- केंद्र सरकार के सीएसआइआर) प्रयोगशालाओं में आयुर्वेद के प्राचीन ज्ञान के आधार पर तैयार की गई मधुमेह (डायबिटीज) की देसी दवा ने वैज्ञानिक परीक्षा भी पास कर ली है।
- राष्ट्रीय क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री पर "बीजीआर-34" नाम की इस दवा के सफल परीक्षण के आंकड़े प्रकाशित किए गए हैं। इस दवा को वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की प्रयोगशालाओं में विकसित किया गया है।
- क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री पर प्रकाशित नतीजों के मुताबिक यह परीक्षण रैंडमाइज्ड डबल ब्लाइंड समांतर समूह पर किया गया था। प्राथमिक नतीजों के मुताबिक टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों के ग्लाइसेमिक पैमानों के लिहाज से इस दवा का बहुत उत्साहजनक प्रभाव देखा गया है।
- हाइपर ग्लाइसेमिया के बेहतर नियंत्रण की वजह से मरीज के स्वास्थ्य में काफी सुधार आता है। इसके आधार पर कहा गया है कि ऐसे मरीजों में ग्लूकोज के नियंत्रण के लिए इसे मोनो थेरेपी या एडजेंक्टिव थेरेपी के तौर पर जम कर इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
- यानी पहले से चल रही एलोपैथिक दवाओं के साथ ही बेहतर नतीजों के लिए इनका भी उपयोग किया जाना चाहिए। रैंडमाइज्ड डबल ब्लाइंड समांतर समूह क्लीनिकल ट्रायल का सबसे प्रभावी तरीका है। इसमें आधे मरीजों को वास्तविक दवा दी गई, जबकि दूसरे समूह को ठीक वैसी ही दिखने वाली त्रिफला की गोली दी गई।
- चार महीने की अवधि में दोनों समूहों के अध्ययन के आधार पर दवा के प्रभाव को आंका गया। इस अध्ययन के दौरान असली दवा पाने वाले और प्लेसीबो (दिखावटी दवा) पाने वाले की पहचान एक प्रक्रिया के तहत गोपनीय रखी जाती है।
- मरीज, उसका इलाज करने वाले या आंकड़े रखने वालों में से किसी को पता नहीं होता कि वास्तविक दवा किसे मिल रही है।
- ज्ञातव्य रहे "आयुर्वेदिक दवाओं के लिए क्लीनिकल ट्रायल की अनिवार्यता नहीं है। लेकिन इससे दवा की विश्वसनीयता बढ़ती है।" दिल्ली के एक निजी अस्पताल में 64 मरीजों पर यह परीक्षण किया गया है।
- इस दवा की बिक्री का अधिकार एमिल फार्मास्यूटिकल कंपनी को दिया गया है। क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) चलाती है और देश में एलोपैथिक दवाओं के सभी क्लीनिकल ट्रायल की इस पर रजिस्ट्री होनी जरूरी होती है। अब तक लगभग दो हजार दवाओं के ट्रायल को यहां रजिस्टर किया गया है, लेकिन ये एलोपैथिक दवाएं हैं।