सरोगेसी से जुड़ी कानूनी व नैतिक उलझनें दूर करने के लिए स्पष्ट कानून बनाने की आवश्यकता

- सर्वोच्च न्यायलय को दिये गये अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि भारत में विदेशी नागरिकों को किराये की कोख लेने की इजाजत नहीं दी जायेगी और सरोगेसी की सुविधा केवल भारतीय दंपतियों को मिल सकेगी.

- अपने हलफनामे में सरकार ने यह भी साफ किया है कि अब वह सरोगेसी के व्यावसायीकरण का समर्थन नहीं करेगी. सरकार ने न्यायालय को यह भी कहा है कि भारत में व्यावसायिक सरोगेसी के लिए मानव भ्रूण के आयात को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जायेगा.

- गौरतलब है कि हाल ही में विदेशी व्यापार महानिदेशालय ने कृत्रिम गर्भाधान के लिए भारत में मानव भ्रूण आयात की अनुमति देने से संबंधित 2013 की अपनी अधिसूचना को वापस ले लिया था.

- अपने हलफनामे में सरकार ने कहा है कि सरोगेसी की सेवाओं के व्यावसायीकरण को रोकने के लिए व मामले में दोषी पाये जाने पर आरोपितों को दंडित करने के लिए समुचित प्रावधान किये जायेंगे.

- मालूम हो कि किराये की कोख की सेवाओं के व्यावसायीकरण को रोकने के लिए एक वकील जयश्री वाड ने न्यायालय में जनिहत याचिका दायर किया था. याचिका में कहा गया है कि भारत बच्चा पैदा करने वाली फैक्ट्री बन गया गया है.

- बड़ी संख्या में विदेशी दंपति किराये की कोख की खोज में भारत आ रहे हैं. पूर्व में तेलंगाना महिला आयोग ने भी सरोगेसी के चलन को रोकने के लिए मामले में कानून बनाने की मांग की थी.

- इस संदर्भ में किराये की कोख देने वाली महिलाओं का शोषण किया जा रहा है और मामले में कानून में अस्पष्टता होने के कारण कानूनी मुश्किलें खड़ी हो रही हैं. इसलिए, गर्भधारण से संबंधित क्लीनिक और किराये की कोख के उद्योग को व्यवस्थित करने के लिए देश में स्पष्ट एवं पारदर्शी कानून होना चाहिए.

- विगत वर्षो में सरोगेट मदर की संख्या भारत में अभूतपूर्व तरीके से बढ़ी है, जबकि यहां का कानून इन विट्रो र्फटलिाइजेशन’ (आईवीएफ) पद्धत्ति से बच्चे पैदा करने की इजाजत नहीं देता है.
- वर्तमान कानून अंग्रेजों के जमाने का है. बदलते परिवेश में अनेक क़ानूनों में बदलाव की जरूरत है. किराये की कोख से पैदा हुए बच्चे से जुड़ी हुई विसंगतियां इतनी अधिक हैं कि इस मुद्दे पर नये कानून बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है.

- समस्या इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि भारत में किराये की कोख का लाभ भारतीयों से कहीं अधिक विदेशी उठा रहे हैं. दरअसल, भारत में आईवीएफ की पद्धत्ति से औलाद प्राप्त करना अमेरिका और यूरोप से सस्ता एवं सुरक्षित है.

- यह कानून द्वारा ही तय किया जा सकेगा कि एक महिला कितनी बार सरोगेट मदर बन सकती है. इस संबंध में महिला की न्यूनतम आयु, क्षतिपूर्ति राशि, सुविधा और दंड के बारे में कानूनी जानकारी हासिल की जा सकेगी, जिसका सीधा लाभ सरोगेट मदर को मिल सकेगा.

- पारदर्शी कानून को अमलीजामा पहनाने से किराये की कोख का इस्तेमाल कर मुकरने या गर्भवती महिला के स्वास्थ की अनदेखी करने वालों पर शिंकजा भी कसा जा सकेगा.

- मौजूदा समय में स्पष्ट कानून के अभाव में विदेशी दंपति आईवीएफ पद्धत्ति से संतान सुख तो प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन कई बार उन्हें भी अपने देश एवं भारतीय कानून में व्याप्त पेचीदगी की वजह से बच्चे को अपने देश ले जाने में कानूनी अड़चनें आती हैं. सबसे बड़ी परेशानी बच्चे की नागरिकता को लेकर होती है. वस्तुत: आईवीएफ पद्धत्ति से पैदा बच्चे की नागरिकता को रेखांकित या परिभाषित करना पेचीदा मामला है.

- आईवीएफ पद्धत्ति से पैदा बच्चों को लेकर विदेशों में कानूनी अड़चन होने के साथ-साथ भारत में भी कानूनी व नैतिक उलझनें हैं. कई सालों से इस संबंध में स्पष्ट कानून बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है, ताकि इससे जुड़े विवादों को समाप्त किया जा सके.

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