"देश को बड़ी कामयाबी: पहला मेड इन इंडिया स्पेस शटल लॉन्च (Swadeshi Space Shuttle)

- भारत ने आज अपना पहला स्पेस शटल लॉन्च कर दिया। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) की ये लॉन्चिंग ऐतिहासिक है क्योंकि यह रियूजेबल शटल पूरी तरह भारत में बना है।
- इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से सुबह 7 बजे लॉन्च किया गया।
 
- स्पेस शटल रियूजेबल लॉन्च व्हीकल-टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर (RLV-TD) से लॉन्च हुआ।
- ये व्हीकल स्पेस शटल को ऑर्बिट में छोड़कर एक एयरक्राफ्ट की तरह वापस आने लायक बनाया गया है। इसे दोबारा से यूज किया जा सकेगा।
स्पेस मिशन की कॉस्ट 10 गुना कम हो जाएगी
- इसरो के इंजीनियर्स का मानना है कि सैटेलाइट्स को ऑर्बिट में सैटल करने की लागत कम करने के लिए रियूजेबल रॉकेट काफी कारगर साबित हो सकता है।
- साइंटिस्ट्स के अनुसार रियूजेबल टेक्नोलॉजी के यूज से स्पेस में भेजे जाने वाले पेलोड की कीमत 2000 डॉलर/किलो (1.32 लाख/किलो) तक कम हो जाएगी।
- व्हीकल के एडवान्स्ड वर्जन को स्पेस के मैन्ड मिशन में यूज किया जा सकेगा।
एलीट क्लब में शामिल हुआ भारत
- अभी ऐसे रियूजेबल स्पेस शटल बनाने वालों के क्लब में अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान ही हैं। चीन ने कोशिश तक नहीं की है।
- रूस ने 1989 में ऐसा ही स्पेस शटल बनाया। इसने सिर्फ एक बार ही उड़ान भरी।
- अमेरिका ने पहला आरएलवी टीडी शटल 135 बार उड़ाया। 2011 में यह खराब हो गया।
 
=>फाइनल वर्जन बनाने में 10 से 15 साल लगेंगे
*एसयूवी जैसा दिखने वाला यह स्पेस शटल अपने ओरिजिनल फॉर्मेट से छह गुना छोटा है। टेस्ट के बाद इसको पूरी तरह से तैयार करने में 10 से 15 साल लग जाएंगे।
 
=>70 किमी ऊपर गया शटल :-
- RLV-TD की ये हाइपरसोनिक टेस्ट फ्लाइट रही।
- शटल की लॉन्चिंग रॉकेट की तरह वर्टिकल रही।
- इसकी स्पीड 5 मैक (साउंड से 5 गुना ज्यादा) थी। साउंड से ज्यादा स्पीड होने पर उसे मैक कहा जाता है।
- शटल को स्पेस में 70 किमी ऊपर ले जाया जाएगा।
- शटल को स्थापित कर व्हीकल 180 डिग्री मुड़कर वापस आ जाएगा।
 
=>15 साल पहले सोचा था, 5 साल पहले शुरू हुआ काम :-
- स्पेस शटल के लिए 15 साल पहले सोचा गया था। लेकिन सही मायने में काम 5 साल पहले ही शुरू हुआ।
 
- 6.5 मीटर लंबे प्लेन की तरह दिखने वाले स्पेसक्राफ्ट का वजन 1.75 टन है।
- इसे एटमॉस्फियर में स्पेशल रॉकेट बूस्टर की मदद से भेजा गया।
- सॉलिड फ्यूल वाला स्पेशल बूस्टर फर्स्ट स्टेज रही। ये RLV-TD को 70 किमी तक ले गई।
- इसके बाद RLV-TD बंगाल की खाड़ी में नेविगेट करा लिया गया।
- स्पेस शटल और RLV-TD पर शिप्स, सैटेलाइट और राडार से नजर रखी गई।
- चूंकि इसकी स्पीड साउंड की स्पीड से 5 गुना ज्यादा थी, इसलिए लैंडिंग के लिए 5 किमी से लंबा रनवे जरूरी था। लिहाजा, इसे जमीन पर नहीं उतारने का फैसला लिया गया।
 
=>बंगाल की खाड़ी में लैंडिंग :-
- ये पहली बार हुआ कि शटल को लॉन्च करने के बाद व्हीकल बंगाल की खाड़ी में बने वर्चुअल रनवे पर लौटाने का फैसला किया गया।
- समंदर के तट से इस रनवे को करीब 500 किमी दूर बनाया गया।
- साइंटिस्ट्स का कहना है कि RLV-TD को पानी पर तैरने के लिहाज से डिजाइन नहीं किया गया।
 
- आने वाले 10 साल में #ISRO पूरी तरह रियूजेबल लॉन्चिंग व्हीकल तैयार कर लेंगे।'
 
- 'ये एयरक्राफ्ट की तरह लैंड करेगा और दोबारा यूज किया जा सकेगा।'
 
- '45 किमी की ऊंचाई पर पहुंचने पर बूस्टर अलग हो जाएंगे और व्हीकल 70 किमी तक शटल को जाएगा।'
- 'फिलहाल, ये टेस्टिंग है। पहली फ्लाइट का वजन 1.7 टन है और इसके बनने में करीब 6 साल लगे। ये ऑपरेशनल रिजूयेबल लॉन्च व्हीकल से 5 गुना छोटा है।'
कलामयान हो सकता स्पेस शटल का नाम...
- स्पेस शटल का वजन स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल (एसयूवी) जितना होगा।
- बता दें कि कई देश रियूजेबल लॉन्च व्हीकल के आइडिया को खारिज कर चुके हैं।
- साइंटिस्ट्स की मानें तो अगर सब कुछ ठीक रहा तो स्पेस शटल का नाम 'कलामयान' रखा जाएगा।
 
=>क्या है RLV-TD?
 
- RLV-TD अमेरिकन स्पेस शटल की तरह ही है।
- RLV-TD के जिस मॉडल का एक्सपेरिमेंट किया जाएगा, वह इसके लास्ट मॉडल से 6 गुना छोटा है।
- RLV-TD का फाइनल वर्जन बनने में 10-15 साल लगेंगे।
 
=>तट से 500 किमी दूर बनाया गया रनवे :-
- ये पहली बार होगा कि शटल को लॉन्च करने के बाद व्हीकल बंगाल की खाड़ी में बने वर्चुअल रनवे पर लौट आएगा।
- समंदर के तट से इस रनवे को करीब 500 किमी दूर बनाया गया है।
- साइंटिस्ट्स का कहना है कि RLV-TD को पानी पर तैरने के लिहाज से डिजाइन नहीं किया गया।
 
=>अमेरिकी व्हीकल्स से सबसे ज्यादा बार भेजे गए शटल :-
- स्पेस शटल भेजने वाले देश अमेरिका के व्हीकल का इस्तेमाल करते रहे हैं।
- इन व्हीकल्स का 135 बार इस्तेमाल हुआ और 2011 में इसे रिटायर कर दिया गया।
- अब इन व्हीकल्स से स्पेस में एस्ट्रोनॉट्स को नहीं भेजा जा सकता।
- रूस के पास एक अकेला स्पेस शटल 1989 में एक बार यूज हुआ।
- इसके बाद फ्रांस और जापान ने एक्सपेरिमेंटल फ्लाइट्स भेजीं।
- चीन ने अभी तक कोई स्पेस शटल नहीं भेजा।
 

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