योग और अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के बारे में सब कुछ

- योग पांच हजार साल पहले भारत में शुरू हुई एक ऐसी विधा है जिससे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को पुनर्जाग्रत किया जा सकता है। योग के सतत अभ्यास से तन और मन दोनों को रूपांतरित किया जा सकता है।

=>घोषणा:-
11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया। यह घोषणा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में 27 सितंबर, 2014 को दिए गए भाषण के दौरान 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने की मांग के बाद हुई। अपने उस वक्तव्य में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है। यह अभ्यास नहीं है बल्कि स्वयं, विश्व और प्रकृति के साथ एकता के भाव की खोज है।
- 21 जून को ग्रीष्म संक्रांति है, जिसे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में अपनाने का सुझाव देते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह दिन उत्तरी गोलाद्र्ध में वर्ष का सबसे बड़ा दिन होता है।

=>दिन का पौराणिक महत्व
योगी व संन्यासी, सदगुरु योग परंपरा में इस दिन के महत्व के बारे में बताते हैं कि गर्मियों की संक्रांति के इस दिन आदियोगी दक्षिण में गए थे और सप्तऋषियों को देखा था, जो उनके पहले शिष्य थे जिन्होंने योग विज्ञान को संसार के कई भागों तक पहुंचाया।

=>अंतरराष्ट्रीय समर्थन
संयुक्त राष्ट्र में जब योग दिवस को लेकर प्रस्ताव पेश किया गया तो इसके समर्थन करने वाले कुल 175 देशों में से 46 मुस्लिम देश थे। संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस प्रकार के प्रस्ताव के लिए सह प्रायोजक देशों की यह आज तक की सबसे बड़ी संख्या है।

=>योग का संक्षिप्त इतिहास:-
- योग के विज्ञान का जन्म हजारों साल पहले प्रथम धर्म या विश्वास के पैदा होने से भी बहुत पहले हुआ। योग शिक्षा के अनुसार शिव को प्रथम योगी या आदियोगी और प्रथम गुरु या आदिगुरु के रूप में देखा जाता है। कई हजार साल पहले हिमालय में कांतिसरोवर झील के किनारे पर अदियोगी ने अपने गहरे ज्ञान को पौराणिक सात ऋषियों को प्रदान किया। 
- ये ऋषि इस शक्तिशाली योग विज्ञान को एशिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका सहित अनेकों भागों में ले गए। योग को व्यापक स्तर पर सिंधु घाटी सभ्यता (2700 ईसा पूर्व) के एक अमिट सांस्कृतिक परिणाम के रूप में समझा जाता है। इसने मानवता के भौतिक और आध्यात्मिक विकास में अहम भूमिका अदा की।
- योग की लोक परंपराओं, वैदिक और उपनिषद विरासत, बौद्ध और जैन परंपराओं, दर्शनों, महाकाव्य महाभारत, भगवतगीता और रामायण, शिव भक्ति परंपराओं, वैष्णव एवं तांत्रिक परंपराओं में भी विद्यमान है। यद्यपि योग का अभ्यास पूर्व-वैदिक काल में किया जाता था, लेकिन महान ऋषि पतंजलि ने पहले से विद्यमान योग अभ्यासों, इसके अर्थ और इससे संबंधित ज्ञान को पतंजलि योग सूत्र के माध्यम से व्यवस्थित किया।

=>प्रचार-प्रसार
पतंजलि के बाद बहुत से ऋषियों और योग गुरुओं ने अच्छी तरह से लिखे गए अभ्यासों और साहित्य के माध्यम से इस विषय को संरक्षित करने और इसका विकास करने में महान योगदान दिया। प्राचीन समय से लेकर आज तक प्रमुख योग गुरुओं की शिक्षाओं के माध्यम से योग संसार भर में फैला है। दुनिया भर में लोग योग से रोजाना लाभ पा रहे हैं। संसार में लाखों लोग योग अभ्यास से लाभ प्राप्त कर चुके हैं और योग प्रतिदिन अधिक से अधिक विकसित होता जा रहा है।

=>आधारभूत तत्व
योग शब्द संस्कृत भाषा के युजशब्द से बना है जिसका अर्थ है जुड़ना या एक होना। एक होने का अर्थ है व्यक्ति के आत्म का ब्रह्मांड की चेतना या सार्वभौमिक आत्मा के साथ जुड़ना। ऐसी भी मान्यता रही है कि योग सतयुगमें विकसित हुआ था।

=>आठ अंग:-
पतंजलि योग को योग चित्त वृत्ति निरोधके रूप में परिभाषित करते हैं। योग मानसिक क्रियाओं को रोकता है। इसलिए योग को मन की एक पूर्ण शांत स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महर्षि पतंजलि ने आठ अंगों या अवस्थाओं को सुझाया है। आज अष्टांग योग को एक विशेष अवस्थाओं की एक शृंखला माना जाता है।
* यम (नैतिक संयम)
* नियम (आध्यात्मिक अभ्यास)
* आसन (रीढ़ को सीधी करके बैठने की अवस्था)
* प्राणायाम (सांस का नियंत्रण)
* प्रत्याहार (इंद्रियों और कर्मेंद्रियों से संबंध विच्छेद)
* धारणा (गहरी एकाग्रता की स्थिति)
* ध्यान (चिंतन के विषय की तरफ ध्यान को निर्देशित करना)
* समाधि (परम चेतना या दिव्य मन में पूरी तरह से लीन होना)

=>चार श्रेणियां:
योग व्यक्ति के शरीर, मन, भावना और ऊर्जा के स्तर पर कार्य करता है। इसने चार व्यापक श्रेणियों को जन्म दिया है।
कर्म योग: जहां हम शरीर का उपयोग करते हैं
ज्ञान योग: जहां हम मन का उपयोग करते हैं
भक्ति योग: जहां हम भावना (संवेग) का उपयोग करते हैं
क्रिया योग: जहां हम ऊर्जा का प्रयोग करते हैं

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