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सुप्रीम कोर्ट ने मवेशियों की खरीद-फरोख्त पर केंद्र द्वारा जारी अधिसूचना में विसंगतियों को स्वीकारते हुए पूरे देश में इस पर रोक लगा दी है। दरअसल केंद्र सरकार के फैसले के बाद पूरे देश में उपजे विरोध और इस कारोबार से जुड़े लोगों की दिक्कतों को देखते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगाई थी।
- शीर्ष अदालत ने इस रोक को बरकरार रखते हुए इसे पूरे देश में लागू रखने के आदेश दिये। प्र
- धान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने केंद्र सरकार के इस वक्तव्य का संज्ञान लिया कि इस मामले में तमाम पक्षों की आपत्तियों और सुझावों के मद्देनजर अधिसूचना पर पुनर्विचार किया जा रहा है।
- साथ ही कि सरकार अब एक संशोधित अधिसूचना लायेगी।
- संज्ञान लेते हुए शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया। य
- द्यपि केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल का कहना था कि वैसे भी अधिसूचना तब तक प्रभावी नहीं होती जब तक इसके अंतर्गत राज्य सरकारें मवेशियों की खरीद-फरोख्त के लिये स्थानीय बाजार चिन्हित नहीं करतीं।
सरकार का इस मामले में कहना है कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय समेत सभी प्राधिकरणों के सुझावों व आपत्तियों पर विचार हो रहा है। दरअसल, इस अधिसूचना के बाद केरल, पश्चिम बंगाल, पुड्डुचेरी सरकारों समेत कई राज्यों ने इसकी विसंगतियों को लेकर विरोध जताया था। दरअसल, पशु क्रूरता रोकथाम (मवेशी बाजार विनियमन) कानून 2017 को असंवैधानिक बताया जा रहा था क्योंकि इसके कारोबार से जुड़े लोगों के रोजगार पर संकट पैदा हो रहा था। अधिसूचना में इस बात का उल्लेख था कि बाजार समिति के सदस्य सचिव को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी शख्स बाजार में अवयस्क पशु को बिक्री के लिये न लाये। उसी व्यक्ति को बाजार में पशु लाने की इजाजत होगी जो पशु के मालिक द्वारा हस्ताक्षरित पत्र लायेगा। जिसमें मालिक के सारे विवरण के साथ पहचान पत्र की प्रति भी अनिवार्य की गई थी। साथ ही मवेशी सिर्फ कृषि कार्यों के लिये इस्तेमाल होगा और पशु को छह माह तक बेचा नहीं जा सकेगा। इसमें पशु क्रूरता से जुड़ी विभिन्न परंपराओं पर भी प्रतिबंध लगाया गया था। फिलहाल केंद्र सरकार की ओर से जारी ये नियम लागू नहीं होंगे। उम्मीद है कि नई अधिसूचना आने में तीन माह का समय लग सकता है।