=>ब्रेन इमेजिंग तकनीक
- सीटी स्कैन, एमआरआई, पीईटी, एसपीईसीटी आदि ब्रेन इमेजिंग तकनीक हैं, जिनके जरिए सेरेब्रल ब्लड फ्लो, मेटाबॉलिज्म का पता लगाया जाता है, जबकि क्यूईईजी के जरिए ब्रेन की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी मापी जाती है। इलेक्ट्रिकल कनेक्टिविटी और फ्लो में गड़बड़ी समस्या की शुरुआत का संकेत देती है।
अमेरिका के दो बड़े वैज्ञानिक संस्थान ब्रेन मैपिंग की आधुनिक तकनीक विकसित करने में लगे हुए हैं। इसमें से मोंटीरियल के वैज्ञानिकों ने 3डी इंपेक्ट के जरिए सबसे सफलतम तरीका ढूँढ निकाला है।
- यह तकनीक अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसे मरीजों के लिए बेहद मददगार साबित होगी। पार्किंसंस वही बीमारी है जिसके चलते दुनिया के सबसे पसंदीदा खिलाड़ी बॉक्सर मोहम्मद अली की इसी महीने मौत हो गई। नेशनल पार्किंसंस फाउंडेशन के मुताबिक दुनिया में करीब 50 लाख मरीज इस बीमारी की गिरफ्त में हैं, वहीं अकेले अमेरिका में ही 10 लाख से ज्यादा लोग पार्किंसंस से ग्रस्त हैं। वहीं अलजामइर के कदम दुनिया के साथ-साथ भारत में भी तेजी से बढ़े हैं। विश्व में जहां 4.7 करोड़ लोग अल्जाइमर से ग्रस्त हैं, वहीं भारत में 50 लाख से भी ज्यादा लोग मानसिक बीमारी का सामना कर रहे हैं, जिसमें से 80 फीसदी लोगों को अल्जाइमर है। डॉक्टरों का कहना है कि 2030 तक यह संख्या दोगुना हो सकती है।
=>ब्रेन मैपिंग क्या है?
- यह एक ऐसा टेस्ट है, जिसकी मदद से व्यक्ति के दिमाग की मैपिंग के जरिए उसके व्यवहार का पता लगाया जाता है। आपराधिक मामलों में यह टेस्ट क्रिमिनल से सच उगलवाने के लिए किया जाता है। इस दौरान व्यक्ति को क्राइम सीन से जुड़ी बातें पूछी जाती हैं और उसके दिमाग में स्टोर बातों से उसका मिलान किया जाता है।
=>कैसे होती है?
- व्यक्ति के सिर में सेंसर फिट करके उसे कम्प्यूटर से जोड़कर मॉनीटर के सामने बैठाते हैं। हर सेंसर में एक कंडक्टिव जेल लगाते हैं। 10 से 30 मिनट के भीतर रिकॉर्डिंग शुरू होती है। व्यक्ति को तस्वीरें दिखाकर, आवाज सुनाकर उसके ब्रेन की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी में आए परिवर्तन को नोट करते हैं।
=>मैप रीडिंग
- क्वॉन्टिटेटिव इलेक्ट्रो इनसेफ्लोग्राम (क्यूईईजी) रिजल्ट में जेड स्कोर होते हैं। यदि मैपिंग में मार्किंग -3 से +3 तक है तो इसे स्टैंडर्ड डेविएशंस (एसडी) कहते हैं। यह मेमोरी कम होने का संकेत है। यदि रीडिंग -2 से +2 का मतलब है नॉर्म से ज्यादा है यानी एग्रेसिव बिहेवियर। यदि 0 मिला है तो इसका अर्थ है कि एसडी नॉर्मल है।
=>कैसी है नई तकनीक
- ब्रेन मैपिंग की 3डी तकनीक के बारे में कहा जा रहा है कि इसके जरिए 10 लाख से ज्यादा दिमागी हलचल को कैद किया जा सकेगा। इस तकनीक को इजाद करने वाली मोंटीरियल साइंटिस्ट टीम के चीफ प्रोफेसर एलियन सी ईवान के मुताबिक अल्जाइमर, पार्किंसन, मिर्गी जैसी कई बीमारियों के इलाज तलाशने में यह प्रोजेक्ट काफी मददगार साबित हो सकता है।
- वहीं इससे दिमाग का सही इस्तेमाल कैसे किया जाए, यह भी पता चलेगा। क्रहाऊ टू क्रिएट अ माइंड्ज के ऑथर और फ्यूचरिस्ट रे कुर्जवील का मानना है कि मानव मस्तिष्क के बारे में ऐसी ढेरों बाते हैं जिन्हें वैज्ञानिक और मनोचिकित्सक आज तक नहीं जान सके हैं। 3डी ब्रेन मैपिंग के जरिए इसे जानने का मौका मिलेगा। वह कहते हैं कि ब्रेन का मैकेनिज्म स्मार्ट कम्प्यूटर से भी जबरदस्त है।
=>दिमाग का विकास
- शुरुआत में दिमाग का आकार एक ट्यूब जैसा होता है। गर्भधारण के तीन हफ्ते बाद एम्ब्रायोनिक सेल्स, फ्यूज के साथ मिलकर एक न्यूरल ट्यूब बनाते हैं। ये टिश्यूज सेंट्रल नर्वस सिस्टम का निर्माण करते हैं। 26वें हफ्ते में दिमाग का वास्तविक आकार रूप में आता है। प्रथम तीन माह के दौरान न्यूरल ट्यूब की ग्रोथ होती है और सेल्स अलग-अलग टिश्यूज में बंटकर शरीर के अन्य हिस्सों का निर्माण करते हैं।