=>संरचनात्मक खामी~
स्वास्थ्य क्षेत्र अपर्याप्त वित्त का शिकार है। साथ ही सामाजिक क्षेत्र में रोग नियंत्रण और अन्य कार्यक्रमों के बीच एकीकरण नहीं है। दवाओं और मेडिकल प्रैक्टिशनर की कमजोर नियामक प्रणाली है। सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है।
=>शिशु मृत्युदर का लक्ष्य~
पूर्व में हर साल दो प्वाइंट्स की कमी को ध्यान में रखते हुए शिशु मृत्युदर 2015 में 38 रह सकती है। 2017 में 34। लिहाजा 2015 में 27 के एमडीजी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस कमी की दर को तेज करना होगा।
=>मातृ मृत्यु दर: ~
5.5 फीसद प्रति वर्ष की वर्तमान कमी होने की दर के लिहाज से 2015 तक हमारी मातृ मृत्यु दर 143 रहने का अनुमान है। 2017 में यह 127 रह सकती है। 2015 तक 109 रहने के एमडीजी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कमी की इस दर को और तेज करना होगा। 2017 तक देश इस स्वास्थ्य संकेतक में 100 का लक्ष्य हासिल कर सकता है।
=>कुल प्रजनन दर~
2017 तक कुल प्रजनन दर 2.1 के लक्ष्य की ओर हम अग्रसर हैं।
=>बच्चों का सामान्य से कम वजन~
बच्चों में सामान्य से कम वजन उनकी मृत्युदर और बीमार होने की दर को बढ़ा देता है। तीन साल के कम आयु के कम वजन वाले बच्चों की दर वर्तमान हिसाब से 2015 तक 29 फीसद होगी। 2017 तक यह 27 फीसद होगी। इस विषय में एमडीजी लक्ष्य 2015 में 26 फीसद है। थोड़े अधिक प्रयासों से इस संकेतक को 2017 में 23 फीसद तक लाया जा सकता है।
=>महिलाओं में एनीमिया~
मातृ मृत्युदर और जन्म के समय बच्चों का कम वजन होने जैसे मामलों में एनीमिया का सीधा संबंध होता है। एनीमिया की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक जरूरी है। इसे वर्तमान दर के आधे यानी 28 फीसद तक 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक लाया जा सकता है।
=>संचारी और गैर संचारी रोग~
12वीं पंचवर्षीय योजना में टीबी के मामलों को सालाना आधार पर कम किए जाने और मौतों की संख्या आधी किए जाने का लक्ष्य है।
~ कुष्ठ रोग की मौजूदगी एक लाख आबादी पर एक से कम और सभी जिलों में ऐसे मामले शून्य पर लाने का लक्ष्य है।
~ मलेरिया के मामलों का लक्ष्य प्रति हजार एक से कम रखने का लक्ष्य और फाइलेरिएसिस के मामलों को सभी जिलों में एक फीसद से कम पर लाने का लक्ष्य है।
- असीमित मानव संसाधन को व्याधियों से दूर रखने के लिए हमारे पास संसाधन बहुत सीमित हैं। बुनियादी सुविधाएं ही पर्याप्त नहीं हैं। ऐसा नहीं हैं कि इन सुविधाओं की दिशा में कोई कदम ही नहीं बढ़ा हो, लेकिन कच्छप गति के यह प्रयास वांछित जीत दिलाने में नाकाफी साबित हो रहे हैं।
=>अस्पताल बेड~
इस मामले में हम वैश्विक औसत से काफी पीछे हैं। 2002-10 के बीच जितनी भी नई बेड क्षमता में वृद्धि हुई उसका 70 फीसद निजी क्षेत्र ने किया।
भारत -0.67 (हजार आबादी पर)
वैश्विक औसत-2.6
डब्ल्यूएचओ मानक- 3.5
स्वास्थ्य पर कुल खर्च
(जीडीपी का प्रतिशत)
4.0 -भारत
5.7-निम्न आय वाले देशों का
औसत
=>स्वास्थ्य मानकों में पीछे: कई स्वास्थ्य संकेतकों खासकर शिशु मृत्युदर और जीवन प्रत्याशा में हम निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों से काफी पीछे हैं।
~ अपर्याप्त स्वास्थ्यकर्मी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हजार लोगों पर एलोपैथिक डॉक्टर और नर्सों की संख्या करीब 2.5 होनी चाहिए लेकिन देश में यह अनुपात 2.2 ही है। इस कमी के बाद भी जो स्वास्थ्यकर्मी हैं उनका पूर्णत: इस्तेमाल नहीं हो पाता है। बड़ी संख्या में नर्सें निष्क्रिय रहती हैं।
~ रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर, आयुष डॉक्टर और ग्रामीण इलाकों में मौजूद मेडिकल प्रैक्टिशनर इस क्षेत्र में सक्रियता नहीं दिखाते हैं। लिहाजा सक्रिय श्रमशक्ति का अनुपात गिरकर प्रति हजार लोगों पर 1.9 का रह जाता है।