सड़क हादसों का कहर

#Editorial_Jansatta

Impotence of roads for Economy:

Ø  किसी भी राष्ट्र में सड़कें, आर्थिक और सामाजिक विकास की धुरी होती हैं। ये न सिर्फ भौतिक वस्तुओं की ढुलाई के लिए सहायक परिपथ तैयार करती हैं, बल्कि नागरिकों को सस्ता और घर-घर पहुंचने-पहुंचाने तक की सेवाएं उपलब्ध कर अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में अपनी भूमिका अदा करती हैं।

Ø  सामाजिक भेदभाव तथा व्यक्तियों के बीच पसरी मानसिक दूरी को कम करने में भी सड़कों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।

India & Contribution of Roads:

 विकास प्रक्रिया में उत्तरोत्तर वृद्धि के साथ-साथ सड़कों की गुणवत्ता और देश की आर्थिक व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है। देश में निर्मित नाना प्रकार की सड़कों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए नए द्वार खोले हैं।

Some concern:

विकास का केंद्र बनीं सड़कें, जब नागरिकों के खून से लथपथ होने लगें तब सवालों के साथ चिंताएं भी वाजिब हो जाती हैं। आलम यह है कि भारत में हर घंटे होने वाले सत्तावन सड़क हादसों में औसतन सत्रह लोग काल के गाल में समा रहे हैं। दुनिया के सबसे युवा राष्ट्र के लिए यह स्थिति तब अधिक अफसोसनाक हो जाती है, जब कुल सड़क दुर्घटनाओं में हताहत होने वाले लोगों में करीब पचपन फीसद लोग पंद्रह से चौंतीस आयु वर्ग के यानी किशोर और युवा होते हैं।

Ø  भारत सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि 2015 में देश में कुल 5.01 लाख सड़क दुर्घटनाएं हुर्इं, जिनमें 1.46 लाख लोगों की मौत हो गई।

Ø  भारत में जितने लोग आपदाओं और संघर्षों में नहीं मरते, उससे कहीं अधिक लोग सड़क हादसों में प्रतिवर्ष अपनी जान गंवा देते हैं। दुखद यह है कि देश भर में प्रतिदिन होने वाली 1,374 सड़क दुर्घटनाओं में रोजाना चार सौ लोगों की मौत हो जाती हैं।

Ø   चिंता की बात यह भी है कि मरनेवालों में अधिकतर कामकाजी वर्ग के लोग ही होते हैं। विभिन्न नौकरियों-पेशों से जुड़े लोगों के असामयिक निधन से देश की अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का लगता है।

Economic loss due to accidents:

 सरकार की मानें तो सड़क दुर्घटनाओं से हर साल साठ हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। देश के सकल घरेलू उत्पाद के तीन फीसद हिस्से को नुकसान पहुंचाने के अलावा, सड़क हादसों में विभिन्न आयु वर्ग के मानव संसाधन का असमय नाश भी हो रहा है। यह राष्ट्र के लिए चिंता और चिंतन का विषय है।

Some steps in this direction:

v  देश में सड़क हादसे रोकने के लिए सरकारें लंबे समय से प्रयास करती रही हैं। लेकिन कथित आधुनिक और भागदौड़ भरी जिंदगी के आगे यातायात नियमों के प्रति लापरवाही और गंतव्य स्थल तक पहुंचने की बेचैनी कभी-कभी जिंदगी और मौत के बीच ला कर खड़ा कर देती हैं।

v  साल 2014 की तुलना में 2015 में सड़क दुर्घटनाओं में हुई 2.5 फीसद की बढ़ोतरी यह बताने के लिए काफी है कि सड़क सुरक्षा के प्रति हम कितने बेपरवाह हो गए हैं।

v  हर दिन सड़क हादसे होते हैं, पर इन्हें रोकने का कोई कारगर प्रयास नहीं हो रहा है। यातायात नियमों की अनदेखी और जागरूकता के अभाव के कारण सड़क दुर्घटनाओं का आम होना देश की एक बड़ी सामाजिक समस्या बन गई है।

Some causes for road accidents:

दरअसल, देश में सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि होने के पीछे कई कारण रहे हैं। मसलन, चालक की गलती सड़क दुर्घटनाओं के अहम कारणों एक हैं। 2015 में 77.1 फीसद सड़क दुर्घटनाएं केवल चालक की गलती से हुई थीं। चालक द्वारा की गई गलती में सबसे पहले सीमा से अधिक तेज गति से गाड़ी चलाना है। इस तरह करीबन 62.2 फीसद दुर्घटनाएं तेज गाड़ी चलाने की वजह से घटित हुर्इं। इसके अलावा शराब पीकर तथा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन कर गाड़ी चलाने की वजह से भी आए दिन सड़क दुर्घटनाएं होती रहती हैं।

Why action plan failed:

 

Ø  सड़क दुर्घटनाओं की व्यापकता का एक बड़ा कारण चालकों के पास प्रशिक्षण का अभाव भी है। आमतौर पर देश में अठारह साल की आयु के बाद लोगों को ड्राइविंग लाइसेंस दिए जाते हैं, लेकिन इसकी जांच ही नहीं हो पाती कि लाइसेंस-धारक प्रशिक्षित है भी या नहीं?

