राष्ट्रीय एकता और धार्मिक सद्भाव

- राष्ट्रीय एकता और देश के सभी धार्मिक समुदायों की सद्भावना की जरूरत सदा से रही है.

- मौजूदा दौर में तो यह जरूरत और बढ़ गई है. देश की सुरक्षा के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं और इस हालत में देश की मजबूती बढ़ाने का सबसे असरदार उपाय है-देश की एकता व विभिन्न समुदायों की परस्पर सद्भावना को बढ़ाना.

- राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने स्वयं इस जरूरत को हाल के समय में बार-बार रेखांकित किया है. गहरी चिंता का विषय है कि जहां एक विभिन्न समुदायों की आपसी एकता और सद्भावना की जरूरत बढ़ रही है, वहां ऐसे नाजुक समय में ही विभिन्न स्वार्थी व संकीर्ण संगठनों व व्यक्तियों ने एकता में दरारें उत्पन्न करने के अपने कुप्रयास तेज कर दिए हैं.

- कभी कोई बहुत भड़काने वाला बयान दे दिया जाता है तो कभी किसी पर हमला कर दिया जाता है. कभी किसी धर्मग्रंथ को क्षतिग्रस्त किया जाता है तो कभी धर्मस्थान को. इस तरह, कभी पंजाब में तो कभी महाराष्ट्र में, कभी उत्तर प्रदेश तो कभी हरियाणा में, तरह-तरह से देश की एकता को क्षतिग्रस्त करने वाले कांड सांप्रदायिक व कट्टर तत्वों द्वारा बार-बार किए जा रहे हैं.

- इसके बावजूद यह सच्चाई आज तक अपनी जगह पर कायम है कि जनसाधारण अमन-शांति चाहते हैं. वे चाहते हैं कि उन्हें अपना जीवन बेहतर करने व प्रगति के पर्याप्त अवसर मिलें. वे यह भी समझते हैं कि सांप्रदायिक हिंसा व तनाव भड़कने से देश व समाज की प्रगति में बाधा पड़ती है.

- ऐसी समझ व्यापक स्तर पर होने के बावजूद संकीर्ण व सांप्रदायिक सोच के संगठन बड़ी चालाकी से तनाव व तरह-तरह के संदेह उत्पन्न कराते हैं. वे ऐसा प्रचार-प्रसार बहुत चालाकी से करते हैं, जिनसे समस्याओं के बुनियादी कारण छिप जाएं व समस्याओं के लिए किसी अन्य समुदाय को दोष देने की प्रवृत्ति बढ़ जाए. इसके लिए बड़े योजनाबद्ध ढंग से तैयारी की जाती है कि किस तरह का प्रचार-प्रसार करना है.

- इस प्रयास में तथ्यों, मिथकों, मनगढ़ंतत बातों, भ्रांतियों का मिला-जुला प्रयास केवल इस मकसद से किया जाता है कि कठिनाइयों के लिए दोष दूसरे धार्मिक-जातीय समुदायों को दिया जा सके. इस तरह के संगठनों के प्रयास निरंतरता से चलते रहते हैं जबकि अमन-शांति चाहने वाले संगठनों के प्रयास में इतनी निरंतरता नहीं देखी गई है.

- यह हमारे समाज की एक बड़ी कमजोरी है कि जो अनुचित प्रचार कर रहे हैं, वे निरंतरता से सक्रिय हैं. जबकि जो उचित व जरूरी प्रचार-प्रसार कर रहे हैं, वे विशेष अवसरों पर ही अधिक सक्रिय होते हैं. जरूरत इस बात की है कि एक ऐसा अमन-शांति का देशव्यापी आंदोलन या अभियान हो जो निरंतरता से सक्रिय रहे. पर ऐसा कोई व्यापक अभियान अभी तक सक्रिय हुआ नहीं है और सरकारों की ओर से भी इस कमी को दूर करने का कोई महत्त्वपूर्ण प्रयास हुआ नहीं है.

