आज से एक साल पहले हमारे वैज्ञानिक समुदाय को हतोत्साहित करने वाली खबर मिली थी कि भारत अब यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन (सर्न) का एसोसिएट सदस्य नहीं रहेगा. सरकार को इसके लिए कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी थीं लेकिन, वह समय रहते ऐसा नहीं कर पाई और यह मौका पाकिस्तान को मिल गया.
★ लेकिन हाल ही में आई एक जानकारी वैज्ञानिकों के साथ-साथ आम भारतीयों में भी गर्व की भावना भर सकती है. खबर ये है कि भारत फ्रांस में बनने जा रहे दुनिया के सबसे बड़े प्रायोगिक परमाणु रिएक्टर के सबसे महत्वपूर्ण उपकरणों का निर्माण जल्द ही पूरा करने वाला है. ऊर्जा उत्पादन का एक नया और क्रांतिकारी तरीका खोजने और पूरी दुनिया को परमाणु ऊर्जा के दुष्प्रभावों से बचाने की दिशा में भारत का यह योगदान मील का पत्थर साबित होगा.
★ आईटीईआर रिएक्टर के 2019 तक शुरू हो जाने की संभावना है. कहा जा रहा है कि यह प्रयोग प्रदूषण रहित ऊर्जा स्रोतों के विकास में मील का पत्थर साबित होगा।
=>"क्या है ITER :-
★ परमाणु ऊर्जा दो तरीकों से प्राप्त की जा सकती है. एक है परमाणु के नाभिकों का विखंडन और दूसरा है इनका संलयन या एकीकरण.
♂ आज दुनिया में जितने भी परमाणु रिएक्टर हैं वे पहले तरीके से बिजली पैदा करते हैं. लेकिन इसके अपने कुछ खतरे हैं. जैसे इन रिएक्टरों से कभी भी परमाणु दुर्घटना होने का खतरा रहता है और जिसका असर परमाणु बम की तरह हो सकता है.
♂इन रिएक्टरों से जो परमाणु कचरा निकलता है वह एक अलग समस्या है. यह कचरा सैकड़ों साल तक जहरीला विकिरण उगलता रहता है और इसलिए उसको ठिकाने लगाना बहुत ही मुश्किल काम है.
♂ दुनिया के किसी भी देश के पास परमाणु कचरे के ऐसे स्थायी निपटारे की कोई व्यवस्था नहीं है कि वह स्वास्थ्य के लिए ख़तरा बने बिना सैकड़ों वर्षों तक एक ही जगह अनछुआ पड़ा रहे.
♂ इसलिए भी एक लंबे अरसे से पूरी दुनिया में कोशिश की जा रही थी कि परमाणु संलयन तकनीक के आधार पर परमाणु रिएक्टरों का विकास किया जाए.
★ ये रिएक्टर सुरक्षित होंगे और उनसे ऐसा परमाणु कचरा भी नहीं निकलेगा जिसका निपटारा न हो सके. लेकिन यह तकनीक इतनी जटिल है कि कोई भी देश अभी इस दिशा में खास प्रगति नहीं कर पाया है.
★ इसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए 2006 में छह देशों और एक संगठन ने मिलकर इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपरिमेंट रिएक्टर (आईटीईआर) पर सहमति जताई थी.
★इस प्रयोग के तहत एक परमाणु रिएक्टर का निर्माण किया जाना है जिसमें नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के आधार परमाणु ऊर्जा से जुड़े अनुसंधान संपन्न होने हैं.
★ इस परियोजना में रूस, जापान, अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ के साथ भारत भी शामिल है.
★ परमाणु संलयन तकनीक के आधार पर बने रिएक्टर सुरक्षित होंगे और उनसे ऐसा परमाणु कचरा भी नहीं निकलेगा जिसका निपटारा न हो सके.
★ आईटीईआर का निर्माण 2013 में फ्रांस के कराहाश में शुरू हो चुका है. सभी सदस्य देशों ने इसके निर्माण में वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई है. साथ ही वे रिएक्टर के लिए उपकरणों का भी निर्माण कर रहे हैं.
★ इसी कड़ी में भारत को रिएक्टर के सबसे बड़े, भारी और महत्वपूर्ण उपकरण के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.
★ भारत का इंस्टिट्यूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च (आईपीआर) आईटीईआर के लिए 'क्रोस्टेट' का निर्माण कर रहा है और दिसंबर तक इसे परीक्षण स्थल तक पहुंचा दिया जाएगा.
=>क्रोस्टेट सिलेंडर का कार्य :-
★ क्रोस्टेट सिलेंडर के आकार का उपकरण होता है जो रिएक्टर का तापमान नियंत्रित करता है.
★ 30 मीटर लंबाई और इतनी ही चौड़ाई वाला यह मशीनी ढांचा रिएक्टर का सबसे बड़ा कलपुर्जा है.
† इसके अलावा रिएक्टर की एक और प्रणाली (वैक्यूम वैसेल सिस्टम) के विकास का काम भी भारत में हो रहा है. ये दोनों प्रणालियां लार्सन एंड टूब्रो के गुजरात में हजीरा स्थित प्लांट में विकसित की जा रही हैं. इनके निर्माण की आधिकारिक जिम्मेदारी आईपीआर को दी गई है.
=>निष्कर्ष :-
★ आईटीईआर रिएक्टर के 2019 तक शुरु हो जाने की संभावना है. कहा जा रहा है कि यह प्रयोग प्रदूषण रहित ऊर्जा स्रोतों के विकास में मील का पत्थर साबित होगा और भारत इससे प्राप्त ब्लूप्रिंट के आधार पर 2050 तक परमाणु संलयन प्रक्रिया पर आधारित अपना रिएक्टर बना पाएगा.