोर्ड परीक्षा में बैठने का फैसला विद्यार्थियों और स्कूलों के ऊपर छोड़ दिया गया था, लेकिन व्यवहार में बोर्ड लगभग समाप्त हो गया था। इसको वापस बदलकर पुन: यथावत स्थति में ला दिया गया जो २०११ में थी | फेल न करने की नीति, दसवीं की बोर्ड परीक्षा, सीसीई आदि शिक्षा अधिकार कानून, 2009 से बंधे हैं। यह कानून पहली अप्रैल 2010 से लागू हुआ था।
बच्चों को फेल न करने की नीति के पीछे पुरानी नीति के पीछे कारण :
- सदिच्छा यह थी कि गरीब साधनहीन और वंचित तबकों के बच्चे फेल होने के बाद अक्सर स्कूल छोड़ देते हैं।
- बच्चे कच्ची उम्र में मानसिक हताशा और हीनभावना के भी शिकार होते थे।
- विकल्प ‘सतत एवं पूर्ण मूल्यांकन’ (सीसीई) जरूर था,
लेकिन न उसके अनुपालन की तैयारी प्रशिक्षण स्कूलों के पास थी और न ही सरकार के पास। नतीजा शिक्षा की गुणवत्ता बड़ी तेजी से गिरी और अनुशासन भी बिगड़ा।
नई नीती में क्या क्या बदलाव
- Xth board exam 2018 से पुन: चालु होंगे
- हर बच्चे को तीन बार मौका देना जिससे वह आवश्यक अर्हता सक्षमता प्राप्त कर ले। साथ ही स्कूल विशेष पढ़ाई का इंतजाम भी करेंगे।
- भाषा नीति : तीन भाषा सूत्र अब दसवीं तक लागू होगा। इस नीति के तहत मातृभाषा हिंदी और अंग्रेजी सभी के लिए दसवीं तक अनिवार्य होगी। तीसरी भाषा के रूप में उत्तर के छात्र दक्षिण की कोई भाषा पढ़ेंगे। विदेशी भाषा जैसे जर्मन, चीनी, रूसी चौथी भाषा के रूप में पढ़ने की छूट होगी।
- प्राचार्यो की नियुक्ति के लिए समुचित योग्यता परीक्षा का फैसला: अभी तक का अनुभव यही रहा है कि निजी स्कूलों में प्राचार्य पद बिना योग्यता के पुत्र, पुत्री या अन्य निकट संबंधियों को दे दिया जाता है। ऐसा होना किसी भी लोकतांत्रिक संस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है। सुधारों की प्रक्रिया का पक्ष भी जान लेना जरूरी है। यह एक सराहनीय कदम है