"भारत में शोध और अनुसन्धान: पिछड़ेपन का कारण और निराकरण के कुछ अहम् सुझाव"

☆ देश के 60 फीसदी मेडिकल संस्थानों से पिछले दस वर्षों में एक भी रिसर्च पेपर सामने नहीं आया है, जबकि इनका एक अहम काम रिसर्च करना ही है। जिन राज्यों में सबसे ज्यादा मेडिकल कॉलेज हैं, वहां भी बेहद कम संख्या में शोधपत्र प्रकाशित हुए हैं।

★ गंगाराम इंस्टिट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के डीन डॉ. समीरन नंदी ने अपने दो सहयोगियों के साथ मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) और नैशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन (एनबीई) द्वारा मान्यता प्राप्त 579 मेडिकल संस्थानों के 2005 से 2014 के बीच के रिसर्च आउटपुट का मूल्यांकन कर यह तथ्य पेश किया है।

☆ 'करेंट मेडिसिन रिसर्च एंड प्रैक्टिस' में प्रकाशित उनका यह अध्ययन बताता है कि केवल 25 (4.3 पर्सेंट) संस्थानों ने एक साल में 100 से ज्यादा शोधपत्र प्रकाशित किए।

★यह तो मेडिकल रिसर्च का हाल है, मगर दूसरे क्षेत्रों की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं है। आज आलम यह है कि देश के ज्यादातर छात्र मैनेजर और इंजीनियर बनने की बात करते हैं लेकिन कोई भी साइंटिस्ट या रिसर्चर बनने की बात नहीं कहता।

☆ भारत में करीब 400 विश्वविद्यालय और डीम्ड यूनिवर्सिटीज हैं, लेकिन यहां हर साल करीब पांच हजार छात्र ही डॉक्टरेट करते हैं, जबकि अमेरिका में प्रतिवर्ष 25 हजार और चीन में प्रतिवर्ष 35 हजार छात्र पीएचडी करते हैं। 
★ डॉक्टरेट के मामले में ही नहीं, शोध पत्रों तथा पेटेंट के मामले में भी हम अन्य देशों की तुलना में काफी पीछे हैं। अनुसंधान पत्रों के प्रकाशन में भारत का हिस्सा विश्व में मात्र 2.5 प्रतिशत है जबकि अमेरिका विश्व अनुसंधान पत्रों का 32 प्रतिशत प्रकाशित करता है।

=>"भारत में शोध और अनुसन्धान के पिछड़ेपन का कारण"

☆ देश में रिसर्च के अनुकूल माहौल और साधनों का अभाव है तो है ही, लेकिन इससे भी बड़ी समस्या यह है कि यहां के शोध संस्थानों में कुछ नया खोजने या करने की इच्छाशक्ति या अजेंडा ही नहीं है।

★ शोधार्थी एक समय के बाद अपने काम को नौकरी की तरह लेने लगते हैं। जो थोड़े-बहुत लोग वाकई शोध को लेकर सीरियस होते हैं, वे मजबूरी में विदेश चले जाते हैं। 
★ आवश्यक आधारभूत ढांचें का अभाव
★ विज्ञान संकय के प्रति रूचि में कमी।
★ रोजगार सुरक्षा का अभाव
★ रिसर्च स्कॉलरस का कॉपी- पेस्ट तक सीमित होना tongue emoticon

‪#‎सुझाव‬
★अमेरिका के नेशनल ब्यूरो ऑफ इकनॉमिक रिसर्च द्वारा पिछले साल कराए गए एक सर्वे में कहा गया है कि भारत के 40 फीसदी रिसर्चर रिसर्च के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया आदि का रुख करते हैं, जिनमें बेहद कम वापस लौटते हैं।

♂ इस ब्रेन ड्रेन को रोकने और ज्यादा से ज्यादा स्टूडेंट्स को रिसर्च की तरफ आकर्षित करने के लिए शोधकर्ताओं को आर्थिक निश्चिंतता देनी होगी।
♂ साथ ही आला दर्जे की रिसर्च लैब्स की स्थापना और अपने देश में विकसित होने वाली टेक्नोलॉजी के व्यावसायिक इस्तेमाल की व्यवस्था भी जरूरी है। 
♂ लेकिन इन सबसे जरूरी बात यह है कि मौजूदा संस्थानों के कामकाज का नियमित मूल्यांकन हो। 
♂ इसके लिए नॉलेज ऑडिटिंग को अनिवार्य बनाया जा सकता है, जिससे यह जाना जा सके कि शोध के नाम पर कहां क्या हो रहा है।
 

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