Ø   भारी भीड़ वाली जगहों पर स्थिति न संभलती देख नौसिखिए चालक अक्सर अपना संतुलन खो बैठते हैं, जिसके कारण एक साथ कई दुर्घटनाएं हो जाती हैं।

Ø   2015 में हुए सड़क हादसों में 3.96 लाख मामले ऐसे थे, जिनमें चालकों के पास ड्राइविंग लाइसेंस था, जबकि करीब साठ हजार दुर्घटनाएं ऐसे लोगों ने कीं, जिनके पास सिर्फ लर्निंग लाइसेंस थे। नौ फीसद यानी 45,191 मामले ऐसे सामने आए, जिनमें चालकों के पास ड्राइविंग लाइसेंस था ही नहीं।

Ø  सीमा से अधिक वजन लादने वाले वाहन भी दुर्घटनाओं को खुला निमंत्रण देते हैं। देश के कस्बाई और कुछ हद तक शहरी क्षेत्रों में जहां यातायात नियमों का जोर नहीं है, वहां सिर्फ गाड़ियों में वस्तुओं को ही नहीं, बल्कि इंसानों और जानवरों को ठूंस-ठूंस कर ले जाया जाता है, जिसके कारण आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। 2015 में सड़क दुर्घटनाओं का कुल 15.4 फीसद यानी कुल 77,116 दुर्घटनाएं अतिभारित (ओवरलोडेड) वाहनों के कारण हुर्इं। ऐसी दुर्घटनाओं में 25,199 लोगों को जान गंवानी पड़ी। देश में सड़कों की गुणवत्ता और डिजाइन में कई खामियां हैं। दूसरी तरफ, नागरिकों द्वारा यातायात नियमों की अनदेखी किसी से छिपी नहीं है। दोपहिया वाहन चालक हेलमेट और चौपहिया वाहनों में सवार लोग सीट बेल्ट लगाने से बचते हैं। तेज गति से भी चालकों का संतुलन बिगड़ता है। ये कारण भी सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेवार हैं।

Medical facility important cause of death:

 

सड़क हादसों का एक भयावह पक्ष घायलों को समय रहते चिकित्सीय सुविधाएं न मिल पाना है। अक्सर देखा जाता है कि सड़क दुर्घटना के बाद भीड़ एकत्रित तो हो जाती है,लेकिन वह सिर्फ मूकदर्शक बनी रहती है। विधि आयोग की रिपोर्ट बताती है कि अगर सड़क दुर्घटना के एक घंटे के अंदर घायल को अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो पचास फीसद घायलों की जान बचाई जा सकती है। मालूम हो कि ऐसे अस्सी फीसद मामलों में घायलों को आपात चिकित्सीय सेवा नहीं मिल पाती है। संवेदनहीन भीड़ तमाशबीन होकर पुलिस के आने का इंतजार करती है। लोग इसलिए भी डरते हैं कि अगर वे घायल को अस्पताल लेकर जाएंगे तो पुलिस उन्हें अपराधी न समझ ले। लेकिन बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने केंद्र सरकार के उन दिशा-निर्देशों पर मुहर लगा दी, जिसके बाद घायलों को बचाने वाले को अभयदान दिया जाएगा। घायलों को अस्पताल पहुंचाने वाले लोगों से पूछताछ नहीं की जाएगी। अगर लोगों में मानवीय संवेदनाओं का विकास हो तो घायलों को बचाने में कामयाबी मिल सकती है।

International comparison:

 

स्वीडन ऐसा देश है, जहां साल में एक भी सड़क हादसा नहीं होता, जबकि हमारे यहां पिछले दस साल के दौरान सड़क हादसों में होने वाली मौतों में बयालीस फीसद की वृद्धि हुई है। देश में सड़क दुर्घटनाएं अगर इसी गति से जारी रहीं तो इसका भारी खमियाजा देश को भुगतना पड़ सकता है। 1970 से पहले नीदरलैंड में सड़क दुर्घटना में हजारों लोग मारे जाते थे, लेकिन जागरूकता के लिए चलाए गए राष्ट्रीय अभियान की बदौलत वहां दुर्घटनाओं में काफी कमी आ चुकी है। भारत में सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए कई स्तरों पर सुधार किए जा रहे हैं। अगर सड़क पर चलने वाले लोग ईमानदारी से यातायात नियमों का पालन करें तो दुर्घटनाओं को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। जब तक नागरिकों को जागरूक नहीं किया जाता, तब तक सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती। सड़क सुरक्षा हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। हम यह सोचकर गलती क्यों करते हैं कि कोई हमें टोकने वाला नहीं है? यातायात पुलिस के सिपाही अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना नागरिकों की सुरक्षा के लिए घने प्रदूषण के बीच दिन-रात चौराहे पर खड़े रहते हैं, उनके बारे में भी हमें सोचना चाहिए। स्वानुशासन के तहत नियमों का पालन करके जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाना ही देशहित में है।

 

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