- संकीर्ण व सांप्रदायिक तत्व सक्रिय तो निरंतर रहते हैं पर वे बड़ी समस्या तभी बनते हैं, जब उन्हें अपने लिए पारिस्थितियां विशेष तौर पर अनुकूल मिलती हैं. जब उन्हें लगता है कि उनके विरुद्ध कोई विधिसम्मत कार्यवाही नहीं होगी और असरदार कदम नहीं उठाए जाएंगे, इस स्थिति में वे समाज पर अधिक हावी होने का प्रयास करते हैं. इस समय देश कुछ ऐसी ही स्थिति से गुजर रहा है.

- मौजूदा दौर में संकीर्ण, सांप्रदायिक तत्वों के अनेक बेहद हानिकारक परिणाम सामने आ रहे हैं. देश के अनेक भागों में विभिन्न समुदायों के लिए जीवन अधिक असुरक्षित हो गया है. अपनी सुरक्षा को लेकर लोग तनावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर हैं.

- सभी समुदायों को न केवल अमन-शांति व सुरक्षा का माहौल मिलना चाहिए, अपितु साथ में समता व न्याय भी मिलने चाहिए. संविधान ने धर्म के आधार पर किसी भी भेदभाव को मजबूती से अस्वीकृत कर दिया, सभी समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता व कानून के सामने समानता का पूरा आश्वासन दिया है.

- समता व न्याय के इन संवैधानिक सिद्धांतों के आधार पर ही अमन-शांति स्थापित होनी चाहिए. भारत के सभी धार्मिक समुदाय अपनी सुरक्षा व समान अधिकारों के लिए किसी के मोहताज नहीं हैं, किसी पर निर्भर नहीं हैं. अपितु यह समानता व सुरक्षा तो उनका संवैधानिक अधिकार है.

- पर सांप्रदायिक तत्व इन संवैधानिक प्रावधानों का सम्मान नहीं करते हैं. वे खुलेआम अपने से अलग अन्य धार्मिक समुदायों को अपने खान-पान, रस्मों-रिवाज आदि में बदलाव करने को कहते हैं या इसके लिए जबरदस्ती करते हैं, अनुचित व हिंसक तौर-तरीकों से कुछ समुदायों में जो असुरक्षा उत्पन्न की जा रही है तथा उनसे जो अन्याय हो रहा है, उसका दुष्परिणाम यह हो सकता है कि इन समुदायों के कुछ बुरी तरह आहत युवाओं को राष्ट्र-विरोधी तत्व अपनी ओर आकषिर्त करने का प्रयास करें. ऐसे कुप्रयास उस समय तक कभी सफल नहीं होंगे, जब तक सब समुदायों को सुरक्षा, न्याय व समता का आश्वासन हो.

- तीसरा दुष्परिणाम यह है कि इस तरह के बढ़ते सांप्रदायिक तनावों के कारण वैसा सामाजिक माहौल नहीं बन सकेगा, जो टिकाऊ तथा व्यापक आर्थिक विकास के लिए जरूरी है. तनावों के माहौल में आर्थिक निवेश में कमी आती है. देश के विभिन्न समुदायों से कुशल श्रम, हुनर, उद्यम व पूंजी के लिए अधिकतम सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता है.
- तरह-तरह के आर्थिक विकास के कार्यों में बाधा पंहुचती है. इस तरह सामाजिक दुख-दर्द व तनावों को कम करने के लिए, सामाजिक समरसता को बढ़ाने के लिए, राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए व आर्थिक विकास हेतु अनुकूल सामाजिक माहौल बनाने के लिए सभी दृष्टिकोणों से राष्ट्रीय एकता व सद्भावना को उच्च प्राथमिकता देना जरूरी है.

- केन्द्र व राज्य सरकारों को राष्ट्रीय एकता के लिए निरंतरता से कार्य करने चाहिए व साथ में राष्ट्रीय एकता तोड़ने वाले सभी व्यक्तियों व संस्थानों के विरुद्ध असरदार कार्यवाही करनी चाहिए.

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download